BJP-JDU क्यों बने हुए हैं एक दूसरे की मज़बूरी, आंकड़ों के जरिये समझिए
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में क्यों जेडीयू-बीजेपी एक दुसरे की मज़बूरी बन चुके हैं.क्यों दोनों एक दुसरे से अलग होने की जोखिम लेने को तैयार नहीं हैं. इस सवाल का जबाब जानने के लिए पिछले 15 के बिहार के चुनाव परिणामों पर गौर फरमाना बेहद जरुरी है. ये आंकड़े ये बताने के लिए काफी हैं कि नीतीश कुमार और बीजेपी के लिए एक दुसरे को छोड़ना आसान नहीं है. 2005 में जेडीयू और बीजेपी ने मिलकर चुनाव लड़ा. NDA की सरकार बन गई. वर्ष 2010 के चुनाव में भी यह गठबंधन जारी रहा. इस साल भी बड़ी सफलता मिली.
लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू-बीजेपी की दोस्ती टूट गई.दोनों को नुकशान हुआ लेकिन जेडीयू को बहुत ज्यादा नुकशान हुआ. जेडीयू दो सीटों पर ही सिमट गया.लेकिन एलजेपी और आरएलएसपी गठबंधन को अप्रत्याशित सफलता मिल गई. हालांकि इस सफलता की वजह मोदी लहर था न कि गठबंधन का कमाल. 2015 के विधान सभा में बाजी पलट गया. नीतीश कुमार के साथ आरजेडी चुनाव लड़ा और शानदार सफलता मिली.लेकिन फिर भी नीतीश कुमार आरजेडी के साथ ज्यादा दिन तक नहीं रह पाए. फिर बीजेपी के साथ आ गए और फिर 2019 के चुनाव में NDA को अप्रत्याशित सफलता मिली. एनडीए को 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल हुई.
ये आंकड़े ये बताने के लिए काफी हैं कि नीतीश कुमार और बीजेपी की जोड़ी को बिहार में हरा पाना संभव नहीं है. बीजेपी अपने बूते बिहार में सरकार नहीं बना सकती लेकिन नीतीश कुमार आरजेडी के साथ जाकर सरकार जरुर बना सकते हैं.नीतीश कुमार आरजेडी के साथ असहज मह्सुश करते हैं और बीजेपी का कम बिना नीतीश कुमार के बनने वाला नहीं है. यहीं वजह है कि अमित शाह ने उप-चुनाव से पहले नीतीश कुमार के नेत्रित्व में आगामी विधान सभा चुनाव लड़ने का एलान कर अपने कार्यकर्ताओं के सारे असमंजस को दूर कर दिया.
एक तरफ NDA एकजुट दिख रहा है दूसरी तरफ महागठबंधन छितराया हुआ है. महागठबंधन उप-चुनाव में ही बिखर गया है. उपेन्द्र कुशवाहा तो शांत हैं लेकिन हम पार्टी के सुप्रीमो जीतन राम मांझी और वीआइपी पार्टी के सुप्रीमो मुकेश सहनी तेजस्वी यादव के खिलाफ ही ताल ठोक रहे हैं. इतना ही नहीं जीतन राम मांझी तो कांशी राम के तर्ज पर अकेले चुनाव मैदान में उतरने का एलान कर चुके हैं. मुकेश सहनी क्या करेगें,किसी को पता नहीं है.2020 में बीजेपी -जेडीयू की यह जोड़ी कितना कामयाब होती है ये तो वक्त बताएगा लेकिन ये आंकड़े एनडीए के पक्ष में हैं.