खाने के तेल की बेकाबू कीमतों से बढ़ी सरकार की टेंशन, आज हो रही है अहम बैठक.

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सिटी पोस्ट लाइव : खाने के तेल की बढ़ती कीमतों में हो रही बेतहाशा बढ़ोतरी ने सरकार की नींद उड़ा दी है. पिछले  8-10 दिनों में खाद्य तेल की कीमतों को लेकर उपभोक्ता मंत्रालय काफी सक्रीय है. मंत्रालय ने कई ऐसे फैसले भी लिए हैं जिससे खाद्य तेल की बेलगाम होती कीमतों पर काबू पाया जा सके. आज भी उपभोक्ता मंत्रालय में एसेंशियल कमोडिटीज़ (आवश्यक वस्तुओं) विशेषकर Edible Oil को लेकर दोपहर 3 बजे बेहद अहम बैठक है. सूत्रों के मुताबिक उपभोक्ता मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक का एजेंडा खाद्य तेलों की कीमतों पर लगाम लगाने के लिए आगे की रणनीति बनाने पर होगा.

गौरतलब है कि साल भर पहले तक सोयाबीन तेल के दाम 70 रुपये से 80 रुपये प्रति लीटर हुआ करते थे, महंगा होने की स्थिति में रिटेल भाव 90 रुपये प्रति लीटर था. इसके बाद कोरोना काल के पहले लॉकडाउन के दौरान सोया तेल के दाम बेतहाशा बढ़ना शुरू हुए और इस साल तेल की कीमतों ने सारे पिछले रिकॉर्ड तोड़े दिए. हालात ये हो गए हैं कि सोया तेल आजकल 165 रुपये प्रति लीटर से लेकर 170 रुपये प्रति लीटर के भाव पर बिक रहा है.

तेल की कीमतों के बेकाबू होने की भनक जब केंद्र सरकार को लगी तो सरकार ने कदम उठाना शुरू कर दिए. इसी कड़ी में आज खाद्य सचिव की अध्यक्षता में एक अहम बैठक होगी. हालांकि ये बैठक कोरोना महामारी को देखते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए होगी. इसमें NAFED के मैनेजिंग डायरेक्टर से लेकर सचिव स्तर के तमाम अधिकारी मौजूद रहेंगे. इस बैठक में राज्य सरकारों के भी सीनियर अधिकारी मौजूद रह सकते हैं. जिन राज्यों में सोया और तिलहन का उत्पादन ज़्यादा है उन राज्यों के खाद्य और कृषि सचिव भी बैठक में शामिल होंगे. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और राजस्थान के खाद्य और कृषि सचिवों बैठक में शामिल हो सकते हैं.

आज की बैठक में तेल की कीमतों को कैसे काबू किया जाए इस पर कई कदमों पर फैसला हो सकता है, जैसे  इंपोर्टेड तेल पर लगने वाले सेस में कटौती की जा सकती है, ऐसा करने पर तेल आपूर्ति सस्ते में हो सकेगी और रिटेल में भी भाव गिरेंगे.  मिलर्स, स्टॉकिस्ट और तेल व्यापार से जुड़े कारोबारियों के लिए स्टॉक लिमिट से जुड़े दिशा निर्देश भी जारी हो सकते हैं. एसेंशियल कमोडिटीज़ एक्ट का इस्तेमाल कर एडिबल ऑयल की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए राज्यों को निर्देश दिया जा सकता है.

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