सिटी पोस्ट लाइव : दिल्ली में जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक ख़त्म हो गई. इस बैठक में दो प्रस्ताव पारित किये गए. पहला प्रस्ताव –“ एक देश एक चुनाव का मुद्दा “, जिसे सहमती के साथ पारित किया गया यानी देश भर में एकसाथ चुनाव कराये जाने के विधि आयोग के सुझाव के साथ जेडीयू खड़ा है. दूसरा प्रस्ताव – “असम में नगारिक कानून में संशोधन” जिसका विरोध करने का फैसला लिया गया . आज की बैठक में यह साफ़ कर दिया गया कि इस मामले पर केंद्र सरकार का साथ जेडीयू नहीं देगा. दरअसल, इस प्रस्ताव का असली राजनीतिक मायने ये है कि जेडीयू बीजेपी के साथ तो बना रहेगा लेकिन अपनी शर्तों पर .
केंद्र सरकार के नागरिकता विधेयक 1955 में संशोधन को लेकर पिछले कुछ दिनों से असम में बवाल मचा हुआ है. इस विधेयक के जरिये केंद्र सरकार तीन पड़ोसी देशों के शरणार्थियों (गैर-मुस्लिम) को भारत की नागरिकता प्रदान करना चाहती है. प्रस्तावित विधेयक ने असम में भौगोलिक विभाजन जैसा माहौल तैयार कर दिया है. एक तरफ ब्रह्मपुत्र घाटी के लोग इसका तीव्र विरोध कर रहे हैं तो दूसरी तरफ बराक घाटी के लोग इसका स्वागत कर रहे हैं. 7 मई से 10 मई 2018 के बीच प्रस्तावित विधेयक पर आम लोगों की राय जानने के लिए संयुक्त संसदीय समिति ने असम और मेघालय का दौरा किया था. उसके बाद से विधेयक के विरोध में लगातार धरना प्रदर्शन जारी है.
प्रस्तावित विधेयक के अनुसार बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारतीय नागरिकता पाने के लिए आवेदन कर सकते हैं. मौजूदा नागरिकता अधिनियम के प्रावधान के अनुसार अगर कोई शरणार्थी पिछले 14 सालों में से 11 सालों तक और आवेदन करने से पहले 12 महीने तक भारत में रह रहा हो तो उसे इस देश की नागरिकता मिल सकती है. 19 जुलाई 2016 को केंद्र सरकार ने संसद में संशोधन विधेयक पेश कर 3 देशों के 6 धर्मावलम्बियों के लिए समय सीमा को परिवर्तित कर दिया था. इससे पहले 2015 और 2016 में सरकार ने दो अधिसूचना जारी कर इन शरणार्थियों को विदेशी अधिनियम 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम 1920 के प्रावधानों से रियायत दे दी. 31 दिसंबर 2014 से पहले आए ऐसे शरणार्थियों को भारत में रहने का अधिकार दे दिया गया.नीतीश सरकार शुरू से ही इस विधेयक का विरोध कर रही है..