राजनीतिक रूप से संवेदनशील फसल, निकाल रही लोगों के आंख से आंसू

City Post Live - Desk

राजनीतिक रूप से संवेदनशील फसल, निकाल रही लोगों के आंख से आंसू

सिटी पोस्ट लाइव : वैसे प्याज और राजनीति का पुराना रिश्ता है. प्याज की महंगाई हमेशा से चुनावी मुद्दा भी रहा है. कई बार इस प्याज ने सत्ता बनाई और सत्ता भी गिराई. फिर भी स्थिति आज भी नहीं सुधरी, प्याज के कारण आँखों से आंसू निकलना आज भी आम लोगों का जारी है. एक बार फिर प्याज आँखों से आंसू काटने से ज्यादा खरीदने में निकाल रहा है. एक बार फिर प्याज 80 से 100 रुपए किलो के बीच बिक रहा है. जिस हिसाब से प्याज की कीमत बढ़ी है कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि आने वाले कुछ दिनों में प्याज 100 का आंकड़ा पार कर जाएगा.

बता दें प्याज की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि के कारण पहली बार 1998 में दिल्ली की सरकार गिरी थी. फिर 2013 में दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार मुश्किल में पड़ गई थी. 2014 के विधान सभा चुनाव में दिल्ली की दीक्षित सरकार हार गई थी. 2010 में जब देश में महंगाई दर दो अंकों में थी, तो इसका मुख्य कारण प्याज की कीमतें ही थीं. इसका असर उस समय के चुनाव पर भी पड़ा था.

विश्व में चीन के बाद भारत प्याज का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है. पिछले 15 वर्षों में भारत में प्याज के उत्पादन में पांच गुना बढ़ोत्तरी हुई है. 2002 में इसका उत्पादन 4.5 मिलियन टन होता था, जो 2015-16 में बढ़कर लगभग 21 मिलियन टन हो गया. प्याज की प्रतिव्यक्ति उपलब्धता 4 किलो से बढ़कर 13 किलो हो गई है. कर्नाटक और महाराष्ट्र मिलकर पूरे देश की लगभग 45 प्रतिशत प्याज का उत्पादित करते हैं.

फिर भी प्याज की कीमत आज 90 के पार जा पहुंची है. जाहिर है प्याज अभी लंबे समय तक लोगों को रुलाएगी. सब्जी मंडी से जुड़े व्यापारियों का मानना है कि अभी आगे कुछ महीने और आम लोगों को प्याज के आसमान छूते दामों का दंश सहना है. सब्जी मंडी से जुड़े व्यापारियों के मुताबिक पिछले सीजन की फसल बहुत कम मात्रा में किसानों और स्टॉकिस्टों के पास बची है, इसलिए प्याज के दामों में और बढ़ोतरी होना तय है.

फ़रवरी आने में अभी वक़्त है. इसलिए सरकार, जो अब तक प्याज के बढ़ते दाम इग्नोर कर रही है या फिर ये कि इतने अहम मुद्दे जो अब तक खामोश है उसे इसके प्रति गंभीर हो जाना चाहिए और इस गंभीर समस्या के निवारण के प्रति कोई ठोस कदम उठाने चाहिए.

Share This Article