दीघा रेल लाइन किनारे 560 कच्चे-पक्के अवैध निर्माणों पर चलेगा बुलडोजर
सिटी पोस्ट लाइव : रेलवे से स्वीकृति मिलते ही आर ब्लॉक-दीघा रेलखंड पर सड़क निर्माण को लेकर प्रशासन सक्रिय हो गया है. प्रशासन अब रेलवे की जमीन को खाली करवाने के लिए बुलडोजर चलाने के मूड में आ चुकी है, जिसके लिए भूखंड से अतिक्रमण हटाने का अभियान चलाएगी. इतना ही नहीं पूरे रूट में 560 कच्चे-पक्के अवैध निर्माणों को चिह्नित किया गया है.
इन्हें हटाने के लिए पहले इनके मालिकाें को सात दिनों का समय दिया जायेगा. अगर इस अवधि में उन्होंने अपने-अपने निर्माण को नहीं हटाया तो प्रशासन ने इन्हें तोड़ देगा. वहीं, इस ट्रैक के किनारे इंद्रपुरी और राजीव नगर इलाके में बने आधा दर्जन से अधिक मंदिरों को दूसरी जगह शिफ्ट किया जायेगा.
शुक्रवार को डीएम कुमार रवि ने एसडीओ सुहर्ष भगत व पुलिस-प्रशासन की टीम के साथ इस रेलखंड का निरीक्षण किया. इस दौरान उन्होंने अतिक्रमण से लेकर पूरे भूखंड की चौड़ाई, लंबाई और बगल में बह रहे नाले की वर्तमान स्थिति देखी. निरीक्षण के बाद डीएम कुमार रवि ने बताया कि अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू करने से पहले सात दिनों तक लोगों से अपना निर्माण खुद हटाने की मुनादी की जायेगी, जिसकी जिम्मेदारी स्थानीय थाना व अंचलाधिकारियों को दी गयी है.
बता दें रेलवे किनारे जो निर्माण बने हैं उनमे ज्यदातर झुग्गी और कच्चे माकन हैं. एसडीअो सदर ने बताया कि फिलहाल जमीन के कागजात रेलवे की ओर से नहीं आये हैं. कागजात मिलने के बाद प्रशासन अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई करेगा. इसके लिए विस्तृत कार्ययोजना बनायी जा रही है. पूरी जमीन पांच थानों के अंतर्गत आती है. फिलहाल थाना व अंचलाधिकारी को निर्देश दिया गया है कि अब से कोई नया निर्माण नहीं हो, इसका ध्यान रखा जाये. अतिक्रमण हटाने के लिए प्रशासन के अलावा रेलवे और पथ निर्माण विभाग के लोगों को भी साथ रखा जायेगा.
गौरतलब है कि इस 150 साल पुरानी रेल ट्रैक की छह किलोमीटर लम्बी और 30 मीटर चौड़ाई की जमीन का पुनर्मूल्यांकन करा कर बिहार सरकार रेलवे को 221 करोड़ रुपये देने पर सहमत हो गई है. इस 71 एकड़ जमीन का पहले रेलवे ने बाजार दर पर 896 करोड़ रुपये मूल्य तय किया था, मगर केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद इसके पुनर्मूल्यांकन के बिहार सरकार के प्रस्ताव को रेलवे ने स्वीकार कर लिया.अब इसकी कीमत मात्र 221 करोड़ रुपये तय किया गया है.
आर ब्लॉक-दीघा रेललाइन पर 6 लेन सड़क तो बन जायेगी लेकिन जमीन लंबाई में होने के कारण रेलवे इसका कोई व्यावसायिक उपयोग नहीं कर सकता है. छह किलोमीटर लंबी इस ट्रैक पर ट्रेन के परिचालन में रेलवे को प्रति वर्ष एक करोड़ रुपये खर्च करना पड़ता हैं , जबकि प्रतिदिन मात्र 20 से 25 लोग सफर करते हैं और 60 हजार रुपये की सालाना आमदनी होती है.