नहीं छूटेगा साथ, नीतीश के लिए जरूरी हैं प्रशांत किशोर, बड़े खेल में फंस गयी है बीजेपी?
सिटी पोस्ट लाइवः नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर अपनी हीं पार्टी के फैसले का लगातार विरोध कर रहे हैं। जेडीयू ने नागरिकता संशोधन कानून का समर्थन किया है और ‘पीके’ को पार्टी का यह फैसला मंजूर नहीं है। वे लगातार पार्टी लाइन से अलग बयान दे रहे हैं। जब पीके के बयान पर जेडीयू के नेता प्रवक्ता हमलावर हो गये तो यह कयास लगने लगा कि जेडीयू से पीके की छुट्टी हो जाएगी लेकिन कल जब पीके सीएम नीतीश कुमार से ढाई घंटे लंबी मुलाकात के बाद बाहर आए तो कहा कि वो अपने स्टैंड पर कायम हैं। यह खबर भी आयी कि उन्होंने तीन बार सीएम के सामने अपने इस्तीफे की पेशकश की लेकिन सीएम ने उनकी पेशकश को ठुकरा दिया।
कल के इन राजनीतिक घटनाक्रमों के बाद यह सवाल लगातार टहल रहा है कि पीके नीतीश कुमार के लिए जरूरी हैं या नीतीश पीके के लिए जरूरी हैं? फिलहाल संकेत यह मिल रहे हैं कि नीतीश प्रशांत किशोर का साथ नहीं छोड़ना चाहते। पीके गैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों के साथ काम कर रहें हैं। उनकी डिमांड बढ़ रही है। तमिलनाडू में वे स्टालिन के चुनावी रणनीतिकार की भूमिका निभाने वाले हैं। दिल्ली में सीएम अरविंद केजरीवाल के चुनावी रणनीतिकार की भूमिका में भी प्रशांत किशोर होंगे। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के चुनावी रणनीतिकार की भूमिका में वे फिलहाल हैं यानि जेडीयू में रहते हुए पीके न सिर्फ पार्टी के स्टैंड से अलग जाकर बयान देते हैं बल्कि जेडीयू की सहयोगी बीजेपी की राह दूसरे राज्यों में मुश्किल कर रहे हैं या करने वाले हैं। ऐसे में पीके का जेडीयू में बने रहना इन कयासों को और मजबूत करता है कि पीके नीतीश का दिया टास्क हीं पूरा करने में जुटे हैं।
जिस तरह से बीजेपी और जेडीयू के बीच तल्खी रही है और हाल के दिनों में दोनों दलों के नेता एक दूसरे पर हमलावर रहे हैं उससे यह स्पष्ट है कि बीजेपी और जेडीयू की लड़ाई विपक्षी पार्टियों से ज्यादा आपस मे हीं है। बीजेपी के कुछ नेता दबी जुबान में यह कहते भी हैं कि प्रशांत किशोर जो कर रहे हैं वो बिना नीतीश कुमार की मर्जी के संभव नहीं है। दूसरी तरफ जेडीयू के नेता दबी जुबान में यह कहते हैं कि गिरिराज सिंह और बीजेपी के दूसरे नेता नीतीश कुमार के खिलाफ कुछ बोलते हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती तो इसका मतलब यही है कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की शह पर हीं गिरिराज सिंह और बीजेपी के दूसरे नेता नीतीश पर निशाना साधते हैं। जाहिर है इससे यह बात और साफ हो जाती है कि बीजेपी और जेडीयू दोनों मौका मिलते हीं एक दूसरे का हिसाब-किताब चुकता कर देना चाहते है।
बीजेपी सांसद और पार्टी के कद्दावर नेता डाॅ सीपी ठाकुर खुलकर यह कह चुके हैं कि प्रशांत किशोर जिस तरह से ममता बनर्जी के लिए चुनावी रणनीतिकार की भूमिका निभा रहे हैं वो गठबंधन धर्म के अनुकूल नहीं है क्योंकि पीके सिर्फ चुनावी रणनीतिकार नहीं हैं बल्कि बीजेपी की सहयोगी जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी हैं। नीतीश और पीके की मिलीभगत एक बड़े सियासी खेल का संकेत भी देती है। खेल यह है कि पीके दूसरे राज्यों में बीजेपी विरोधी दलों को मजबूत करें और 2024 में देश की विपक्षी पार्टियों इस बात के लिए तैयार करें कि नीतीश को पीएम पद का उम्मीदवार बनाकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़े। तो क्या बीजेपी नीतीश और पीके के बड़े खेल में फंस गयी है? क्या नीतीश कुमार 2024 की रणनीति पर काम कर रहे हैं और इसलिए पीके को हर हाल में अपने साथ रखना चाहते हैं? तस्वीर धुंधली है लेकिन जब धुआं छंटेगा कई दिलचस्प चीजें सामने आएगी।