आखिर पिछले तीन साल से बिहार में क्यों नहीं हो पा रहा आयोग-बोर्ड का पुनर्गठन
सिटी पोस्ट लाइव : विकास की मॉनिटरिंग का काम प्रभावी तरीके से करने के लिए राज्य सरकारों द्वारा आयोग का गठन किया जाता है. लेकिन पिछले तीन वर्षों से बिहार में आयोगों के गठन का मामला ठंडे बस्ते में है. राजनीतिक दांव-पेंच की उलझनों की वजह से बोर्ड ,निगम और आयोग के गठन की प्रक्रिया अधर में है.महागठबंधन की सरकार बनने के बाद से ही आयोग के गठन का मामला ठंडे बस्ते में रहा अब एनडीए सरकार भी है तो भी कई आयोगों का गठन नहीं हो पाया है.पटना हाईकोर्ट ने भी आयोगों केगठन में हो रही देर को लेकर बिहार सरकार से जबाब तलब किया है.
2015 में जब महागठबंधन की सरकार थी तो आरजेडी और जेडीयू के बीच खींचतान के चलते आयोगों के गठन की प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया जा सका. एनडीए की सरकार बनने के बाद नेताओं के अंदर बोर्ड निगम और आयोग के गठन को लेकर आस जगी. लेकिन एक साल गुजर जाने के बाद भी आयोगों के गठन की प्रक्रिया को पूरा नहीं किया जा सका है.
बिहार में 100 से भी ज्यादा बोर्ड, निगम और आयोग हैं. राजनीतिक दलों के दूसरी पंक्ति के नेताओं को बोर्ड निगम और आयोग में चेयरमैन बनाए जाने की परिपाटी रही है. लेकिन एक साल से ज्यादा का वक्त हो गया है अभी तक कुछ आयोग को छोड़ कर लगभग सभी आयोग रिक्त पड़े हैं.विपक्ष के नेता इसे एनडीए में दरार मान रहे हैं. कांग्रेस के एमएलसी प्रेमचंद्र मिश्रा भी मानते हैं कि एक साल होने के बाद बीजेपी और जेडीयू का शायद पूर्ण रूप से पुनर्विवाह नहीं हो सका है. इसी कारण आयोगों के गठन में देर हो रही है.
आयोगों और निगमों के माध्यम से विकास की मॉनिटरिंग का काम प्रभावी तरीके से किया जाता रहा है लेकिन पिछले तीन वर्षों से मामला ठंडे बस्ते में है और राजनीतिक दांव-पेंच की उलझनों की वजह से बोर्ड ,निगम और आयोग के गठन की प्रक्रिया अधर में है.सत्ता पक्ष के नेता अभी भी आयोग के गठन की उम्मीद जता रहे है. आयोग के गठन की प्रक्रिया पर सरकार के मंत्री विनोद नारायण झा कहते कि आयोगों का गठन जल्द होगा. कुछ आयोगों का गठन भी हो गया है. आयोग और निगम की बात करें तो इसकी परिपाटी यही रही है कि जिन नेताओं का चुनाव में सेटलमेंट नहीं हो पाता है उनको बोर्ड निगम आयोग में रखा जाता है कि ताकि वो नाराज भी ना हो और उनकी राजनीति भी चलती रहे.अब आने वाले दिनों में लोक सभा का चुनाव है तो ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि पॉलिटिकल सेटलमेंट के नाम पर ही कुछ आयोग और निगम की रिक्तियां भरी जा सकती हैं.