एचआईवी की तरह कोरोना वायरस नहीं होगा ख़त्म, इसके साथ सीखना होगा जीना.
सिटी पोस्ट लाइव : कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए दवा या वैक्सीन को लेकर कई जगह काम चल रहा है लेकिन अभी तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है.बीबीसी के साथ विशेष बातचीत में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के विशेष दूत डेविड नाबारो ने भी कहा था कि लोगों तक वैक्सीन पहुँचने में ढाई साल का समय लग सकता है. डब्लूएचओ ने कहा है कि ये वायरस एचआईवी की तरह इंसानी दुनिया का हिस्सा बनकर रह सकता है.विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से आए इस बयान ने कई चिंताओं और सवालों को जन्म दिया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार संभव है कि कोरोना वायरस हमारे बीच क्षेत्र विशेष का एक अन्य वायरस बन जाए और यह कभी नहीं जाए. इसे लेकर कोई वादा नहीं किया जा सकता कि यह कब ख़त्म होगा. इसकी कोई तारीख़ नहीं है. यह बीमारी हम लोगों के लिए लंबी अवधि का संकट बन सकती है. ये वायरस एक नया एंडेमिक वायरस बन सकता है. आशंका है कि ये वायरस कभी ख़त्म न हो. एचआईवी वायरस ख़त्म नहीं हुआ है. लेकिन हमने इस वायरस के साथ जीना सीख लिया है. इससे बचने के लिए थेरेपी और बचाव ढूंढ लिए हैं और अब लोग पहले जितना डर महसूस नहीं करते हैं.
चिकित्सा जगत के लोग भी मानते हैं कि लॉकडाउन लगाकर इस वायरस से निजात नहीं पाया जा सकता है और इससे निजात पाने के लिए आपको हर्ड इम्युनिटी की ओर जाना होगा.हर्ड इम्युनिटी से आशय उस स्थिति से है जब किसी जगह की 60 फ़ीसदी जनसंख्या इस वायरस का संक्रमित होने के बाद इस वायरस से लड़ने में कामयाब हो गई हो.इसके प्रसार को रोकने के लिए दुनिया भर की सरकारों को लॉकडाउन जैसे क़दम उठाने पड़े हैं. लेकिन एचआईवी को लेकर ऐसा नहीं था. एचआईवी एक दूसरे को छूने से नहीं फैलता है.
कोरोना वायरस की तरह एचआईवी की भी कोई वैक्सीन अब तक सामने नहीं आई है. लेकिन एचआईवी को लेकर लोगों के बीच एक बेहतर समझ विकसित हुई है. सरकारों से लेकर ग़ैर-सरकारी संस्थानों ने इसके लिए दशकों लंबे अभियान चलाए हैं जो अभी भी जारी हैं. कोरोना वायरस के मामले में ये सब करना एक चुनौती जान पड़ता है. सोशल मीडिया से लेकर आम लोगों के बीच एक राय बनी हुई है कि इस तरह से ज़िंदगी आख़िर कब तक जी जा सकती है और लोग इसके ख़त्म होने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं.
ऐसी बीमारियों के मामले में एक सामान्य लॉकडाउन वायरस के प्रसार की रफ़्तार धीमी कर सकता है. लेकिन लॉकडाउन खुलने के बाद संक्रमण तेज़ी से बढ़ते हैं. लोगों के मरने की संख्या को घटाना है और मौतों की संख्या घटाने का बस एक तरीक़ा लोगों को बेहतर इलाज मुहैया कराना है.विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से आई इस जानकारी के बाद लोगों में निराशा का भाव है.चिकित्सा जगत के लोगों के अनुसार जब जनसंख्या में रोग प्रतिरोधक क्षमता 60 फ़ीसदी के आसपास पहुंच जाती है तो कुछ समय के लिए इस बीमारी का संक्रमण रुक जाएगा. लेकिन ये कहीं जाएगा नहीं. ये उसी तरह हमारे बीच रहेगा जैसे मीज़ल्स है. जैसे चिकन पॉक्स है. अब इस पैन्डेमिक के दौरान वे बीमारियां कहीं चली नहीं गई हैं. वे हमारे बीच मौजूद हैं. बस धीमे-धीमे एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में पहुंच रही हैं. इसे ही बीमारी का एन्डेमिक स्टेज कहते हैं.