जस्टिस एसएन शुक्ला पर चलेगा मुक़दमा, न्यायपालिका के इतिहास में अपने तरह का पहला मामला
सिटी पोस्ट लाइव : भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के मौजूदा जज जस्टिस श्री नारायण शुक्ला के खिलाफ मुक़दमा दर्ज करने की सीबीआई की याचिका मंज़ूर कर ली.जस्टिस गोगोई ने जांच एजेंसी को जस्टिस शुक्ला के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार मामले में एफ़आईआर दर्ज करने की इजाज़त दे दी. गौरतलब है कि मौजूदा जज जस्टिस श्री नारायण शुक्ला भारत के ऐसे पहले जज होंगे जिन पर मुक़दमा चलाया जाएगा.
जस्टिस शुक्ला पर केस दर्ज करने के लिए सीबीआई ने सीजेआई को एक चिट्ठी लिखी थी और बताया था कि भारत के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की सलाह पर उसने जस्टिस शुक्ला के ख़िलाफ़ एक शुरुआती जांच बिठाई थी.उस वक़्त जस्टिस शुक्ला द्वारा कथित अनियमतताओं का मामला तत्कालीन सीजेआई यानी जस्टिस दीपक मिश्रा के संज्ञान में लाया गया था.ये चिट्ठी मिलने के बाद मौजूदा सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई ने सीबीआई को जस्टिस शुक्ला के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने की अनुमति दी.
सीबीआई ने जस्टिस रंजन गोगोई के सामने उस शुरुआती जांच के बारे में एक संक्षिप्त नोट भी पेश किया जिसमें सिलसिलेवार ढंग से सारे घटनाक्रमों की जानकारी थी.सीबीआई द्वारा पेश किए गए काग़ज़ातों और चिट्ठी के मद्देनज़र जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा, “मैंने आपकी चिट्ठी और उसके साथ संलग्न नोट को पढ़ा है. इनमें जो तथ्य, स्थितियां और जानकारियां मेरे सामने रखी गईं उन्हें देखते हुए मैं आपको नियमित जांच शुरू करने की अनुमति देने के लिए बाध्य हूं.”
जस्टिस शुक्ला पर आरोप है कि उन्होंने कथित तौर पर एक प्राइवेट कॉलेज को फ़ायदा पहुंचाया और साल 2017-18 बैच के छात्रों के प्रवेश की डेडलाइन ग़लत तरीक़े से बढ़ाई जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश और मौजूदा नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है.भारत में जुलाई, 1991 तक सुप्रीम और हाईकोर्ट के जजों पर मुक़दमा चलाने की अनुमति नहीं थी.लेकिन इसके बाद 25 जुलाई, 1991 को सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के जज के. वीरास्वामी के ख़िलाफ़ एक मामले की सुनवाई के दौरान एक ऐतिहासिक फ़ैसले में हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों पर भी एफ़आईआर किए जाने का आदेश दिया.
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वीरास्वामी की उस दलील को ख़ारिज कर दिया कि क़ानून ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को मुक़दमे से छूट दी है.मद्रास हाईकोर्ट के जज जस्टिस वीरास्वामी पर साल 1976 में भ्रष्टाचार के आरोप में केस दर्ज किया गया था.
जांच में अगर जस्टिस शुक्ला दोषी पाए गए तो उन पर पूरी प्रक्रिया के तहत महाभियोग भी चलाया जा सकता है. जस्टिस शुक्ला को सिर्फ़ और सिर्फ़ महाभियोग के ज़रिए हटाया जा सकता है और उसके लिए पूरी क़ानूनी प्रक्रिया का पालन ज़रूरी है. गौरतलब है कि भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में अब तक किसी जज को महाभियोग के ज़रिए नहीं हटाया गया है.साल 1991 के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद से ये पहला मामला है जब किसी जज पर मुक़दमा चलाने की अनुमति दी गई है.
जस्टिस शुक्ला पर एफ़आईआर किए जाने का फ़ैसला भी सुप्रीम कोर्ट की एक आंतरिक समिति द्वाका विस्तृत जांच और पूरी क़ानूनी प्रक्रिया पूरी किए जाने के बाद लिया गया.इस जांच में उन्हें कथित तौर पर अनियमितता और प्राइवेट मेडिकल कॉलेज को अनुचित फ़ायदा पहुंचाने का दोषी पाया गया.जस्टिस गोगोई ने जनवरी, 2018 से ही उनकी न्यायिक सेवाओं पर रोक लगाने का आदेश दिया था.गोगोई ने पिछले महीने ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ये सिफ़ारिश भी की थी कि जस्टिस शुक्ला को उनके पद से हटा दिया जाए.
पहले भी ऐसी घटनाएं हुईं हैं जब जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और सरकारों को उन्हें महाभियोग के ज़रिए हटाने की सिफ़ारिशें की गईं लेकिन किसी जज को हटाया नहीं गया.