गैंग्स ऑफ़ हथुआ एंड सिवान : गोपालगंज हत्याकांड की इनसाइड स्टोरी जानिये

City Post Live

सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के गोपालगंज में हुए तीहरे हत्याकांड को लेकर बिहार की सियासत गरमाई हुई है. तेजस्वी यादव इसे नरसंहार बता रहे हैं. नीतीश सरकार की घेराबंदी की कोशिश में जी-जान से जुटे हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि ये नरसंहार नहीं बल्कि गैंग वार है.इस गैंगवार में पिछले एक महीने में 5 से ज्यादा हत्याएं हो चुकी हैं. वर्चस्व को लेकर गोपालगंज में जारी गैंगवार में अबतक एक महीने में 5 लोगों की जान जा चुकी है जिसमें हथुआ के एक ही परिवार के तीन लोग भी शामिल हैं. इस हमले में घायल एक शख्स का पटना के PMCH में इलाज चल रहा है जो इस हत्याकांड का मुख्य गवाह भी है.

गोपालगंज लालू यादव का गृह जिला है. अपने गृह जिले में चल रहे इस हिंसा के बहाने आरजेडी के  नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने ना सिर्फ नीतीश सरकार पर हमला बोला है बल्कि इस ट्रिपल मर्डर केस को नरसंहार बताकर नीतीश सरकार की घेराबंदी करने में भी लगे हैं. तेजस्वी यादव इस मामले को लेकर कितना संजीदा हैं इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि तेजस्वी का 14 दिनों का होम क्वारन्टीन पीरियड बुधवार की सुबह ही खत्म हुआ और तेजस्वी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानन्द सिंह के साथ आनन-फानन में घायल जेपी यादव से मिलने पीएमसीएच पहुंच गए. फिर इस ट्रिपल मर्डर को एक नरसंहार बता दिया. तेजस्वी इस हत्याकांड को राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करने में जुटे हैं.

गोपालगंज में जारी खूनी संघर्ष और गैंग्स ऑफ हथुआ के पीछे की क्या असल कहानी बहुत पुराणी है. गोपालगंज जिले के हथुआ एक विधानसभा क्षेत्र के  रेलवे के रैक को लेकर दो गुटों में हिंसक झड़प और वर्चस्व की लड़ाई बहुत पहले से होती रही है. इसमें दोनों ही तरफ के लोगों का खून भी बहता रहा है. ये लड़ाई पिछले 3 दशकों से चली आ रही है और आज भी जारी है. 90 के दशक में कुख्यात सतीश पांडेय और बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन के बीच इसी रेलवे रैक पर अपना दबदबा कायम करने और लेवी वसूलने को लेकर कई बार हिंसक झड़पें हुई थीं. इस वर्चस्व की लड़ाई में कइयों की जानें भी गई. उस दौर में शहाबुद्दीन की तूती बोलती थी क्योंकि उस दौरान बिहार में लालू यादव की सरकार थी और मोहम्मद शहाबुद्दीन को लालू और उनके रसूख का खुलकर सहयोग मिलता था .लेकिन जैसे-जैसे समय बदलता गया और 2005 में बिहार में तख्तापलट हुआ शहाबुद्दीन कमजोर होते गए और फिर कुख्यात सतीश पांडेय का रेलवे के रैक पर पूरा साम्राज्य स्थापित हो गया.

2005 में जब बिहार में नीतीश कुमार की सरकार सत्ता में आई तब कुख्यात सतीश पांडेय का छोटा भाई अमरेंद्र पांडेय उर्फ पप्पू पांडेय जेडीयू के सिंबल पर चुनाव जीतकर सत्तारूढ़ पार्टी का विधायक चुन लिया गया और फिर तब से अमरेंद्र पांडेय उर्फ पप्पू पांडे की हथुआ और समूचे गोपालगंज में हुकूमत चलने लगी . रेलवे के रैक से लेकर पूरे गोपालगंज में कोई भी विकास का कार्य होना हो तो जिला प्रशासन की अनुमति के बाद भी कांट्रेक्टर या बिजनेसमैन को बाहुबली विधायक पप्पू पांडे की इजाजत लेनी पड़ती है. पिछले 3 दशकों से ये सिलसिला आज भी जारी है और फिर अपनी हूकूमत और दबदबा कायम रखने के लिए आज भी वर्चस्व की लड़ाई या फिर खूनी संघर्ष चल रहा है.

शहाबुद्दीन के जेल जाने के बाद भी ये गैंगवार ख़त्म नहीं हुआ.शहाबुद्दीन के बाद  तेजस्वी के करीबी सुरेश चौधरी ने कमान संभाल ली. शहाबुद्दीन के बाद कुख्यात सुरेश चौधरी उर्फ संजय जैसे लोग विधायक पप्पू पांडेय को खुली चुनौती दे रहे हैं. सुरेश चौधरी इन दिनों तेजस्वी यादव के बेहद करीबी माने जाते हैं. बताया ये भी जा रहा है कि ट्रिपल मर्डर में मारे गए सभी तीन लोग और घायल जेपी यादव कुख्यात सुरेश से ही ताल्लुक रखते थे. इसमें जेपी यादव जो पहले वामदल का नेता हुआ करता था भी इन दिनों आरजेडी में शामिल हो चुका है और अगले साल होनेवाले नगर परिषद के चुनाव में एक मजबूत दावेदार भी है.

इस हत्याकांड के पीछे आर्थिक और राजनीतिक रंजिश दोनों ही मजबूत कारण हैं. अपने सियासी फायदे के लिए तेजस्वी यादव इस हत्याकांड को एक नरसंहार का रूप दे रहे हैं ताकि नरसंहार बताकर चुनावी साल में इसे खूब भुनाया जा सके और यादव को पूरी तरह से पहले की तरह गोलबंद किया जा सके.उन्हें इस गैंगवार के बहाने उन्हें फिर से नीतीश कुमार की सुशासन वाली सरकार की घेराबंदी का मौका मिल गया है.अब JDU के बाहुबली विधायक और इस हत्याकांड के नामजद अभियुक्त पप्पू पाण्डेय की गिरफ्तारी की मांग को लेकर सरकार पर दबाव बनाने के लिए  तेजस्वी यादव अपने विधायकों-समर्थकों के साथ गोपालगंज मार्च करनेवाले हैं.

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