सिटी पोस्ट लाइव : राजनीति में कथनी और करनी में बड़ा फर्क होता है। आज सफल नेता वही हैं जो जुबां से कहे कुछ और पर्दे के पीछे से करे कुछ। हालिया संपन्न हुए सहरसा जिला परिषद चुनाव में भी ऐसा ही कुछ हुआ। स्थानीय राजनीति के ‘घाघ’ कहे जाने वाले जदयू सांसद दिनेश चंद यादव को उनके ही मोहरे से भाजपा ने मात दे दी और उन्हें अंत तक, इस बात का पता तक नहीं चला। सहरसा जिले के स्थानीय निकाय चुनाव के मद्देनजर पिछले 20 वर्षों से सांसद के जो करीबी समर्थक कहते नहीं थकते कि ‘ होइहि वही जो दिनेश रचि राखा’, वो अब इसे सांसद के जीवन की सबसे बड़ी भूल बता रहे हैं। ये सारा भेद तब खुला, जब जिला परिषद अध्यक्ष किरण कुमारी के पति पूर्व जिप अध्यक्ष सुरेंद्र कुमार यादव मंगलवार को वन, पर्यावरण और जलवायु नियंत्रण मंत्री नीरज कुमार सिंह “बबलू” के पटना स्थित आवास पर फूलों का गुलदस्ता लेकर उनका आभार प्रकट करने पहुँचे।
हालाँकि सुरेंद्र यादव ने इसे शिष्टाचार मुलाकात बताते हुए कहा कि मंत्री कोशी क्षेत्र से आते हैं। इसलिए उनसे इसी बहाने विकास कार्यों पर चर्चा करने आ गए थे। किंतु, पीछे की कहानी कुछ और ही है। हालिया संपन्न जिला परिषद के चुनाव में सांसद के बेहद करीबी और उनका कृपापात्र बनकर 10 वर्षों तक जिला परिषद के अध्यक्ष रहे सुरेंद्र कुमार यादव ने इस बार अपनी पत्नी को जिप अध्यक्ष पद के दावेदार के रूप में प्रस्तुत किया। क्योंकि यह पद पिछले 5 वर्षों से महिला आरक्षित हो चुका है। पिछले चुनाव में सुरेंद्र यादव की पत्नी किरण कुमारी जिला पार्षद का चुनाव हार गई थीं। लेकिन इस बार वो चुनाव जीतने में कामयाब रहीं। किरण कुमारी के मुकाबले में युवा जदयू के नेता अमर यादव ने अपनी पत्नी मधुलता कुमारी की दावेदारी पेश की थी। दीगर बात है कि दोनों यादव जाति से ही थे और 21 पार्षद में से सर्वाधिक आठ पार्षद यादव ही थे। सांसद खुल कर मधुलता की मदद करने उतर गए। दोनों ही उमीदवार सांसद के निकटतम माने जाते थे। लिहाजा, भाजपा ने सांसद को मात देकर स्थानीय निकाय चुनाव में अपना दबदबा बढ़ाने के लिए गेम प्लान किया।
भाजपा कोटे से मंत्री नीरज कुमार सिंह बबलू और कला एवं संस्कृति मंत्री डॉ. आलोक रंजन ने उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद के रिश्तेदार पूर्व जिप उपाध्यक्ष रितेश रंजन को आगे लाया। उन्हें सुरेंद्र यादव के पक्ष में पार्षदों को गोलबंद करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। जब सुरेंद्र यादव जिप अध्यक्ष थे, तब रितेश रंजन उपाध्यक्ष थे। पूरे कार्यकाल में दोनों के बीच छत्तीस का रिश्ता था। भाजपा की रणनीति के तहत सुरेंद्र और रितेश ने हाथ मिला लिया। रितेश को पचपनिया समुदाय के पार्षदों को गोलबंद करने की जिम्मेवारी मिली। इसके बाद चुनाव से तीन दिन पूर्व 11 पार्षदों को भूमिगत कर दिया गया। हालांकि 21 सदस्यीय जिला परिषद में जीत के लिए ये संख्या काफी थी। लेकिन भाजपा नेताओं को क्रॉस वोटिंग का भी डर सता रहा था। इसलिए एक कदम और बढ़ कर पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव के करीबी धीरेंद्र यादव को अपने खेमे में करने के लिए रितेश के माध्यम से उपाध्यक्ष पद ऑफर किया गया। रितेश भी शरद यादव की पार्टी में रह चुके हैं।
इसके बाद मंत्री बबलू के स्वजातीय विनीत कुमार सिंह बिड्डू को साधा गया। इस तरह 13 पार्षदों का समर्थन जुटा कर भाजपा, सांसद दिनेश चंद्र यादव को सियासी मात देने के प्रति आश्वस्त हो गई। चुनाव में अध्यक्ष पद पर किरण कुमारी और उपाध्यक्ष पद पर धीरेंद्र यादव को 13-13 मत मिले। जबकि सांसद खेमे के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के दोनों उम्मीदवारों का सपना टूट गया। इसके साथ ही, स्थानीय निकाय चुनाव में पिछ्ले 20 वर्षों से किंग मेकर का जो ताज सांसद के पास था, वह भी छिन चुका है। गौरतलब है कि नगर परिषद पर भी विगत ढ़ाई-तीन दशक से सांसद दिनेश चंद्र यादव का ही जलवा बरकरार रहा है लेकिन इस बार सहरसा नगर निगम में तब्दील हो चुका है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो, नगर निगम चुनाव में भी सांसद हुक्म का ईक्का साबित नहीं होने जा रहे हैं।
निष्ठा मनु की रिपोर्ट