बंदी के कगार पर है देश की ‘शहद कारोबार’ पर शीघ्र ध्यान दे केन्द्र व बिहार सरकार : ललन
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार प्रदेश युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ललन कुमार ने कोरोना को लेकर देशव्यापी बंदी मे सरकार के असहयोगात्मक रवैया से बिहार के मुजफ्फरपुर में मधुमक्खी पालन उध्योग बंदी के कगार पर पहुंच गया है. कांग्रेस नेता ने कहा कि देश भर में सबसे अधिक शहद का उत्पादन मुजफ्फरपुर में होता है. यहां करीब 10 हजार लोग मधुमक्खी पालन से सीधे तौर पर जुड़े हैं जबकि इस कारोबार से जुड़े होने वाले की संख्या 50 हजार से अधिक है और मुजफ्फरपुर में करीब 30 लाख मधुमक्खी बक्सों का शहद उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है .
उन्होंने कहा कि साल भर में प्रति बक्से 40 किलो तक शहद निकलती है. लीची की खुशबू और मिठास वाली शहद की देश भर में विशेष मांग रहती है, लेकिन कोरोना संकट ने मधुमक्खी पालकों को परेशान कर दिया है. लीची के पेड़ों से फूल खत्म होने के बाद मधुमक्खियों को खाना नहीं मिल पा रहा है और न ही फूलों से पराग मिल रहा है.जिस वजह से मधुमक्खी पालक चीनी का घोल बनाकर मधुमक्खियों को बचाने की कोशिश कर रहें हैं.फूल का पराग नहीं मिलने से मधुमक्खियां काफी संख्या में मर रही हैं. इसके अलावा मधुमक्खियां अंडा भी नहीं दे रही हैं.
उन्होंने कहा कि सीजन के हिसाब से मधुमक्खी के जिंदा रहने और शहद उत्पादन के लिए मूवमेंट आवश्यक होता है,लेकिन कोरोना बंदी के कारण जगह-जगह मधुमक्खी पालकों से पैसे वसूलने की शिकायतें मिल रही है. ललन ने कहा कि सरकार और प्रशासन ने 15 दिन पहले कृषि कार्यों में छूट की तरह ही मधुमक्खी पालकों को भी एक जगह से दूसरे जगह बक्से को ले जाने के लिए पास निर्गत किया जाना है. लेकिन अभी तक मधुमक्खी पालक इस सुविधा से वंचित हैं.
युवा नेता ने कहा कि कोरोना संकट से पहले जहां 150 रूपया प्रति किलो तक शहद बिकता था वहीं अब ये 60 से 75 रूपया तक प्रति किलो ही शहद बिक पा रहा है. साथ ही बाहर से शहद खरीदने वाले खरीदार भी नहीं आ रहे हैं. मुजफ्फरपुर में डाबर, वैद्यनाथ और पतंजलि जैसे ब्रांड्स के लिये शहद की खरीदारी होती है, लेकिन खरीदार मधुमक्खी पालकों तक नहीं पहुंच रहे हैं. ऐसे में मधुमक्खी पालकों के लिए कोरोना बंदी काफी नुकसानदेह साबित हो रहा है.