अयोध्या पर फैसले से बीजेपी को चुनाव में कितना फायदा?

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अयोध्या पर फैसले से बीजेपी को चुनाव में कितना फायदा?

सिटी पोस्ट लाइव :  किसी ज़माने में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की तूती बोलती थी. लेकिन 2012 तक कांग्रेस की हालत पस्त हो गई.बीजेपी भी निराश नज़र आ रही थी.कांग्रेस कमजोर हो चुकी थी लेकिन बीजेपी  चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रही थी. सबके जेहन में एक ही सवाल था कि क्या ग़लत हो रहा है? उत्तर प्रदेश से ही बीजेपी का उभार शुरू हुआ और अब पतन क्यों होने लगा है?

दरअसल, लोग महसूस कर रहे हैं कि हमने राम मंदिर के मुद्दे पर उन्हें धोखा दिया है.राम जन्मभूमि आंदोलन की वजह से ही उत्तर प्रदेश और बाक़ी उत्तर भारत में बीजेपी का उभार शुरू हुआ था.इसी आंदोलन में अयोध्या में बाबरी मस्जिद ढहा दी गई थी. लेकिन इसके बाद पार्टी ने मुख्यधारा की स्वीकार्यता की चाहत में इस मुद्दे को किनारे कर दिया था.राम मंदिर आंदोलन की वजह से ही महज़ पांच साल में लोकसभा में बीजेपी की सीटें दो से बढ़कर 85 तक पहुंच गईं.

फिर बीजेपी को लगा मोदी के केन्द्रीय राजनीति में आने से ध्रुवीकरण होगा. या तो लोग मोदी के साथ होगें या फिर मोदी के ख़िलाफ़. ऐसा ही ध्रुवीकरण राम मंदिर आंदोलन के समय भी था.2012 विधानसभा चुनावों के नतीजे आए तो बीजेपी को 403 में से महज़ 47 सीटें मिलीं. उसे 15 फ़ीसदी वोट हासिल हुए.इसके 19 महीने बाद ‘वकील साहब’ जैसे बीजेपी कार्यकर्ताओं की बात पार्टी नेतृत्व ने सुन ली और नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया गया.

2012 से 2014 तक, महज़ दो साल में उत्तर प्रदेश में बीजेपी का वोट फ़ीसद 15 से बढ़कर 43 फ़ीसदी हो गया. वो लोकसभा की 80 सीटों में से 71 जीत गई. अब वह गांव में बीजेपी के बूथ वर्कर नहीं हैं. अब यह काम ओबीसी समुदाय के एक नए कार्यकर्ता को सौंप दिया गया है.आज नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में जब सुप्रीम कोर्ट ने ‘क़ानूनी तौर पर’ विवादित ज़मीन हिंदुओं को दे दी है. बीजेपी कार्यकर्ता अब कह सकते हैं कि पार्टी ने अपना वादा निभाया है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने मंदिर के पक्ष में पैरवी की थी.पिछले कई साल में मैं कई मुसलमानों से मिला, जो चाहते थे कि अयोध्या में मंदिर बन जाए, ताकि उन्हें इस मसले से छुटकारा मिले.

मुसलमानों को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद देश में हुए दंगे याद हैं, इसलिए वो एक मस्जिद से ज़्यादा अपनी सुरक्षा की फ्रिक करते हैं.सुप्रीम कोर्ट ने मस्जिद के लिए अलग से उपयुक्त ज़मीन देने की बात कही है. इसके बावजूद इस फ़ैसले से मुसलमानों को हाशिए पर धकेले जाने और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक समझे जाने की बात को एक तरह से क़ानूनी मान्यता मिल गई है.आज के भारतीय मुसलमान ज़्यादा चिंतित हैं, क्योंकि उनके सामने नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़न यानी एनआरसी जैसी चुनौतियां हैं.वो जानते हैं कि उन्हें सिस्टम से अब न्याय नहीं मिलेगा, इसलिए अब वो कागज़ात ढूंढने की जद्दोजहद में लग गए हैं, ताकि ये साबित कर सकें कि उनके दादा-परदादा भारत से थे.

मंदिर बनाने के लिए सरकार अब एक ट्रस्ट का गठन करेगी. इसकी प्रक्रिया के दौरान बड़ी सुर्खियां बनेंगी और हर बड़े चुनाव से पहले विवादित बयान आएंगे.2019 अभी ख़त्म भी नहीं हुआ है और अनुच्छेद 370 के प्रावधान हटाए जाने के बाद, हिंदुत्व की ये दूसरी बड़ी जीत हुई है.आगामी संसदीय सत्र में नागरिक संशोधन विधायक रखा जाएगा और कौन जानता है कि एक यूनिफॉर्म सिविल कोड और एक धर्मांतरण-विरोधी क़ानून पर भी बात हो.पहले से बैक-फुट पर आ चुका विपक्ष और ज़्यादा बैक-फुट पर आ जाएगा.राजीव गांधी और नरसिम्हा राव ने हिंदू वोट गंवा देने के डर से राम जन्मभूमि आंदोलन को चलने दिया, लेकिन कांग्रेस मुस्लिम वोट गंवा देने के डर का क्रेडिट नहीं ले सकेगी.

अयोध्या के फ़ैसले ने विपक्ष को ना यहां का छोड़ा और ना वहां का. विपक्ष हमेशा कहता रहा कि सुप्रीम कोर्ट फ़ैसला करेगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला वैसा ही आया, जैसा बीजेपी चाहती थी.इस फ़ैसले से पहले से उत्साहित बीजेपी और नरेंद्र मोदी की सरकार और ज़्यादा उत्साह में नज़र आ रही है.ये फ़ैसला ऐसे वक्त पर आया है, जब मोदी सरकार आर्थिक सुस्ती और बढ़ती बेरोज़गारी से ध्यान हटाने के लिए हिंदुत्व की राजनीति कर रही है. इसलिए उनके लिए इस फ़ैसले का इससे बेहतर वक्त कोई और नहीं हो सकता था.मई 2019 में 303 सीटें जीतने और अगस्त में अनुच्छेद 370 हटाने के बावजूद, बीजेपी महाराष्ट्र और हरियाणा में स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं कर पाई.लेकिन इस फ़ैसले ने दिसंबर में होने जा रहे झारखंड चुनाव और फरवरी में होने जा रहे दिल्ली विधानसभा चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है.

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