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बालिका गृह कांड: राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग का निक्कमेपन उजागर

7 माह पूर्व आई बालिका गृह आई थी टीम लेकिन क्यों नहीं कर पाई बच्चियों के यौन शोषण का खुलासा ?

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सिटी पोस्ट लाइव : (श्रीकांत प्रत्यूष ) बालिका गृह यौन उत्पीड़न मामले की जांच करने आज  राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम जांच के लिए मुजफ्फरपुर पहुंची. जांच के बाद  विजय कुमार रौशन और प्रेमा शाह की दो सदस्यीय टीम ने  मामले को काफी गंभीर बताया. आयोग के सदस्य विजय कुमार रौशन ने खुलासा किया कि समाजिक सुरक्षा कोषांग के निदेशालय स्तर पर आयोग के सुझाव को गंभीरता से नहीं लिया गया. उन्होंने  बालिका गृह मामले में अधिकारियों की भूमिका पर उंगुली उठाते हुए कहा कि पुलिस जांच और मेडिकल रिपोर्ट के बारे में आयोग किसी प्रकार की टिपण्णी नहीं करेगा. लेकिन आयोग के निदेशों के पालन मुजफ्फरपुर बालिका गृह में नहीं किया गया.

गौरतलब है कि 22 दिसंबर 2017 के आयोग की टीम मुजफ्फरपुर बालिका गृह का निरीक्षण किया था.टीम ने कई बिंदुओं पर गंभीर टिपण्णी की थी.टीम ने  साहू रोड में चलने वाले बालिका गृह को सरकारी मानकों के विपरीत बताते हुए तत्काल विभाग को यहाँ से इसे हटाने का निर्देश दिया था. लेकिन विभाग के निदेशालय से लेकर जिला स्तर पर आयोग के सुझाव और निर्देशों को पालन नहीं किया गया.लेकिन हैरत की बात है कि बाल संरक्षण के लिए बने इस आयोग की टीम के अधिकारी भी अंधे -बहरे निकले जो बच्चियों की पीड़ा देख और सून नहीं पाए . जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति की और उलटे सीधे एक दो सुझाव देकर अपने कर्तव्यों के निर्वहन का ड्रामा कर लिया .वैसे इस विषय पर चर्चा बाद में होगी .अभी इस आयोग की सून लेते हैं ,क्या कहता है ?

आयोग की जांच टीम ने ब्रजेश ठाकुर के परिवार वालों और मामले की  जांच कर रहे पुलिस अधिकारियों से भी बातचीत की .स्थानीय लोगों से बातचीत के बाद  जांच टीम ने कहा कि अधिकारियों की भूमिका की जांच बेहद जरूरी है.  मुजफ्फरपुर के चर्चिल बालिका गृह यौन उत्पीड़न कांड में जिन 6 लड़कियों के बालिका गृह से 2013 से 2018 के बीच गायब होने की बात पुलिस बता रही है उससे समाजिक सुरक्षा कोषांग के पदाधिकारियों ने अनभिज्ञता जता दिया.समाजिक सुरक्षा कोषांग के सहायक निदेशक देवेश कुमार शर्मा ने कहा  कि विभाग के पास इस प्रकार की कोई लिखित जानकारी उपलब्ध नहीं  है और ना ही फाइलों के रिकार्ड में इस प्रकार की कोई जानकारी है.

लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि आज अधिकारियों की भूमिका पर सवाल उठानेवाली यह जांच टीम अपने 7 महीने पहले दौरे के दौरान यहाँ क्या जांच किया ? क्या यहाँ की बच्चियों से बात की .उनका दुःख दर्द जानने की कोशिश की ? अगर उसने ऐसा किया होता तो उसी दिन इस रैकेट का पर्दाफाश हो गया होता .एक एनजीओ की टीम ने कुछ घंटे काम करके सच को उजागर कर दिया फिर इसी काम के लिए बनी इस बाल संरक्षण आयोग की टीम क्या कर रही थी ? अगर एक बालिका गृह की 29 लड़कियों से सैलून साल होनेवाले बलात्कार काण्ड का अबतक खुलासा नहीं हुआ तो इसके लिए इस बालिका गृह के संचालक से ज्यादा जिम्मेवार वो अधिकारी हैं जिन्हें यहाँ सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था .और उससे भी ज्यादा जबाबदेह बाल संरक्षण आयोग की वह टीम है जो निरीक्षण के नाम पर केवल टीए -डीए बनाती है या फिर जांच के नाम पर वसूली करती है.

 

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