सिटी पोस्ट लाइव, खूंटी: पिछले दो चुनावों में लगातार भाजपा प्रत्याशी को पटखनी देने वाले तोरपा के विधायक पौलुस सुरीन की राह इसबार आसान नहीं दिखती। जीत की हैट्रिक की तमन्ना पाले झामुमो के संभावित उम्मीदवार पौलुस सुरीन के समक्ष भाजपा ने गंभीर चुनौती पेश कर दी है। चुनाव से ठीक पहले जिला परिषद अध्यक्ष जोनिका गुड़िया को पार्टी में शामिल कर भाजपा ने यह साफ संदेश दे दिया है कि वह पौलुस सुरीन को किसी कीमत पर जीत की हैट्रिक नहीं लगाने देगी। ज्ञातव्य है कि तोरपा विधान सभा सीट पर प्रथम चुनाव से ही झापा और कांग्रेस के बीच मुकाबला होता रहा है। भाजपा और झामुमो का इस विधानसभा क्षेत्र में कोई खास प्रभाव नहीं रहता था। पहली बार 2000 के विधान सभा चुनाव में भाजपा के कोचे मुंडा ने झापा के अध्यक्ष एनई होरो को हराकर यह सीट भाजपा की झोली में डालकर राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था। इसके बाद 2004 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के कोचे मुंडा ने इस सीट पर कब्जा बनाये रखा। 2000 तक क्षेत्र में झामुमो का कोई प्रभाव नहीं था, लेकिन वर्ष 2009 के चुनाव में झामुमो ने पौलुस सुरीन को अपना उम्मीदवार बनाया। उस समय पौलुस को उग्रवादी संगठन पीएलएफआइ का खुला समर्थन मिला और पौलुस ने रिकार्ड मतों से कोचे मुंडा को पराजित कर पहली बार इस सीट को झामुमो की झोली में डाल दिया। इसके बाद गत विधान सभा चुनाव में पौलुस को जीत तो, मिली लेकिन महज 43 मतों से। इस चुनाव में पौलुस सुरीन को 32003 मत मिले थे, वहीं भाजपा के कोचे मुंडा को 31960 मत प्राप्त हुए, जबकि तीसरे स्थान पर रही झापा के सुमन भेंगरा को 18966 वोट मिले थे।
राजनीतिक जानकार बताते हैं कि अपने दो बार के कार्यकाल में पौलुस सुरीन पर एक खास समुदाय के लिए ही काम करने का आरोप लगा। आरोप है कि उन्होंने अपनी विधायक निधि से सदान बहुल इलाकों में कोई काम नहीं कराया। इससे इस समुदाय में विधायक के प्रति नाराजगी देखी जा रही है। इस स्थिति में इस चुनाव में पौलुस की राह आसान नजर नहीं आ रही है। यहां भाजपा व झामुमो के बीच कड़ा मुकाबला होने की संभावना है। अब देखना है कि भाजपा कोचे मुंडा पर या जोनिका गुड़िया पर दांव लगाती है और यह भी देखना होगा कि क्या मौजूदा विधायक पौलुस सुरीन अपना किला सुरक्षित रख पाते हैं या नहीं।