सिटी पोस्ट लाइव : 1 अप्रैल 2016 को बिहार में शराबबंदी कानून लागू हुआ और पिछले साल इस पर पुनः गहन समीक्षा भी हुई लेकिन नतीजा बिल्कुल बेअसर दिख रहा है। बिहार में शराबबन्दी के बाद एक तरफ जहाँ, अरबों-खरबों का अवैद्य शराब का कारोबार हो रहा है, वहीँ इस शराबबन्दी के साईड इफेक्ट्स के तौर पर मासूम युवा कोरोक्स, गाँजा, अफीम, चरस, ब्राउन सुगर, सुलेशन और नशे की गोलियाँ खाकर अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं। जाहिर तौर पर, बिहार में शराबबन्दी पूरी तरह से फेल है। गौरतलब है कि शराबबंदी कानून के मसले पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब पूरी तरीके से अलग-थलग पड़ चुके हैं। मुख्यमंत्री को शराबबंदी के मुद्दे पर ना तो अपने सहयोगी दलों का साथ मिल रहा है और ना ही विपक्ष का।
सीएम के गृह जिला नालंदा में जहरीली शराब पीने से हुई 13 लोगों मौतों के बाद एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी ने शराबबंदी कानून की समीक्षा की जरूरत बताई है। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय चीफ पूर्व सीएम जीतन राम मांझी ने तो यहॉं तक कह दिया है कि अगर कृषि कानून वापस लिए जा सकते हैं, तो बिहार में शराबबंदी कानून क्यों नहीं वापिस लिए जा सकते हैं ? आलम यह है कि शराबबंदी को लेकर जनता दल यूनाइटेड को किसी का भी साथ नहीं मिल रहा है। बिहार में सियासी समीकरण ऐसे बन गए हैं कि अब बीजेपी और कांग्रेस एक साथ नीतीश कुमार से सवाल पूछ रहे हैं। बीजेपी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर संजय जायसवाल ने तो तल्ख बयान देते हुए कहा कि बिहार पुलिस शराब माफियाओं को संरक्षण दे रही है और वही शराब की बिक्री भी करवा रही है। शराबबन्दी के नाम पर बिहार में बड़ा ड्रामा चल रहा है।
इधर, अब कांग्रेस ने भी एक बार फिर से बिहार में शराबबंदी कानून की समीक्षा की जरूरत बताई है। कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने कहा है कि अगर सरकार में शामिल भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल शराबबंदी की समीक्षा की जरूरत बता रहे हैं, तो इस पर तुरंत कदम आगे बढ़ाने की जरूरत है। अजीत शर्मा ने कहा है कि देर से ही सही लेकिन बीजेपी को यह बात समझ में आ गई है कि बिहार में लागू शराबबंदी की हकीकत क्या है। अजीत शर्मा ने यह भी कहा है कि संजय जायसवाल समीक्षा की बात कह रहे हैं और कांग्रेस इस मसले पर पूरी तरह से उनके साथ है। दरअसल, नालंदा की घटना के बाद संजय जायसवाल अपनी ही सरकार के ऊपर बेहद आक्रामक नजर आ रहे हैं। उन्होंने जनता दल यूनाइटेड से तीखे सवाल भी पूछे हैं। बेशक, बिहार में शराबबंदी को लेकर इस वक्त बीजेपी और जेडीयू के बीच तनातनी और रार, अब साफ तरीके से दिख रहा है।
ऐसे में, कांग्रेस ने भी अपने पत्ते खोल दिए हैं। कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा शुरू से यह बात कहते रहे हैं कि बिहार में शराबबंदी कानून की समीक्षा होनी चाहिए। ऐसे में अब भारतीय जनता पार्टी ने श्री शर्मा के सुर में सुर मिला कर, नीतीश कुमार की परेशानी काफी बढ़ा दी है। जाप चीफ पप्पू यादव ने तो इतना तक कह डाला है कि अधिकारी और सरकार के मंत्री-विधायक शराब की बिक्री करवा रहे हैं। शराबबन्दी की वजह से जहरीली शराब का निर्माण हो रहा है, जिसे पीकर लोग लगातार मर रहे हैं। लोजपा (रामविलास) चीफ चिराग पासवान ने नीतीश कुमार पर जोरदार हमला बोला है। उन्होंने कहा कि जहरीली शराब से होने वाली मौतों के जिम्मेवार, सीएम नीतीश कुमार हैं। यह मौत नहीं बल्कि हत्या है। नीतीश कुमार उस इलाके में कभी नहीं जाते हैं, जहाँ जहरीली शराब से मौत होती है।
नीतीश कुमार को मृतक परिवार के दर्द से कोई लेना-देना नहीं है। शराबबन्दी, बिहार को गर्त में ले जा रहा है। बिहार शराबबन्दी को झेलने में बिल्कुल असफल है। सरकार जिद और अहंकार से नहीं बल्कि जनता के हित को देख कर काम करती है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने जहरीली शराब से हुई मौत को लेकर, नीतीश कुमार से इस्तीफे तक की माँग कर डाली है। राष्ट्रीय जनता दल के प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने कहा है कि बिहार में जिस तरीके से जहरीली शराब से लगातार मौत हो रही है, उसकी जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार को अपने पद से इस्तीफा देना चाहिए। रविवार को ईलाज के दौरान छोटी पहाड़ी मोहल्ला निवासी जगदीश महतो के 45 वर्षीय पुत्र प्रह्लाद महतो, बालेश्वर मिस्त्री के 35 वर्षीय पुत्र कालिया उर्फ शंकर कुमार व नरेश मिस्त्री के 35 वर्षीय पुत्र सिंटू मिस्त्री की मौत हो गयी। इनके शवों का पोस्टमार्टम करा कर, शव परिजनों के हवाले कर दिया गया।
इससे पहले शनिवार को छोटी पहाड़ी निवासी धर्मेन्द्र प्रसाद, मन्ना मिस्त्री, भोला मिस्त्री, सुनील तांती, जयपाल प्रसाद, मंसूरनगर मोहल्ला निवासी अर्जुन पंडित, श्रृंगार हाट मोहल्ला निवासी अशोक शर्मा उर्फ कालीचरण व बॉलीपर मोहल्ला निवासी राजेश प्रसाद की जान चली गयी थी। मोटे तौर पर देखें तो बिहार में शराबबन्दी का मामला, नीतीश कुमार को बिहार की सत्ता के सिंहासन से उतार सकती है। हमने बिहार की शराबबन्दी पर काफी शोध किये हैं। हमने पाया है कि बिहार में सभी विभाग के बड़े अधिकारी, जज, वकील, डॉक्टर्स, व्यवसायी से लेकर सभी वर्ग के समृद्ध लोग शराब का सेवन कर रहे हैं। हद की इंतहा तो यह है कि जिस बिहार पुलिस के अधिकारियों पर शराबबन्दी की सबसे बड़ी जिम्मेवारी है, उस विभाग के अधिकारी शराब पीकर, शराब की खेप पकड़ने निकल रहे हैं। अगर, नीतीश कुमार ने शराबबन्दी को लेकर अपना फैसला नहीं बदला, तो कयास यह लगाया जा रहा है कि उनकी यह राजनीतिक गलती, उनकी राजनीति के अवसान की एकमात्र बड़ी वजह बनेगी।
पीटीएन मीडिया ग्रुप के मैनेजिंग एडिटर मुकेश कुमार सिंह