राम मंदिर पर फैसले का बाबरी मस्जिद ढहाए जाने वाले मुक़दमे पर असर
सिटी पोस्ट लाइव :राम मंदिर-बाबरी मस्जिद के विवादित भूमि पर मालिकाना हक़ को लेकर तो सुप्रीम कोर्ट ने अपना फ़ैसला दे दिया है लेकिन बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने से जुड़े आपराधिक मुक़दमे 27 साल से अदालत में लंबित हैं.लेकिन सबके जेहन में एक सवाल है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले का अब क्या होगा.पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी पर भी बाबरी मस्जिद ढहाए जाने में मुक़दमा है.अयोध्या में विवादित भूमि पर राम मंदिर के हक़ में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामलों की जांच करने वाले जस्टिस मनमोहन लिब्रहान ने कहा है कि इस फ़ैसले का असर मस्जिद विध्वंस मामले पर भी हो सकता है.न्यायधीश का मानना है कि प्रीम कोर्ट के फ़ैसले के आधार पर बाबरी मस्जिद के ध्वंस को सही ठहराए जाने का तर्क भी दिया जा सकता है.
दक्षिणपंथी भीड़ ने 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था. इसके बाद हुए दंगों में क़रीब दो हज़ार लोग मारे गए थे.बाबरी मस्जिद विध्वंस की जाँच करने वाले जस्टिस लिब्रहान आयोग ने 17 साल चली लंबी तफ़्तीश के बाद 2009 में अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें बताया गया कि मस्जिद को एक गहरी साज़िश के तहत गिराया गया था.उन्होंने इस साज़िश में शामिल लोगों पर मुक़दमा चलाए जाने की सिफ़ारिश भी की थी.
छह दिसंबर 1992 को विवादित बाबरी मस्जिद गिरने के बाद दो आपराधिक मुक़दमे क़ायम किए गए थे. एक कई अज्ञात कारसेवकों के ख़िलाफ़ और दूसरा आडवाणी समेत आठ बड़े नेताओं के ख़िलाफ़ नामज़द मामला. आडवाणी और अन्य नेताओं पर भड़काऊ भाषण देने के आरोपों में मुक़दमा दर्ज हुआ था.इन दो के अलावा 47 और मुक़दमे पत्रकारों के साथ मारपीट और लूट आदि के भी लिखाए गए थे. बाद में सारे मुक़दमों की जाँच सीबीआई को दी गई. सीबीआई ने दोनों मामलों की संयुक्त चार्जशीट फाइल की.इसके लिए हाई कोर्ट की सलाह पर लखनऊ में अयोध्या मामलों के लिए एक नई विशेष अदालत गठित हुई. लेकिन उसकी अधिसूचना में दूसरे वाले मुक़दमे का ज़िक्र नहीं था. यानी दूसरा मुक़दमा रायबरेली में ही चलता रहा.
सभी मामले एक ही कृत्य से जुड़े थे इसलिए सभी मामलों में संयुक्त मुक़दमा चलाने का काम शुरू हुआ.12 फ़रवरी 2001 को हाई कोर्ट ने सभी मामलों की संयुक्त चार्जशीट को तो सही माना लेकिन साथ में यह भी कहा कि लखनऊ विशेष अदालत को आठ नामज़द अभियुक्तों वाला दूसरा केस सुनने का अधिकार नही है, क्योंकि उसके गठन की अधिसूचना में वह केस नंबर शामिल नहीं था.आडवाणी और अन्य हिंदूवादी नेताओं पर दर्ज मुक़दमा क़ानूनी दांव-पेच और तकनीकी कारणों में फंसा रहा.
पहले आडवाणी और अन्य नेताओं पर सिर्फ़ भड़काऊ भाषण देने का मुक़दमा रायबरेली में चल रहा था. लेकिन अप्रैल 2017 में सीबीआई की अपील पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित 8 लोगों के ख़िलाफ़ आपराधिक साज़िश का मुक़दमा दर्ज किया गया था.2017 में ही बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती समेत 12 अभियुक्तों पर आपराधिक साज़िश के आरोप तय कर दिए गए थे.लखनऊ की विशेष सीबीआई अदालत ने कहा था कि आडवाणी, जोशी, उमा भारती और अन्य के ख़िलाफ़ आपराधिक साज़िश के आरोप तय करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं.लेकिन अब देखना ये है कि इस मामले में इंसाफ़ होते-होते कितने अभियुक्त ज़िंदा बचेंगे.