सिटी पोस्ट लाइव : झारखण्ड के रामगढ़ विधान सभा के उप चुनाव को लेकर मंगलवार को नोटिफिकेशन के बाद 1 फरवरी से नामांकन का दौर शुरू हो जाएगा. रामगढ़ के चुनावी समर में मुख्य मुकाबला UPA और NDA के बीच होता तय है. लेकिन, आजसू को बीजेपी के समर्थन का इंतजार आज भी है, क्योंकि भाजपा ने अब तक खुलकर समर्थन का ऐलान नहीं किया है.26 जनवरी को बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश और आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो के बीच बंद कमरे में गुफ्तगू हुई थी. तब सुदेश महतो ने दो दलों का साथ आने को सुखद संदेश बताया था. उनका कहना था कि इस पहल से बेहतर नतीजों का आना तय है. लेकिन, आज तक बीजेपी ने समर्थन की खुले तौर पर घोषणा नहीं की है.
आजसू को समर्थन के सवाल पर बीजेपी की चुप्पी ने कांग्रेस को राजनीति करने का मौका दे दिया है. कांग्रेस के प्रदेश महासचिव राकेश सिन्हा के अनुसार रामगढ में समर्थन से पहले बीजेपी लोकसभा का डील कर लेना चाहती है. ये बीजेपी के द्वारा मौका पर चौका मारने जैसा है. जब तक डील तय नहीं होगी तब तक बीजेपी रामगढ उपचुनाव में आजसू को समर्थन देने पर चुप्पी साधे रहेगी. बीजेपी उपचुनाव से पहले ही लोकसभा चुनाव में सीटों का बंटवारा कर लेना चाहती है.
झारखंड की राजनीति में बीजेपी और आजसू की पुरानी यारी रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और आजसू साथ – साथ लड़ी थी. ये बात भी सच है कि 2019 के ही विधानसभा में ये दोस्ती टूट गई थी. अब फिर से एक बार बीजेपी और आजसू एक दूसरे की कमी महसूस कर रहे हैं. वैसे NDA में आजसू की एंट्री होगी या नहीं इस पर बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व का फैसला अहम होगा. लेकिन, रामगढ़ उपचुनाव के बहाने लोकसभा चुनाव की डील से इनकार नहीं किया जा सकता है.
बीजेपी के अनुसार जब-जब बीजेपी और आजसू साथ रही है तब-तब राज्य को बेहतर नेतृत्व और जनता को विकासशील सरकार मिली है. पहले साथ रह चुके हैं और आगे भी साथ रहने की पूरी संभावना है. बता दें कि रामगढ़ का उपचुनाव हेमंत सोरेन सरकार के कार्यकाल का 5 वां उपचुनाव होगा. आजसू के लिये ये सीट प्रतिष्ठा की सीट बनी हुई है, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिये महागठंबधन फिर एक जोर लगाएगी. इससे पहले 4 उपचुनाव के परिणाम महागठबंधन के पक्ष में रहे हैं.