कबतक आएगा कोरोना का वैक्सीन, कितने में मिलेगा, सारे सवालों के जबाब

City Post Live

सिटी पोस्ट लाइव : कोरोना  वैक्‍सीन का ट्रायल देश में अलग-अलग शहरों के 14 रिसर्च इंस्‍टीट्यूट्स में किया जा रहा है. इन शहरों में नई दिल्ली, रोहतक, हैदराबाद, विशाखापट्नम, पटना, कानपुर, गोरखपुर, भुवनेश्वर, चेन्नई और गोवा शामिल हैं. पटना एम्‍स में चार दिन पहले ट्रायल शुरू हो चुका है. शुरुआती डोज कम रहेगी. ट्रायल में यह देखा जाएगा कि वैक्‍सीन देने से किसी तरह का खतरा तो नहीं है, उसके साइड इफेक्‍ट्स क्‍या हैं. कोविड-19 के अलावा लिवर और फेफड़ों पर कैसा असर हो रहा है, यह भी जांच की जाएगी. इसीलिए पहले फेज को ‘सेफ्टी एंड स्‍क्रीनिंग’ कहा गया है.

ICMR ने उन्‍हीं इंस्‍टीट्यूट्स को चुना है जहां पर क्लिनिकल फार्माकॉलजी विंग है और ह्यूमन ट्रायल में एक्‍सपीरिएंस वाले हेल्‍थकेयर प्रोफेशनल्‍स हैं. ट्रायल में जल्‍दबाजी नहीं की जा सकती क्‍योंकि इसके जरिए यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि वैक्‍सीन इंसानों पर इस्‍तेमाल के लिए सुरक्षित है. ट्रायल की सारी डिटेल्‍स ICMR को भेजी जाएंगी. वहीं पर डेटा को एनलाइज किया जा रहा है.

क्लिनिकल ट्रायल्‍स रजिस्‍ट्री पर मौजूद प्रोटोकॉल के अनुसार, पहले फेज में कम से कम एक महीना लगेगा. उससे मिले डेटा को ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया के सामने पेश करना होगा फिर अगली स्‍टेज की परमिशन मिलेगी. फेज 1 और 2 में कुल मिलाकर एक साल और तीन महीने का वक्‍त लग सकता है.भारत में जन्‍म पर बच्‍चों को कई तरह के टीके लगाए जाते हैं. बाजार में इनकी कीमत 50 रुपये से लेकर 6,000 रुपये तक है. मसलन रोटावायरस 2 का टीका 689 रुपये से लेकर 1,499 रुपये में मिलता है. कोरोना वैक्‍सीन के दाम क्‍या होंगे, यह अभी साफ नहीं है. महामारी का जैसा प्रकोप है, उसे देखते हुए अधिकतर सरकारें इसे नागरिकों को मुफ्त में लगाएंगी. दुनिया के सबसे बड़े वैक्‍सीन डेवलपर, सीरम इंस्‍टीट्यूट ऑफ इंडिया के चेयरमैन आदर पूनावाला के मुताबिक, उनकी वैक्‍सीन करीब 1,000 रुपये में मिलेगी. उन्‍होंने कहा कि मगर ‘सरकारें इसे लोगों को मुफ्त में देंगी.’

वैक्‍सीन डेवलपमेंट की कई स्‍टेज होती हैं. शुरुआती स्‍टेज में लैब के भीतर वैक्‍सीन डेवलप की जाती है. फिर उसे चूहों और बंदरों पर टेस्‍ट किया जाता है. इसके बाद नंबर आता है इंसानों पर ट्रायल का. इसके तीन चरण होते हैं. पहले चरण में छोटे सैंपल साइज को वैक्‍सीन दी जाती है. परंपरागत रूप से इसमें फेल्‍योर रेट 37 पर्सेंट रहता है. फेज 2 में सैकड़ों स्‍वस्‍थ वालंटियर्स को वैक्‍सीन की डोज देकर उनपर असर देखा जाता है. अधिकतर वैक्‍सीन इसी चरण में फेल होती हैं. फेल्‍योर रेट करीब 69 पर्सेंट हैं. थर्ड स्‍टेज में हजारों वालंटिर्स पर वैक्‍सीन आजमाई जाती है. इस स्‍टेज में फेल्‍योर रेट 42 पर्सेंट है. आमतौर पर एक वैक्‍सीन को डेवलप होकर बाजार तक पहुंचने में कम से कम दो साल और औसतन 10 साल लगते हैं. कोरोना के चलते युद्धस्‍तर पर वैक्‍सीन बनाने का काम चल रहा है.

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