महाराष्ट्र: सत्ता का खेल अभी जारी है, विश्वास मत में बीजेपी को हराने की होगी पूरी कोशिश.
सिटी पोस्ट लाइव : एक सप्ताह पहले ही सिटी पोस्ट लाइव के चीफ एडिटर श्रीकांत प्रत्यूष ने अपने सम्पादकीय विडियो में महाराष्ट्र में बीजेपी-शिव सेना की सरकार बन जाने का ऐलान कर दिया था, जो अब सच साबित हो चूका है. शनिवार की सुबह 8 बजे देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली.शरद पवार के भतीजे अजित पवार उपमुख्यमंत्री बन गए.अब खबर आ रही है कि शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने खेल कर दिया और शरद पवार को पता ही नहीं चला.
लेकिन इस खबर पर यकीन करना भी बहुत आसान नहीं है क्योंकि शरद पवार को राजनीति के खेल में मात देना कोई आसान काम नहीं है.वो एक ग्रैंडमास्टर हैं. शरद पवार को एक चतुर (शातिर) राजनेता माना जाता है. चाहे वह अहमद पटेल हों या मुलायम सिंह यादव और शरद यादव , ये लोग राजनीति के वे खिलाड़ी हैं जिन्होंने राजनीति में कई कारनामे किए हैं.हालांकि शरद पवार खुद ये संदेश देना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी मुलाकात उनके भतीजे द्वारा बीजेपी के साथ समझौता कर लेने के बाद हुई थी.यानि शरद पवार की मर्जी से ये सबकुछ नहीं हुआ.
गौरतलब है कि प्रधानमन्त्री से मुलाक़ात के बाद पत्रकारों के बार-बार पूछे जाने पर कि क्या वह बीजेपी के साथ जाना चाहेंगे, शरद पवार ने स्पष्ट रूप से इसे ख़ारिज कर दिया था.शरद पवार और उनकी बेटी सुप्रिया सुले ने कहा कि अजित पवार ने विद्रोह कर दिया है. उन्होंने अपने व्हाट्सएप पर एक स्टेटस अपडेट में कहा “पार्टी और परिवार का विभाजन.” उन्होंने कहा, “आप जीवन में किस पर भरोसा करते हैं? जीवन में कभी धोखा महसूस नहीं किया. बचाव किया और उससे प्यार किया… देखो मुझे बदले में क्या मिला.”वह स्पष्ट रूप से अपने चचेरे भाई अजीत पवार का जिक्र कर रही थी, जिन्होंने खेमा बदला है. यह सर्वविदित है कि अजित पवार और सुप्रिया सुले का एक-दूसरे से कभी बनी नहीं. वे दोनों शरद पवार के बाद एनसीपी का नेतृत्व करना चाहते थे.
शुरूआत में, ट्विटर पर राजनीतिक विश्लेषकों को इस पर कोई भरोसा नहीं हुआ. वे 100 फ़ीसदी आश्वस्त थे कि हमेशा की तरह इस बार भी यह शरद पवार की चतुराई और चालाकी है. लोगों ने सोचा कि यह सब एक स्क्रिप्टेड ड्रामा है.ऐसी अटकलें लगाई जाने लगी कि शरद पवार को भारत का अगला राष्ट्रपति और सुप्रिया सुले को मोदी सरकार में मंत्री बनाया जा सकता है. कांग्रेस पार्टी के अभिषेक मनु सिंघवी ने एक प्रसिद्ध गीत की पंक्तियाँ ट्वीट करते हुए कहा, “वो जो कहते थे कि हम न होंगे जुदा,बेवफ़ा हो गए देखते देखते.”
हालांकि, शरद पवार अभी भी ये साबित करने पर तुले हैं कि ये सबकुछ उनको अँधेरे में रखकर किया गया है. उन्होंने कहा कि जल्द ही शिवसेना और कांग्रेस नेताओं के साथ वो एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे. अगर ये सही है तो यहीं कहा जाएगा कि ज्यादा चालाकी दिखानेवाले कभी कभी अपने ही जल में फंस जाते हैं जिस तरह से एक शिकारी भी कभी कभी शिकार हो जाता है.यहीं शरद पवार के साथ हुआ है.
