सिटी पोस्ट लाइव : सीएजी (CAG) की ताजा रिपोर्ट ने बिहार (Bihar) की मेडिकल शिक्षा व्यवस्था का पोल खोलकर रख दिया है. रिपोर्ट में मेडिकल शिक्षा समेत कई विभागों की खामियां उजागर हो गईं. 12 मेडिकल कालेजों ( Medical College) का निर्माण शुरू होने के बाद अब तक केवल दो ही मेडिकल कॉलेज कार्य करना शुरू कर सके. इसे आबादी के हिसाब से बेहत कम माना गया है. बिहार लक्ष्य के हिसाब से संस्थानों का निर्माण करने में पीछे है.
दुसरे राज्यों की तुलना में बिहार पिछड़ा बताया गया है.बिहार देश की कुल आबादी का 8.6 फीसदी के साथ तीसरा सबसे आबादी वाला राज्य है. एक लाख की आबादी पर सरकारी डॉक्टर-नर्स-प्रसाविका के अनुपात का राष्ट्रीय औसत 221 है. वहीं, बिहार में यह अनुपात 19.74 था. सीएजी ने अपने रिपोर्ट में पाया है कि वर्ष 2006-07 से 2016-17 के बीच 12 मेडिकल कॉलेजों का निर्माण कार्य शुरु किया गया था, लेकिन वर्ष 2018 तक केवल दो मेडिकल कॉलेज कार्यरत हो सके हैं. 2018 तक 61 के लक्ष्य के बजाय महज दो नर्सिंग संस्थानों का निर्माण हो सका है. बिहार सरकार के मौजूदा मेडिकल कॉलेजों की सीटों को भी बढ़ाने की कोशिश नहीं की गई.
बिहार में एक लाख की आबादी पर फीजिशियन, आयुष चिकित्सक, दंत चिकित्सक और नर्सों की 92 फीसदी तक सीटें खाली हैं. मेडिकल शिक्षा की सभी शाखाओं में टीचिंग स्टाफ की कमी 6-56 फीसदी और नॉन टीचिंग स्टाफ की कमी 8-70 फीसदी के बीच रही. 5 मेडिकल कॉलेजों में टीचिंग घंटों में एमसीआई की शर्तों के खिलाफ 14 से 52 के बीच कमी पाई गई है. टीचिंग ऑवर में कमी का कारण फैकल्टी का ना होना है.
रिपोर्ट में कहा गया कि पंचायती राज संस्थानों और नगरपालिकाओं के सभी स्तरों पर मैन पॉवर का काफी अभाव था. पंचायत सचिव, ग्राम पंचायत स्तर पर सभी मामलों को देखने के लिए केवल एक व्यक्ति था, लेकिन राज्य स्तर पर 56 फीसदी पद खाली थे. एलईडी लाईट की खरीद के लिए टेंडर के मूल्यांकन के दौरान न्यूनतम दर वाले टेंडर डालने वाले को नगर परिषद्,अरवल ने जान-बूझकर नहीं लिए जाने पर 50 लाख 33 हजार रुपये की राशि का अधिक भुगतान किया गया. लापरवाही से कूड़ेदान की खरीद पर दो शहरी निकायों को 6 करोड़ 98 लाख रुपये का नुकसान हुआ.