जहर उगलते वाहनों के परिचालन से बेगूसराय वासियों का जीना हुआ दुभर
सिटी पोस्ट लाइव : पहले देश के बड़े-बड़े शहरों व महानगरों में प्रदूषण बड़ी समस्या होती थी। इसकी वजह कल-कारखानों व डीजल-पेट्रोल पर चलने वाले वाहनों से निकलने वाली धुआं को बताया जाता है। परन्तु अब तो यह समस्या छोटे शहरों से लेकर गांव तक भी पहुंचने लगी है। इसका प्रमाण है विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रस्तुत किया गया रिपोर्ट है जिसमें विश्व की सबसे प्रदूषित 15शहरों की सूची में भारत के ही 14शहर शामिल हैं। इसमें बिहार की राजधानी पटना को दिल्ली से भी ज्यादा प्रदूषित बताया गया है और प्रदूषित शहरों की सूची में पांचवां स्थान दिया गया है। वहीं रिपोर्ट के मुताबिक गया पटना से भी ज्यादा प्रदूषित है। जबकि मुजफ्फरपुर का तीसरा स्थान है बिहार में प्रदूषण के लिहाज से। कमोबेश बेगूसराय शहर की स्थिति भी भिन्न नहीं है। छोटे शहरों में लगातार बढ़ रहे प्रदूषण का एक बड़ा कारण सड़क पर धुआं उगलते पुराने वाहन भी है।इन वाहनों से निकलने वाले धुंए से फेफड़े व अन्य अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है और लोग कई तरह की बीमारियों का शिकार बन रहें हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 90फीसदी वैश्विक आबादी जहरीली आबोहवा में सांस लेने को मजबूर हैं। जिसमें से 70लाख लोगों की मौत हो जाती है। हालांकि परिवहन विभाग इस पर नियंत्रण की बात तो करती है। किंतु प्रर्याप्त साधन-संसाधन के अभाव में यह संभव नहीं हो पा रहा है। बेगूसराय जिला में चलने वाले वाहनों की बात करें तो यहां छोटे-बड़े दो लाख से अधिक निबंधित वाहन हैं,जिनका परिचालन सड़क पर होता हैै। इनमें परिवहन विभाग में निबंधित वाहनों में बड़ी संख्या ऐसे वाहनों की भी है, जिनके निबंधन का 20 साल से भी अधिक समय पुरा हो गया है। ऐसे वाहन परिवहन विभाग के मानकों पर खड़ा नहीं उतरते हैं। बावजूद आज भी ये वाहन सड़क पर दौड़ रही है और हवा में धुआं के प्रदूषण को बढ़ा रही है। जबकि बढ़ते प्रदूषण के खतरे को देखते हुए देश के कई हिस्सों में 15 साल पुराने वाहनों के परिचालन पर रोक लगा दी गई है। परन्तु बिहार में अब तक इसे लागू नहीं किया गया है। सूत्रों की मानें तो यहां अब भी किसी वाहन के 15 साल पुरे हो जाने पर पांच साल आगे तक पुनर्निबंधन करने का प्रावधान है।
परिवहन विभाग के सूत्रों के मुताबिक जिला में वाहनों के प्रदूषण जांच के लिए फिलहाल पांच प्रदूषण जांच केंद्र कार्यरत हैं परन्तु इन केंद्रों पर सिर्फ औपचारिकता पूरी होती है। यहां वाहनों से जांच के नाम पर 70-150 रुपया लेकर सिर्फ प्रमाण पत्र देने का कार्य किया जाता है। दरअसल ऐसे केंद्रों पर वाहनों के प्रदूषण जांच की पुख्ता व्यवस्था भी नहीं है। साथ ही केंद्र संचालक भी सही तरीके से जांच करना भी मुनासिब नहीं समझते हैं। वहीं परिवहन विभाग के पास वाहनों के प्रदूषण जांच के लिए कोई उपकरण उपलब्ध नहीं है। नतीजतन विभागीय अधिकारी भी प्रदूषण जांच केंद्र द्वारा जारी प्रमाण पत्रों को ही सही मानकर आगे की कार्रवाई करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में जिला के सभी पेट्रोल पंपों पर प्रदूषण जांच केंद्र खोला जाना है। इसके लिए परिवहन विभाग द्वारा सभी पेट्रोल पंप संचालकों को पत्र भी जारी किया गया है। परन्तु अब तक मात्र दो पंप संचालकों ने ही प्रदूषण जांच केंद्र का प्रस्ताव विभाग को उपलब्ध कराया है।शेष पंप संचालकों द्वारा अबतक प्रस्ताव भी उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के बाद बिहार सरकार भी हरकत में आई और बैठकों का दौर शुरू हो गया। इस बैठकों के बाद कहा गया कि सरकार शहरों में वायु प्रदूषण के रोक थाम के लिए लगातार प्रयास कर रही है।परिवेशीय वायु की गुणवत्ता की जांच के लिए पटना में पांच, भागलपुर, दरभंगा में एक एक केंद्र स्थापित किए जाएंगे। साथ ही सभी ईट भट्ठों को स्वच्छ तकनीक में परिवर्तित करने का निर्देश दिया जा चुका है।
क्रांति कुमार पाठक
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