इन्फ़ोसिस के एक ही दिन में डूबे 53 हज़ार करोड़, जानिए क्या है वजह
सिटी पोस्ट लाइव ; आईटी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी इन्फ़ोसिस के सीईओ सलिल पारेख और सीएफओ निलंजन रॉय पर कंपनी की आय और मुनाफ़े को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने के लिए बही-खातों में हेर-फेर करने के आरोप लगाने के बाद कंपनी का शेयर मुंह के बल गिरा है. कंपनी के शेयरों में मंगलवार को क़रीब 17 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज की गई. बीते छह साल में एक दिन में आई ये सबसे भारी गिरावट थी.इस गिरावट से से निवेशकों को क़रीब 53 हज़ार करोड़ का बड़ा नुक़सान एक झटके में हुआ है.
मंगलवार को मार्केट बंद होने तक इन्फ़ोसिस की मार्केट कैपिटलाइज़ेशन या एमकैप 2.74 लाख करोड़ रुपए थी, जो पिछले सत्र में 3.27 लाख करोड़ रुपए रही थी.ये गिरावट कंपनी की मैनेजमेंट पर गंभीर आरोप लगने के एक दिन बाद आई है.भारत की दूसरी सबसे बड़ी आईटी सर्विस कंपनी ने कहा कि उन्हें गुमनाम व्हिसलब्लोअर्स से शिकायतें मिली हैं कि कंपनी में ग़लत तरीक़े अपनाए जा रहे हैं.व्हिसलब्लोअर्स ने सीधे तौर पर इन्फ़ोसिस के सीईओ सलिल पारेख और सीएफओ निलंजन रॉय पर आरोप लगाते हुए बोर्ड को लिखी गई चिट्ठियों में जांच की मांग की है.व्हिसलब्लोअर्स ने लिखा कि वो अपने आरोपों को साबित करने के लिए ईमेल और वॉइस रिकॉर्डिंग भी दे सकते हैं.इंफ़ोसिस के चेरयमैन नंदन नीलेकणी ने मामले की जांच कराने की बात कही है.
नंदन नीलेकणी ने कहा कि कंपनी की ऑडिट कमिटी आरोपों की स्वतंत्र जांच करेगी. नीलेकणी ने बताया कि एक बोर्ड मेंबर को 30 सिंतबर को दो शिकायतें मिली थीं, जिन पर 20 सिंतबर की तारीख़ लिखी थी. इस शिकायत का टाइटल था – ‘डिस्टर्बिंग अनएथिकल प्रैक्टिसेस’ और एक बिना तारीख़ का नोट था, जिस पर टाइटल था – ‘व्हिसलब्लोअर कंप्लेन’
इंफ़ोसिस के चेयरमैन के मुताबिक़ “एक शिकायत में अधिकतर सीईओ की अमरीका और मुंबई की अंतरराष्ट्रीय यात्रा से जुड़े आरोप हैं.स्टॉक एक्सचेंज को दिए बयान में नीलेकणी ने कहा कि दोनों शिकायतें 10 अक्टूबर को ऑडिट कमिटी के पास भेज दी गईं और इसके एक दिन बाद बोर्ड के ग़ैर-कार्यकारी सदस्यों को भेजी गई.नीलेकणी के मुताबिक़, “11 अक्टूबर को बोर्ड मीटिंग के बाद ऑडिट कमिटी ने शुरुआती जांच के लिए स्वतंत्र आंतरिक लेखा परीक्षक से बातचीत शुरू की. ऑडिट कमिटी ने अब एक लॉ फर्म, शार्दुल अमरचंद मंगलदास एंड कंपनी को जांच का काम सौंपा है.
उनके मुताबिक़ जांच के नतीजों के आधार पर बोर्ड ज़रूरी क़दम उठाएगा. इंफ़ोसिस के चेरयमैन नंदन नीलेकणी ने ये भी बताया कि सीईओ और सीएफ़ओ को इन मामलों से अलग कर दिया गया है ताकि जांच की स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया जा सके.पिछले दो साल में व्हिसलब्लोअर्स की कई शिकायतों की वजह से इंफ़ोसिस विवादों में घिरी रही. इसकी वजह से विशाल सिक्का को सीईओ पद छोड़ना पड़ा था.कहा जा रहा है कि शिकायतकर्ता कंपनी के ही गुमनाम कर्मचारी हैं.
