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समाज में व्याप्त अच्छाई और बुराई का स्वरूप दिखना चाहिए नाटक में : राणा

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दरभंगा : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के संगीत एवं नाट्य विभाग में ‘आधुनिक रंगमंच और विभिन्न वाद’ पर विचार व्यक्त करते हुए झारखंड केन्द्रीय विश्वविद्यालय, रांची के संतोष राणा ने कहा कि नाटक कार्य केवल अच्छा दिखाना या महसूस कराना नहीं है, बल्कि सम्पूर्ण समाज के पूरे स्वरूप, इसकी अच्छाई-बुराई के साथ प्रस्तुत करना ही मुख्य उद्देश्य है. उन्होंने कहा कि नाटक का लिखित प्रमाण सर्वप्रथम ग्रीक थिएटर है. रोमन और मध्यकाल के बाद पुनर्जागरणकाल 14-17वीं शताब्दी तक रहा. ज्ञान के ऊपर जो आधिपत्य था, वह पुनर्जागरणकाल में छापेखाने के अविष्कार के बाद समाप्त हो गया. उन्होंने कहा कि इस काल में औद्योगिक क्रांति को भी बल मिला. सामान्य नागरिक ज्ञान की प्रगति की ओर उन्मुख हुआ. यहीं से आधुनिकता ने जन्म लिया. आधुनिकता के बाद जो वाद आया वह वास्तविक था. सत्र की अध्यक्षता पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. अविनाश चंद्र मिश्र ने की. विभागाध्यक्ष डॉ. लावण्य कीर्ति सिंह काव्या ने अतिथियों का स्वागत और डॉ. वेदप्रकाश ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

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