नियोजित शिक्षकों की मांग कितना जायज-नाजायज, क्या करनेवाली है नीतीश सरकार
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार के नियोजित शिक्षक ‘सामान कार्य के लिए सामान वेतन देने की अपनी मांग को लेकर लगातार आंदोलन की राह पर हैं. पटना हाईकोर्ट से जीते तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुँच गई. शुरू में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में पंचायत के जरिए चुने गए इन नियोजित शिक्षकों को नियमित अध्यपकों के बराबर वेतन देने के पटना हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.. सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि एक समान वेतन देने के मामले में मुख्य सचिव की अध्यक्षता कमेटी बनाई जाए .यह कमिटी देखे की इन शिक्षकों को नियमितों के समान वेतन देने के लिए क्या कुछ और टेस्ट आदि लिए जा सकते हैं. लेकिन सरकार सुप्रीम कोर्ट के सामने लगातार ये दलील देती रही कि ईन नियोजित शिक्षकों को नियमित अध्यपकों के बराबर वेतन देने के लिए उसके खजाने में पैसा नहीं है.
दरअसल बिहार में जितने शिक्षक हैं उसके 60% नियोजित शिक्षक हैं.जाहिर है बिहार की जो भी शिक्षा व्यवस्था आज है, वह इनके बलबूते ही है. सवाल ये उठता है जिनके बूते बिहार की शिक्षा व्यवस्था है उनके साथ यह असमानता क्यों. उन्हे बराबरी का हक़ क्यों नहीं दिया जाता. एक ही काम के लिए किसी को 50 हजार और किसी को मात्र 6000 रुपये वेतन देने का भला क्या मतलब है?
राज्य सरकार की दलील है कि पंचायत के जरिए 2006 में और इससे पूर्व चुने गए 3.5 लाख शिक्षकों को एक समान वेतन देने के लिए सरकार को 10,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने होंगे यानी इससे राज्य पर 28,000 करोड़ रुपये का भार पड़ेगा. सरकार के पास इतना पैसा नहीं है.
इसी दलील पर सुप्रीम कोर्ट नियोजित शिक्षकों के पक्ष में फैसला चाहकर भी नहीं दे सका.लेकिन पटना हाईकोर्ट के आदेश पर गौर फरमाए. पटना हाई कोर्ट ने नियोजित शिक्षकों के पक्ष में फैसला देते हुए कहा था कि जब स्कूल एक है, योग्यता एक है, बच्चे एक है, काम भी एक है तो वेतन में असमानता क्यों? राज्य सरकार ने कहा कि पंचायत शिक्षकों का काम एक जैसा नहीं है. वह पंचायत क्षेत्र में ही रहते हैं जबकि नियमितों का राज्य भर में तबादला होता है. वहीं उनका चयन भी उतना कठिन नहीं होता. उनके लिए एक पब्लिक नोटिस निकाला जाता है और मेरिट पर चयन कर लिया जाता है. जाहिर है राज्य सरकार नियोजित शिक्षकों को योग्य नहीं मानती. लेकिन एक बड़ा सवाल- क्या सरकार ने राज्य की शिक्षा व्यवस्था योग्य शिक्षकों के हवाले कर दिया है? अगर ये शिक्षक योग्य नहीं हैं तो इनकी योग्यता बढाने के लिए सरकार क्या कर रही है? अगर इनकी योग्यता बढाने के लिए सरकार अगर कुछ कर रही है तो फिर इन्हें सामान वेतन देने से कैसे भाग सकती है?
फिर्हाल ईन सवालों का जबाब बिहार सरकार के पास नहीं है. शिक्षक आरपार की लड़ाई लड़ने के मूड में हैं. अगर उनकी मांगें नहीं मानी गई तो वो चुनाव में राज्य सरकार को सबक सिखा सकते हैं. कहने के लिए भले इनकी संख्या महज साधे तीन लाख है लेकिन ये लाखों करोड़ों परिवारों से सीधे जुड़े हैं और चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की कूबत रखते हैं.जाहिर है ज्यादा दिनों तक सरकार इनकी मांगों को अनसुना नहीं कर सकती. विधान सभा चुनाव अगले साल अक्टूबर-नवम्बर महीने में है .ज्यादा संभावना है ठीक चुनाव के पहले सरकार नियोजित शिक्षकों के पक्ष में फैसला लेकर फिर से सत्ता में अपनी वापसी सुनिश्चित करेगी.