अमित शाह ने राजनीति के खेल में शरद पवार के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी के नेता अहमद पटेल को भी शिकस्त दे दी है. पटेल के साथी नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी ट्वीट किया कि उन्होंने कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना के समझौते को अंतिम रूप देने के प्रयास में बहुत लंबा समय लगा दिया.महाराष्ट्र में दो सप्ताह पहले 12 नवंबर को राष्ट्रपति शासन लगाया गया था. उस समय तक, तीनों दल बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए पहले ही सरकार बनाने के लिए सहमत हो गए थे.12 और 23 नवंबर के बीच, तीनों दलों ने तीनों दलों के गठबंधन अंतिम रूप देने के लिए कई बैठकें कीं. गठबंधन का नाम, न्यूनतम साझा कार्यक्रम… ऐसा लगता है जैसे उन्हें विश्वास था कि बीजेपी ने सरकार बनाने का विचार छोड़ दिया है. लेकिन बीजेपी ने बार-बार कहा कि देवेंद्र फडणवीस ही मुख्यमंत्री होंगे.
तीनों दलों के बीच पकने वाली इस राजनीतिक खिचड़ी के बारे में किसी को भनक तक नहीं लगी.बीजेपी ने अजित पवार पर दाना डाला. वह पहले भी एक बार राज्य के उप मुख्यमंत्री रह चुके हैं.मुख्यमंत्री के रूप में उद्धव ठाकरे की अगुवाई वाली प्रस्तावित राकांपा-कांग्रेस-शिवसेना सरकार में उनके फिर से उप मुख्यमंत्री बनने की संभावना थी. ऐसे में अपने ही चाचा के ख़िलाफ़ बग़ावत करके अजित पवार को क्या हासिल हुआ?
60 साल के भतीजे अजित पवार के पास प्रस्ताव स्वीकार करने के कई कारण थे. पहला और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे वह जेल जाने से बच जाएंगे. उनके ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के कई आरोप हैं. ऐसे में उन्हें बीजेपी की साफ़ गंगा में नहाने की ज़रूरत है. महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक से जुड़ा एक कथित घोटाला 25,000 करोड़ रुपये का मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित है. प्रवर्तन निदेशालय ने चुनाव से ठीक पहले इस साल अगस्त में इस कथित घोटाले के सिलसिले में अजित पवार के ख़िलाफ़ जांच शुरू की थी.दूसरा, पुराना आरोप सिंचाई घोटाले को लेकर है. यह उस समय हुआ था जब अजित पवार पहली बार उप-मुख्यमंत्री बने थे.जेल जाने से बचने के अलावा, एक और कारण है जिसके कारण अजित पवार ने भाजपा का प्रस्ताव स्वीकर किया. यदि वह एनसीपी को तोड़ने में सफल हो जाते हैं, तो उनका प्रयास शरद पवार का उत्तराधिकारी बनने का होगा. वह महाराष्ट्र में सुप्रिया सुले के विरोधी के रूप में मुख्य मराठा नेता बनने की कोशिश करेंगे.
अजित पवार की छवि अब एक भ्रष्ट बाहुबली की है. वह महाराष्ट्र में उसी तरह हैं जिस तरह उत्तर प्रदेश में शिवपाल यादव हैं. वह अब अपनी छवि बदलने की कोशिश कर सकते हैं.हालांकि, किस्सा अभी खत्म नहीं हुआ है. कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना 30 नवंबर को विश्वास मत में बीजेपी को हराने की पूरी कोशिश करेगी. और इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाये जाने का आप्शन उनके पास है.दलबदल विरोधी कानून से बचने के लिए, भाजपा को एनसीपी के दो तिहाई या 30 नवंबर को सदन में मौजूद एनसीपी के कम से कम दो तिहाई विधायकों की ज़रूरत होगी.एनसीपी के पास 54 विधायक हैं और भाजपा को कम से कम 35 विधायकों की ज़रूरत है. शरद पवार का कहना है कि भाजपा के पास केवल 10-12 विधायक हैं. सत्ता का खेल अभी जारी है.