आखिर क्या होगा बैजनाथपुर पेपर मिल का, एक बेमकसद और खामोश पेपर मिल का बेशर्म सच

City Post Live - Desk

आखिर क्या होगा बैजनाथपुर पेपर मिल का, एक बेमकसद और खामोश पेपर मिल का बेशर्म सच

सिटी पोस्ट लाइव “विशेष” : स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर आज तक कोसी प्रमंडल में एक भी बड़ा उधोग नहीं खुला। आज भी कोसी के हजारों लोगों का रोजी-रोजगार के लिए अन्य परदेस में पलायन जारी है। अपने परिवार के लोगों की सांसें बचाने के लिए मजबूर लोग भेड़-बकरी की तरह ट्रेन में सवार हो कर रोज दूसरे प्रदेश पलायन करने को विवश हैं। सन 1974 में 48 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर बिहार सरकार ने निजी व् सरकारी सहयोग को लेकर बिहार पेपर मिल्स लिमिटेड का गठन कर निर्माण कार्य शुरू किया था। चार वर्षों तक इस पेपर मिल में रोजगार देने का काम चला। सैंकड़ों लोगों के हाथ रोजगार भी आया। उस समय लग रहा था कि कोसी इलाके में इस मिल के बहाने और भी उद्योग लगेंगे और इस इलाके के लोगों को रोजगार के नाम पर दूसरे प्रांत जाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। लेकिन 1978 में निजी उघमियों से करार खत्म होने के बाद काम बंद हो गया और बिहार राज्य् ओघोगिक विकाश निगम का पूर्ण स्वामित्व हो गया।

सरकार और निगम की आपसी सहमति के बाद पुनः मिल को चालू करने की कवायद को तेज भी किया गया और विदेश से एक पुराणी मशीन की खरीदारी की गई तथा हिंदुस्तान स्टील कंस्ट्रक्सन लिमिटेड को मिल में होने वाले असैनिक कार्यों की ज़िम्मेदारी सोंपी गई। लेकिन मामला धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में चला गया और मिल चालू करने की गुफ्तगू भी कई वर्षों तक बन्द रही ।वर्ष 1987 में दो वर्ष के अन्दर मिल को चालू करने के पुनः प्रयास को तेज किया गया लेकिन राशि उपलब्ध नहीं होने के कारण परियोजना पुनः बंद हो गई। आज हम इस मिल को नजीर बनाकर केंद्र और बिहार सरकार की काली करतूत को बेपर्दा करने जा रहे हैं। आप सभी सहरसा के बैजनाथपुर पेपर मिल की पूरी कहानी जानकर ना केवल रो पड़ेंगे बल्कि पूर्ववर्ती सरकारों को जीभर के बद दुआएं भी देंगे। वर्ष 1974 में करोड़ों की लागत से बने बैजनाथपुर पेपर मिल आजतक बस धुंआ उगलने और उत्पादन करने की बाट जोहता रहा है।

कोसी प्रमंडल के इस इकलौते उद्योग पर सियासत की काली छाया इस मिल के बनकर तैयार होने के समय ही पर गयी थी जिससे आजतक उबरा नहीं जा सका ।सरकार बदलती रही लेकिन इस अभागे मिल के दिन नहीं बदले ।जाहिर सी बात है की अगर समय से इस मिल को चालू किया गया होता तो इस क्षेत्र के सैंकड़ों लाचार और बेबस हाथों को ना केवल स्थायी काम मिल गया होता बल्कि यहाँ और भी उद्योग लगाने के रास्ते खुल गए होते ।लेकिन सियासत के सूरमाओं की बदनीयति की बलि चढ़ने वाले इस पेपर मिल ने शुरू होने से पहले ही खुद के जमींदोज होने को अपनी नियति मान ली ।यह मिल विगत 40 वर्षों से चुनावी मुददा या फिर मंत्री-विधायक के दौरे का हिस्सा भर रहा है। एक बार फिर सियासत के नए खिलाड़ियों ने इस मिल के निरीक्षण का दौर शुरू किया था ।नीतीश सरकार के दूसरी बार सत्ता प़र काबिज होने के तुरंत बाद राज्य की नवोदित महिला उद्योग मंत्री ने रेणु कुशवाहा बड़ी संजीदगी से इस मिल का निरीक्षण किया था और मिल को चालू करवाने के ढ़ेरों शब्जबाग दिखाए थे ।लेकिन मंत्री का निरीक्षण, महानिरीक्षण तक सीमित रहा और यह मिल पूर्व की भांति बिना चालू हुए पूरी तरह से खामोश रहा ।

मंत्री साहिबा के दौरे के समय क्षेत्रीय लोगों में मिल चालू होने की उम्मीद जगी थी लेकिन यह उम्मीद एक बार फिर से फना हो गयी ।40 वर्षों के कालखण्ड में इस बन्द पड़े मिल को चालू करने के नाम पर महज करोड़ों रूपये और खर्च किये गए हैं लेकिन परिणाम फिर वही ढ़ाक के तीन पात ।हर विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में इस मिल को लेकर ना केवल हाय-तौबा मचाया जाता है बल्कि सरकार गठन के बाद मंत्री और विधायक-सांसद का खूब दौरा भी होता है ।लेकिन हाय री किस्मत! यह करमजला पेपर मिल फिर भी धुंआ उगलने का नाम नहीं लेता है ।18 दिसंबर 2010 का वह खास दिन,जब बिहार की उद्योग मंत्री रेणु कुशवाहा इस बन्द पड़े मिल का करीब दो घंटे तक निरीक्षण करती रहीं ।उस वक्त मंत्री महोदया ने कहा था की उनकी सरकार कई मोर्चों पर बेहतर काम कर चुकी है और कर भी रही है। इस बार उनकी सरकार में उद्योग पहली प्राथमिकता है।

