NRC से सहयोगी दल नाराज और BJP के बढ़ते प्रभाव से परेशान.

City Post Live

NRC से सहयोगी दल नाराज और BJP के बढ़ते प्रभाव से परेशान.

सिटी पोस्ट लाइव :नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के ख़िलाफ़ देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन जारी हैं लेकिन केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी हाल में इससे पीछे नहीं हटेगी.मोदी सरकार लगातार कहती आई है कि CAA सिर्फ़ पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश के ग़ैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नागरिकता देने के लिए है और इसका भारत के अल्पसंख्यकों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

NRC को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि इस पर मंत्रिमंडल में अभी तक कोई बात नहीं हुई है.नागरिकता क़ानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों और चर्चाओं के बीच बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के गठबंधन एनडीएमें भी एक राय बनती नहीं दिख रही है.एनडीए का दूसरा सबसे बड़ा घटक दल जेडीयू कह चुका है कि वो एनआरसी के पक्ष में नहीं है. वहीं, एनडीए में शामिल एलजेपी भी कह चुकी है कि वो NRC का तब तक समर्थन नहीं करेगी जब तक वो इसका पूरा ड्राफ़्ट नहीं पढ़ लेती.

जेडीयू प्रवक्ता के.सी. त्यागी ने कहा कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कह चुके हैं कि वो राज्य में एनआरसी लागू नहीं होने देंगे.के.सी. त्यागी ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार एनआरसी केवल असम राज्य के लिए बनाई गई थी. उसकी रिपोर्ट आने के बाद असम की बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा था कि इसे लागू करवा पाना उनके बस का नहीं है. जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार NRC असम में लागू नहीं हो सकती तो फिर यह पूरे बिहार या देश में कैसे लागू होगी?”

नागरिकता संशोधन विधेयक जब संसद में पेश किया गया था तब सभी एनडीए दलों ने इसको पास करवाकर इसे क़ानून का रूप दे दिया था लेकिन अब NRC का विरोध क्यों किया जा रहा है?इस सवाल पर के.सी. त्यागी कहते हैं कि CAA अगर NRC से जुड़ता है तो ख़तरनाक है, हालांकि पार्टी की राय यह है कि पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश में सताए गए पांच समुदायों के लोगों के अलावा इसमें मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए था.एनडीए में एनआरसी या नागरिकता क़ानून को लेकर कोई बात हुई है? इस पर के.सी. त्यागी कहते हैं कि एनडीए का कोई ऐसा ढांचा नहीं है जहां इस तरह की बात कहने का कोई मंच हो लेकिन नीतीश कुमार पटना में कह चुके हैं कि उनका दल इसके पक्ष में नहीं है.

जेडीयू-एलजेपी के अलावा बीजेपी की सबसे पुरानी सहयोगियों में से एक अकाली दल भी एनआरसी के ख़िलाफ़ अपनी राय ज़ाहिर कर चुका है.अकाली दल के नेता और राज्यसभा सांसद नरेश गुजराल कह चुके हैं कि चूंकि वो ख़ुद अल्पसंख्यकों (सिखों) का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए नहीं चाहते कि देश में मुसलमान असुरक्षित महसूस करें.एनडीए के अंदर इतनी नाराज़गी को देखते हुए क्या यह समझा जाना चाहिए कि इस गठबंधन में फूट पड़ गई है? इस पर के.सी. त्यागी कहते हैं कि कोई फूट नहीं पड़ी है लेकिन हिंदुस्तान में बरसों से रह रहे लोगों को बाहर भेज देना ग़लत है.

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि एनडीए में कोई फूट नहीं पड़ी है बल्कि यह एक दांवपेच है.उनके अनुसार CAA का जेडीयू, एलजेपी और अकाली दल ने संसद में समर्थन किया था. इन दलों में CAA को लेकर कोई विरोध नहीं है, इनका विरोध केवल NRC को लेकर है. इस पर भी नीतीश कुमार का सीधे-सीधे बयान नहीं आया है. इस पर सिर्फ़ प्रशांत किशोर ही बोलते रहे हैं. केंद्र सरकार ने भी अभी साफ़ नहीं किया है कि NRC को कब लाया जा रहा है.राजनीतिक पंडित  जेडीयू की बेचैनी को बीजेपी के बढ़ते क़द से जोड़कर देखते हैं.बीजेपी अब एक सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी बन चुकी है. एक बड़ी पार्टी के आगे क्षेत्रीय पार्टियों का स्पेस ख़त्म होने का संकट होता है और ऐसा हम महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ देख चुके हैं. महाराष्ट्र में एक समय बीजेपी चौथे नंबर पर थी और आज वो सबसे बड़ी पार्टी है.

बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और लोकसभा चुनाव में बीजेपी और जेडीयू बराबर सीटों पर लड़ी थीं. प्रदीप सिंह कहते हैं कि बीजेपी अब अगर चाहे कि लोकसभा के फ़ॉर्मूले के तहत ही विधानसभा चुनाव लड़ा जाना चाहिए तो दोनों दलों में बिहार में टकराव की स्थिति पैदा होगी. जेडीयू और एलजेपी का CAA, NRC और NPR से कोई लेना-देना नहीं है बल्कि यह सीटों के बंटवारे के लिए एक दबाव की राजनीति है.

जेडीयू को अल्पसंख्यकों का केवल 12-13 फ़ीसदी ही वोट मिलता था जो अब पूरी तरह खिसक चुका है. आने वाले विधानसभा चुनावों में दोनों ही पार्टियां, बीजेपी-जेडीयू साथ चुनाव लड़ने वाली हैं. वो ज़्यादा समय तक इसका विरोध करेंगी.एनडीए में कोई फूट नहीं पड़ी है क्योंकि इन सभी दलों ने संसद में CAA के समर्थन में वोट किया था और अगर इनको इससे कोई दिक़्क़त थी तो वो वहां विरोध कर सकते थे.इस विरोध के बाद हो सकता है कि बीजेपी बिहार विधानसभा चुनावों में जेडीयू को आधे से अधिक सीटें देने पर राज़ी हो जाए.

जहांतक  अकाली दल का सवाल है  पंजाब में कांग्रेस की सरकार है और अकाली दल के विरोध के कोई मायने नहीं हैं.अकाली दल का कहना है कि नागरिकता क़ानून में मुसलमानों को भी रखा होता तो इसमें कोई हर्ज़ नहीं था. लेकिन वहीं अकाली दल की नाराज़गी नरेश गुजराल की वजह से भी है. वो चाहते थे कि उन्हें राज्यसभा का उप-सभापति बनाया जाए लेकिन उन्हें बीजेपी ने नहीं बनाया.

Share This Article