झारखंड विधानसभा चुनाव कई मायनों में खास
झारखंड विधानसभा चुनाव कई मायनों में खास
सिटी पोस्ट लाइव, रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव कई मायनों में खास है। 19 साल के इस युवा राज्य में यह चुनाव दो दिग्गजों के भविष्य की राजनीति की दिशा और दशा दोनों तय कर सकता है। धनवार और गिरिडीह से पिछली बार विधानसभा और 2014 में दुमका और 2019 में कोडरमा से लोकसभा चुनाव हार चुके झारखंड विकास मोर्चा प्रमुख बाबूलाल मरांडी की किस्मत पूरी तरह दांव पर है। झारखंड के पहले मुख्यमंत्री और झारखंड विकास मोर्चा सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी विधानसभा चुनाव गठबंधन से अलग अपने दम पर लड़ रहे हैं। झाविमो राज्य की सभी 81 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और बाबूलाल एकबार फिर अपने घरेलू सीट धनवार से अपना राजनीतिक दांव खेल रहे हैं। धनवार के पिछले चुनाव में भाकपा माले के राजकुमार यादव ने बाबूलाल को उनके ही घर में 10 हजार से ज्यादा वोटों से पराजित किया था। ऐसे में बाबूलाल की राजनीतिक पकड़ और ग्राफ भी कमजोर पड़ने लगी थी। विधानसभा चुनाव 2014 में वे हार तो गए लेकिन उनकी पार्टी के 8 विधायक जीतने में सफल रहे। हालांकि बाबूलाल उन विधायकों को अपने पाले में नहीं रख पाए। 8 में 6 विधायक शुरू में ही बाबूलाल से अलग होकर भाजपा के साथ हो गए और फिर विधानसभा चुनाव के कुछ दिनों पहले प्रकाश राम भी झाविमो का दामन छोड़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए। कुल मिलाकर बाबूलाल का कुनबा बिखर-सा गया। अब 2019 का विधानसभा चुनाव उनके लिए करो या मरो से कम नहीं है। अगर 23 दिसंबर के नतीजों में उलटफेर न हुआ तो फिर बाबूलाल के भविष्य पर सवाल तो जरूर उठने लगेंगे। धनवार की जमीन पर वापसी के साथ पार्टी के गिरते ग्राफ को भी उठाना अब उनके सामने बड़ी चुनौती है। जिस तरह बाबूलाल का ग्राफ गिरा है और उनके अपने ही उनसे अलग होकर दूसरे कुनबे में शामिल हो गए, उससे उनकी चिंताएं जरूर बढ़ी हुई हैं, हालांकि इस चुनाव में कुछ दूसरे दलबदलू भी उनके पाले में आए हैं जो कुछ हद तक उनके लिए संजीवनी का काम भी कर रहे हैं। कुछ ऐसी ही कहानी आजसू पार्टी सुप्रीमो सुदेश कुमार महतो की भी है जो लगातार दो बार अपने परंपरागत सीट सिल्ली से विधानसभा चुनाव तो हारे ही हैं, 2014 के लोकसभा चुनाव में भी वोटरों ने इस युवा नेता को नकार दिया। 2014 के विधानसभा चुनाव में आजसू पार्टी को पांच सीटें मिली थी लेकिन झारखंड के पूर्व उप मुख्यमंत्री और आजसू सुप्रीमो सुदेश कुमार महतो खुद चुनाव हार गए। इतना ही नहीं एनडीए सरकार का राज्य में हिस्सा रहने के बाद भी सिल्ली में हुए उपचुनाव में वो वापसी नहीं कर सके। अमित महतो की पत्नी सीमा महतो ने उन्हें पटखनी दी। पांच साल तक भाजपा की अगुआई में झारखंड में चले पहले स्थाई सरकार में उनकी पार्टी के एक मंत्री भी रहे। हाल में हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए में आजसू पार्टी को सीट शेयरिंग के तहत एक सीट गिरिडीह दिया, जिसमें आजसू पार्टी की ओर से चंद्रप्रकाश चौधरी चुने गए लेकिन इस गठबंधन की गांठ विधानसभा चुनाव तक बरकरार नहीं रह सकी है। सीटों की खींचतान में गठबंधन टूट गया और आजसू पार्टी विधानसभा चुनाव में अकेले मैदान में है। सुदेश कुमार महतो सिल्ली में जनता का समर्थन हासिल करने के लिए पसीना बहा चुके हैं। आजसू पार्टी ने 81 में से 53 सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे हैं। पिछले चुनाव में 5 सीट पर जीत दर्ज करने वाली आजसू पार्टी इसबार क्या कुछ करिश्मा कर पाती है, इसका 23 दिसंबर को पता चलेगा। लेकिन इस चुनाव में जनता ने सुदेश कुमार महतो और बाबूलाल मरांडी दोनों दिग्गजों की किस्मत ईवीएम में बंद कर दी है। जनता का फैसला मशीनों में बंद है लेकिन चर्चा इन दोनोंं के भविष्य को लेकर खूब हो रही है। राजनीतिक विशलेषकों को 23 दिसंबर का इंतजार है कि आखिर झारखंड के इन दो पीढ़ियों के नेताओं का भविष्य क्या होगा।