वे इस बन्द पड़े मिल को सिर्फ देखने नहीं बल्कि उसे शुरू कराने की मंसा से आई हैं। बस कुछ महीनों के भीतर यह बन्द पड़ा मिल चालू होगा ।वे पटना से उद्योग विभाग के अधिकारी और विशेषज्ञ को लेकर आई हैं। पिछली सरकारों ने क्या किया उससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं है। मंत्री साहिबा के साथ पटना से उद्योग विभाग के एक बड़े अधिकारी और पपर मिल के विशेषज्ञ भी आये थे.उस वक्त तत्कालीन राज्य के वरीय उद्योग अधिकारी एस.के.सिन्हा आये थे। उन्होंने कहा था कि अगर काम जल्द शुरू किया जाए तो बैजनाथपुर पेपर मिल के मशीन अभी बिल्कुल ठीक हैं। अगर काम जल्दी शुरू हो तो छः माह से लेकर एक साल के भीतर पूरी तरह से इस मिल को काम करने के लायक बनाया जा सकता है। लेकिन उस निरीक्षण यात्रा के आज 8 वर्ष बीत चुके हैं और नतीजा सामने सिफर है। हम आपको एक खास जानकारी और देना चाहते हैं। जब नीतीश जी पहली बार सत्तासीन हुए थे तो उस समय बिहार के उद्योग मंत्री दिनेश चन्द्र यादव थे।

दिनेश जी ने भी इस बैजनाथपुर पेपर मिल को चालू कराने का इस इलाके के लोगों को पक्का भरोसा दिलाया था। आप यह जानकार भौचक हो जायेंगे की दिनेश जी ने उस वक्त बिहार के बाहर से दो उद्योगपतियों को पकड़ कर बैजनाथपुर पेपर मिल ना केवल दिखाने लाया था बल्कि वे मिल को चालू करें इसके लिए उन्हें रजामंद भी कर लिया था। उस समय लगा की अब यह मिल चालू हो जाएगा। लेकिन उस समय बिहार के तत्कालीन ऊर्जा मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव और दिनेश जी के सम्बन्ध खराब थे। सूत्रों की मानें तो इस खराब रिश्ते की वजह से नीतीश जी के अत्यंत करीबी माने जाने वाले विजेंद्र यादव ने इस मिल को खुलवाने के दिनेश जी के प्रयास को पलीता लगा दिया। उस वक्त हवा में यह बात भी आई की इस मिल को खुलने से दिनेश जी को थोक में निजी फायदा होगा। फिर क्या था,बाहर से आये उद्योगपति इस सियासी खेल को देख यहाँ से भाग खड़े हुए। दिनेश चन्द्र यादव अभी राज्य के काबीना मंत्री और सिमरी बख्तियारपुर के विधायक हैं। आपको यह जानकार काफी हैरानी होगी की मंत्री साहिबा के 2010 के उस दौरे से लोगों को कोई खास भरोसा नहीं था। लोगों को विश्वास नहीं था कि मंत्री के इस दौरे और निरीक्षण के बाद इस मिल को खोलने की कोई मजबूत पहल होगी।

जाहिर सी बात है की दूध का जला छांछ भी फूंक-फूंककर पीता है। कुछ लोगों का उस वक्त यह कहना था कि मंत्री ने आज भी कोई ठोस भरोसा नहीं दिया है बल्कि उन्होनें सिर्फ मुख्यमंत्री से बात करने की बात कही है। ऐसे में अब वे झांसे में आने वाले नहीं हैं और वे इस मिल को चालू कराने के लिए आगे बड़ा आन्दोलन भी करेंगे। कुछ लोगों का कहना था कि वे जवान से बूढ़े हो गए लेकिन इस मिल को चालू देखने का उनका सपना पूरा नहीं हो सका। काश ! यह मिल खुला होता तो वे भी इसमें काम कर रहे होते। हमने इस मिल को लेकर गहन चिंतन किया है और हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि जबतक सियासत की काली छाया की नजर नहीं उतारी जायेगी तबतक इस मिल के चालू होने का सपना, सपना ही बना रहेगा ।सियासत में खुद का और अपने स्वजन-परिजनों का थोक में भला हो चुका है,ना जाने कब जनता-जनार्दन की बारी आएगी ।पूर्वाग्रह से मुक्त होकर इस मिल की चिंता करने के बाद ही इसके दिन बहुरने की परिकल्पना की जा सकेगी। ना जाने वह कौन सा दिन और कौन सा पल होगा जब इस मिल को वाजीवियत की शक्ल में काबिज किया जा सकेगा। यूँ अभी दूर–दूर तक इस मिल के दिन बहुरने के आसार कहीं से भी नहीं दिख रहे हैं।

पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप से सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की “विशेष” रिपोर्ट

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