आइसक्रीम के शौक़ीन सावधान! घटिया आइसक्रीम से है सेहत को बड़ा खतरा
सिटी पोस्ट लाइव हेल्थ: अगर आप आइसक्रीम के शौक़ीन हैं तो सावधान हो जाइए. गली मोहल्लों में बिकने वाली सस्ती आइसक्रीम आपकी सेहत के लिए जानलेवा साबित हो सकती है. गली-मोहल्लों में बिकने वाली सस्ती आइसक्रीम में कपड़े रंगने वाला रंग या फिर पोस्टर कलर मिला हो सकता है. ऐसी आइसक्रीम में प्रोटीन व फैट रहित सस्ता मिल्क पाउडर मिला होता है. खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन की ओर से आइसक्रीम फैक्ट्रियों के नमूनों जांच रिपोटरे में यह बात साबित हो चुकी है कि सस्ते आइसक्रीम जानलेवा हैं.
गर्मी शुरू होते ही ऐसी कई फैक्ट्रियों का कारोबार तेज हो जाता है. हानिकारक आइसक्रीम तैयार कर इसे धडल्ले से बेचना शुरू कर दिया जाता है. असल में ऐसी फैक्ट्रियों के पास न तो एफएसडीए का लाइसेंस होता है और न ही इनके द्वारा आइसक्रीम के निर्माण में निर्धारित मानकों का ध्यान रखा जाता है. खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम की शर्तों का पालन ऐसी फैक्ट्रियों में बिलकुल नहीं हो रहा है. स्वाद व रंग के लिए सैक्रीन, घटिया रंग, फलों के सस्ते पल्प और हानिकारक मिल्क पाउडर डालकर तैयार की जाने वाली ऐसी आइसक्रीम के सेवन से बच्चे ही नहीं बड़े भी बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं.
अवैध तरीके से संचालित और घटिया आइसक्रीम बनाने के इस गोरखधंधे की जानकारी सरकारी महकमे के बाबुओं को भी है लेकिन उपरी कमाई के चक्कर में वो चुप्पी साध लेते हैं.कभी कभार कुछ चुनिन्दा फैक्ट्रियों में जाकर छापेमारी कर अधिकारी अपनी डयूटी बजा लेते हैं. कई फैक्ट्रियों से लिये गये नमूनों की जांच रिपोर्ट दिल दहला देने वाली है.एक फैक्ट्री में तैयार ‘‘आइस लालीज’ (औरेंज प्लेवर वाली आइसक्रीम) में तो कलर के नाम पर कपड़ा धोने वाला रंग और दूसरी फैक्टी की आइसक्रीम में पोस्टर कलर पाया गया था. सस्ती आइसक्रीम बनाने वाले आमतौर पर पन्द्रह-बीस रुपये में बिकने वाली सफेद रंग के पोस्टर कलर की शीशी खरीद कर इसे एक बाल्टी पानी में मिलाकर नकली दूध तैयार कर लेते हैं. इसी में सैक्रीन डालकर जमा दिया जाता हैं. परमिटेड कलर (एगमार्क) की जगह कपड़ा रंगने वाले रंग का उपयोग भी धड़ल्ले से किया जा रहा है.
चिकित्सकों के मुताबिक ऐेसे रंग की आइसक्रीम के सेवन से कैंसर जैसी बीमारी का खतरा होता है. खाद्य निरीक्षकों की माने तो क्रीम वाली आइसक्रीम में एगमार्क का मिल्क पाउडर इस्तेमाल किया जाना चाहिए पर सस्ती आइसक्रीम बेचने वाली कम्पनियां घटिया मिल्क पाउडर ही उपयोग करती हैं. जिनमें मानक के अनुरूप न तो दो फीसदी फैट होता है और न ही निर्धारित मात्रा में प्रोटीन. जांच रिपोर्ट में आइसक्रीम में मानक से अधिक रंग पाया गया. चिकित्सक बताते हैं कि यदि आइसक्रीम में दशमलव बाइस पीपीएम (पार्ट पर मिलियन) से अधिक रंग है तो यह हानिकारक होगा. मानकों को दरकिनार कर संचालित ऐसी फैक्ट्रियां आइसक्रीम बनाने में उपयोग किये जाने वाले पानी की जांच तक नहीं कराती हैं. पकड़ से बचने के लिए अनेक कम्पनियों ने अपने उत्पाद की गली-मोहल्लों में बिक्री करने वाले हॉकरों का लाइसेंस तक नहीं बनवाया है. ऐसी फैक्ट्रियों में संचालित मशीनों व जाली की सफाई भी वर्षो से नहीं हुई है। चिकित्सकों के मुताबिक ऐसी फैक्ट्रियों में तैयार आइसक्रीम के सेवन से हैजा, कालरा जैसी बीमारियां हो सकती हैं.
सुरक्षा उपायों को दरकिनार कर अनेक आइसक्रीम फैक्ट्रियों में कूलिंग के लिए उपयोग की जा रही अमोनिया गैस का यदि रिसाव हो जाए तो मौके पर इससे बचाव के कोई इंतजाम नहीं हैं. यहां तैनात फूड हैण्डलर्स के पास न तो माक्स है और न दस्ताने. अधिकतर पुराने शहर की गलियों में संचालित इन फैक्ट्रियों में अमोनिया गैस का रिसाव होने पर भागने का भी मौका लोगों को मिलना मुश्किल है. यही वजह है कि हल्की सी चूक ही बड़े हादसे का कारण बन सकती है. चिकित्सकों के मुताबिक अमोनिया गैस की चपेट में आने से पहले आंखों में जलन और छींके आना शुरू होता है. इसके बाद अमोनिया गुर्दा व आंखों की रोशनी पर सीधा असर करती है. हालांकि अमोनिया गैस का विकल्प ‘‘प्रियान गैस’ है लेकिन काफी महंगी व चिलिंग की क्षमता कम होने के चलते फैक्ट्रियों में इनका उपयोग नहीं होता.
मानकों को दरकिनार कर घटिया आइसक्रीम बनाने वाली फैक्ट्रियों की संख्या भले ही सैकड़ों में है. कम्पनियां घनी आबादी वाले इलाकों व संकरी गलियों में एलडीए का अनापत्ति प्रमाण पत्र लिये बिना हानिकारक आइसक्रीम बना कर इसकी बिक्री कर रही हैं.