सिटी पोस्ट लाइव : एलजेपी भले टूट गई है.चिराग पासवान के साथ भले पार्टी के 5 सांसद आज नहीं हैं.लेकिन सबकी नजर चिराग पासवान पर ही टिकी हुई है.कांग्रेस पार्टी हो या फिर आरजेडी दोनों के लिए चिराग पासवान संजीवनी बन सकते हैं. विधान सभा चुनाव लड़कर चिराग ने ये तो दिखा ही दिया है कि वो अकेले भले चुनाव जीत नहीं सकते लेकिन किसी को चुनाव हारने और जिताने में अहम् भूमिका निभा सकते हैं. Chirag Paswan के चाचा पशुपति पारस तो पहले ही अपनी NDA भक्ति दिखा चुके हैं लेकिन चिराग किसके साथ जायेगें, अभी बता पाना मुश्किल है. चिराग पासवान ने सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) पर लोजपा में हुई टूट के लिए मास्टरप्लान बनाने का आरोप लगा चुके हैं. दूसरी ओर राजद नेता तेजस्वी यादव (RJD leader Tejaswi Yadav) ने चिराग को अपने साथ आने का ऑफर दे दिया है. कांग्रेस ने भी चिराग पासवान को बड़ा नेता बताते हुए अपने साथ आने का ऑफर दिया है. सबकी नजर तेजस्वी के ऑफर पर चिराग पासवान की आनेवाली प्रतिक्रिया पर टिकी है.
बुधवार को करीब दो महीने बाद बिहार लौटे नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने लोजपा सांसद चिराग पासवान को राजद के साथ महागठबंधन में आने का निमंत्रण दिया. उन्होंने चिराग पासवान को भाई संबोधित करते हुए कहा कि चिराग भाई को तय करना है कि बंच ऑफ थॉट्स के पुर्जे के साथ रहेंगे या बाबा साहेब ने जो संविधान लिखा उसका साथ देंगे. चिराग किसके साथ रहना पसंद करेंगे ये उन्हीं को तय करना है. जाहिर है इसी के साथ ही बिहार की सियासत में यह सवाल उठने लगा है कि क्या चिराग-तेजस्वी साथ आ सकते हैं? अगर ऐसा हुआ तो आने वाली सियासत पर क्या असर हो सकता है? क्या भाजपा-जदयू की जोड़ी को चिराग-तेजस्वी मिलकर मात दे सकते हैं?
राजनीतिक जानकार मानते हैं पशुपति कुमार पारस के पास भले पार्टी के सभी 5 सांसद हैं लेकिन एलजेपी के कोर वोटर अभी भी चिराग पासवान के साथ ही हैं. वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में सीएम नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के गठबंधन के खिलाफ जाकर भी चिराग ने अपने दम पर लोजपा को लगभग 26 लाख वोट दिलाया था. यह कुल वोट का 6 प्रतिशत होता है जो बिहार की सियासत में सत्ता समीकरण को उलट-पलट करने में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है.chirag paswan की वजह से प्रदेश की सबसे बड़ी पार्टी से JDU तीसरे नंबर की पार्टी बन गई.
बीते 2020 विधानसभा चुनाव में वोटों के समीकरण को आंकड़ों में देखें तो साफ नजर आता है कि चिराग फैक्टर बहुत बड़ा अंतर ला सकता है. दरअसल, एनडीए के खाते में 1 करोड़ 57 लाख 01 हजार 226 वोट पड़े थे, जबकि महागठबंधन के खाते में 1 करोड़ 56 लाख 88 हजार 458 वोट पड़े. अगर इसे प्रतिशत के लिहाज से देखें तो एनडीए को 37.26% वोट मिले जबकि महागठबंधन को 37.23 % वोट मिले. महागठबंधन और एनडीए की जीत में फैसला केवल लगभग 12000 वोट का था.तेजस्वी की नजर अब चिराग के उस 6 प्रतिशत वोट पर आ टिकी है. इसकी वजह यह भी है कि तेजस्वी और चिराग दोनों यह बात मानते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का यह आखिरी कार्यकाल है और 2025 का विधानसभा चुनाव में वे नहीं होगे. ऐसे में अगर बिहार के लोगों के पास दो युवा नेताओं का विकल्प रहेगा तो सियासत कोई भी करवट ले सकता है. वहीं, दोनों अगर साथ आ जाते हैं तो राजद का पुराना समीकरण काफी हद तक फिर से जीवित हो जाएगा जो एनडीए की राजनीति के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है.
दरअसल तेजस्वी यादव अभी से ही 2024 लोकसभा और 2025 विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं. जाहिर है अगर महागठबंधन के खाते में चिराग पासवान के यह 6 प्रतिशत वोट जोड़ दिए जाएं तो 43 प्रतिशत वोट के साथ तेजस्वी के लिए बड़ा बूस्ट साबित होगा. इसके साथ ही राजद की कोशिश है कि रामविलास पासवान के उत्तराधिकारी को अपने साथ ले आएं तो दलित सियासत के लिहाज से एक बड़े वर्ग की 16 प्रतिशत आबादी की मानसिकता पर भी असर पड़ेगा. इसकी वजह यह है कि आज भी राम विलास पासवान को ही बिहार का सबसे दलित नेता माना जाता है.
2020 चुनाव में यह साबित हो गया कि मुस्लिम और यादव मतदाता अभी भी आरजेडी के साथ खड़े हैं. आरजेडी के पास आज भी 17 प्रतिशत मुस्लिम और 16 प्रतिशत यादव वोट बैंक है. ऐसे में अगर चिराग पासवान महागठबंधन में शामिल हो जाते हैं तो उसकी ताकत कई गुना बढ़ जाएगी. तेजस्वी इसे लालू के वोट बैंक को री स्टोर करने के लिहाज से भी देख रहे हैं जो बिहार की सियासत में सत्ता के बदलाव की कहानी लिख सकती है.चिराग पासवान अगर तेजस्वी के साथ आते हैं तो 2024 लोकसभा चुनाव और आगामी 2025 के विधानसभा चुनाव में वह बिहार में एनडीए को हरा सकते हैं.लेकिन सबकुछ बीजेपी के रुल्ह पर निर्भर करेगा,चिराग paswan तो आज भी मोदी भक्ति दिखा रहे हैं लेकिन क्या मोदी को लगता है अभी भी उनके हनुमान में लंका जलाने की ताकत है.