आरोप है कि ऑडिटर्स और कंपनी के बोर्ड से अहम जानकारियां छिपाई गईं. कर्मचारियों को निर्देश दिया गया था कि वो ऑडिटर्स को बड़ी डील की जानकारी ना दें. वेरिजॉन, इंटेल और जापान में जेवी जैसी दो बड़ी डील हुई हैं उनमें रेवेन्यू का मामला अकाउंटिंग स्टैंडर्ड के मुताबिक नहीं था. सीईओ रिव्यू और अप्रूवल्स की अनदेखी कर रहे हैं और सेल्स टीम को निर्देश दे रहे हैं कि वो अप्रूवल के लिए मेल ना करें.इस पत्र में उन्होंने ये भी लिखा कि “पिछली तिमाही में हमें कहा गया कि वीज़ा कॉस्ट को पूरी तरह ना जोड़ा जाए ताकि कंपनी का लाभ बेहतर दिखे. हमने इसकी वॉइस रिकॉर्डिंग भी कर ली है. वित्त वर्ष 2019-20 में तिमाही नतीजों के दौरान हम पर इस बात का दबाव बनाया गया कि पांच करोड़ डॉलर के अपफ्रंट पेमेंट के लौटाने का ज़िक्र ना किया जाए. ऐसा होने से कंपनी का लाभ कम दिखेगा और इसका असर शेयर की क़ीमतों पर पड़ेगा.
ख़बरों के मुताबिक़ इस महीने की शुरुआत में इंफ़ोसिस ने विश्लेषकों के साथ एक कांफ्रेंस कॉल भी किया था. इसमें एक विश्लेषक ने अनबिल्ड रेवेन्यू में आए असामान्य उछाल को लेकर सवाल उठाया था और पूछा था कि क्या अकाउंटिंग पॉलिसी में कोई बदलाव किया गया है? अनबिल्ड रेवेन्यू वो राजस्व होता है, जिसे ग्राहक को बिल देने से पहले ही जोड़ लिया जाता है.इस तरह का राजस्व 2018-19 में 10-11% था, जो इस वित्त वर्ष के पहले छह महीने में बढ़कर क़रीब 24-25% हो गया.लेकिन इस सवाल के जवाब में कंपनी ने कहा कि अकांउंटिग नीति में कोई बदलाव नहीं किया गया है.
इन्फ़ोसिस ने इस साल 15 फ़ीसदी से ज़्यादा मार्केट वैल्यू हासिल की थी.लेकिन अगर ये आरोप सही साबित होते हैं तो इससे कंपनी के पुराने ब्रैंड को बहुत नुकसान होगा. ख़ासकर आईटी सर्विस इंडस्ट्री में. इससे शॉर्ट टर्म सेल्स को भी नुकसान हो सकता है, क्योंकि ग्राहक नए प्रोजेक्ट्स के लिए दूसरे प्रोवाइडर्स की ओर देखेंगे. ये आरोप ऐसे वक्त में लगे हैं जब सॉफ्टवेयर बनाने वाली और दुनिया के सबसे बड़े बैंकों और रीटेलरों को सर्विस देने वाली इंफ़ोसिस और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस लिमिटेड, कारोबार में मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं. इंडस्ट्री ऑटोमेशन और तेज़ी से बदलती तकनीक के ट्रेंड से जूझ रही है.पारंपरिक सर्विस के कॉन्ट्रेक्ट ठप पड़ रहे हैं और घबराए ग्राहक इनमें पैसा लगाने से बच रहे हैं. इसी महीने इंफ़ोसिस ने बताया था कि उसके तिमाही लाभ में दो प्रतिशत की कमी आई है.
यही वो चुनौतियां हैं, जिससे निपटने की इंफ़ोसिस के सीईओ सलिल पारेख कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने डिज़िटल सर्विस में काम बढ़ाए जाने, कोर ऑफरिंग में फिर से तेज़ी लाने, कर्मचारियों की स्किल्स बढ़ाने और अमरीका के मार्केट में स्थानीय लोगों की भर्ती करने पर ज़ोर दिया था.अमरीका में एच-1बी विज़ा में कड़ाई की वजह से लेबर बाहर से मंगवाना मुश्किल हो गया है.