मोतिहारी : एंबुलेंस के अभाव में ब्लड कैंसर से जुझ रहे तीन वर्षीय मासूम की मौत
सिटी पोस्ट लाइव : पिछले दिनों जहानाबाद में एक मासूम ने अपनी मां के गोद में दम इसलिए तोड़ दिया क्योंकि अस्पताल में खड़ी एम्बुलेंस के कर्मचारियों ने रेफर बच्चे को ले जाना जरुरी नहीं समझा. अस्पताल प्रबंधन ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया. जिस कारण बच्चे ने तड़प-तड़पकर अपनी मां के गोद में दम तोड़ दिया. बिहार में अस्पतालों के असंवेदनशील रवैयों ने एकबार फिर एक मासूम की जान ले ली. ताजा मामला मोतिहारी के कल्याणपुर पीएचसी की है. आरोप है कि ब्लड कैंसर से जुझ रहे तीन वर्षीय मासूम प्रिंस को पटना जाने के लिए एम्बुलेंस कर्मियों ने पांच हजार रुपये की मांग की. इस दौरान मरीज के परिजनों ने बात की तो ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर एम्बुलेन्स को मोतिहारी तक ही देने की बात कर मामले को टाल दिया, नतीजतन दादा की गोद में ही मासूम प्रिंस ने अन्तिम सांस ली और उसके परिजन देखते और हाथ मलते रह गये.
बताया जाता है कि कल्याणपुर प्रखंड के राजपुर आजादनगर के मुन्ना कुमार का तीन वर्षीय पुत्र प्रिंस कुमार कैंसर से पीड़ित था और परिजन उसका इलाज महावीर कैंसर अस्पताल पटना में करवा रहे थे. गरीबी से जुझते परिवार के सामने दुख का बडा पहाड खड़ा था. इलाज के बीच में ही परिजन डॉक्टरों के कहने पर प्रिंस को लेकर घर आ गये थे. कोरोना बन्दी के बीच यहां उसकी हालत खराब होने पर कल्याणपुर पीएचसी लाये. डॉक्टर ने अपनी विवशता को बताते हुए मोतिहारी सदर अस्पताल रेफर कर दिया लेकिन परिजन जानते थे कि उसका इलाज पटना में ही हो सकता है. जिस पर परिजनों ने डॉक्टर से पटना जाने के लिए एम्बुलेन्स की मांग की.
इस मामले में कल्याणपुर पीएचसी के चिकित्सक डॉ मोहित कुमार ने बताया कि नियम के अनुसार कल्याणपुर पीएचसी से मोतिहारी सदर अस्पताल के लिए एम्बुलेन्स दिया जाता है लेकिन परिजन पटना जाने की बात कर रहे थे. एम्बुलेन्स कर्मयों के पांच हजार रुपये की मांग पर डॉक्टर ने अनभिज्ञता जताई. जाहिर है बिहार में कभी एम्बुलेंस की कमी के कारण लोगों की जानें जाती थी. अब एम्बुलेंस होते हुए भी लोगों की जाने जाती हैं. गौरतलब है कि जब अस्पताल किसी मरीज को रेफर करता है तो क्या मुफ्त एम्बुलेंस सेवा नहीं दे सकता. क्या सरकारी स्वास्थ्य सेवा में ऐसा प्रावधान नहीं. यदि कोई गरीब, जिसके पास पैसे नहीं उन्हें एम्बुलेंस नसीब नहीं हो सकता.