जब आरएसएस कार्यकर्ताओं को पूरी-जलेबी का लालच देकर जेल भिजवाना चाहते थे लालू
सिटी पोस्ट लाइवः लालू यादव की किताब गोपालगंज टू रायसीना मेरी राजनीतिक यात्रा में लालू के राजनीतिक जीवन से जुड़ी कई दिलचस्प घटनाएं हैं। किताब में जिन राजनीतिक घटनाओं का जिक्र किया गया है उसमें से कुछ बातों को लेकर किताब के आने से पहले बिहार की राजनीति में भूचाल आया था। लालू से दोस्ती के लिए प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार दूत बनाकर भेजते थे और लालू ने नीतीश से दुबारा दोस्ती का प्रस्ताव ठुकरा दिया। इस घटना पर बिहार की राजनीति लंबे वक्त तक गर्म रही और किताब का यह खुलासा बाहर आया तो जाहिर है इससे इस किताब को लेकर जिज्ञासा और बढ़ी है। उस घटना का जिक्र भी होगा लेकिन फिलहाल उस बेहद दिलचस्प घटना का जिक्र जो जेपी आंदोलन से जुड़ा है।
लालू ने लिखा है-‘ जेपी आंदोलन के शुरूआती दौर में जेपी ने जेल भरो आंदोलन शुरू किया और मुझसे बड़ी संख्या में छात्रों को गिरफ्तारी के लिए तैयार करने का निर्देश दिया। आंदोलन अभी शुरूआती दौर में हीं था, ऐसे में जेल जाने के लिए कम हीं लोग तैयार थे। फिर भी मैंने 17 लोगों को तैयार किया जिनमें ज्यादातर एबीवीपी-आरएसएस से जुड़े लोग थे। मैं उन्हें यह कहकर पटना ले आया कि मेरे एक दोस्त के घर में पूड़ी-जलेबी का भोज है। मैंने उन्हें एक पुलिस वैन में बिठा दिया, जो उन्हें बक्सर जेल लेकर जाने लगी। लेकिन जैसे हीं पुलिस की वह बस बक्सर जेल के पास पहुंची, सभी 17 कार्यकर्ता बस से उतरकर फरार हो गये। यह सच है कि मैं उन्हें झूठ बोलकर अपने साथ ले आया था, लेकिन जेल का दरवाजा देखकर वे जिस तरह से भागे थे, वही जेपी के उद्देश्यों के प्रति उनकी खोखली प्रतिबद्धता को बताता था।’
लालू ने कथित रूप से जेल के डर से भाग जाने वाले एबीवीपी और आरएसएस कार्यकर्ताओं को जेपी के गुस्से से भी बचाया। इस संबंध में लालू ने लिखा है कि-‘यह खबर पटना पहुंच गई कि आंदोलन आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता डरपोंकों की तरह भाग गये। स्वतंत्रता सेनानी और जेपी के सहयोगी आचार्य राममूर्ति ने मुझे तलब किया और उन 17 कार्यकर्ताओं के रवैये पर चिंता जताते हुए मुझे जेपी से मिलने के लिए कहा। मैं घबराया हुआ था। जेपी से मिलकर मैंने कहा, बाबूजी, वे कार्यकर्ता दरअसल भागे नहीं थे। उनको यह जानकारी थी कि 1942 में आपने हजारीबाग जेल से भागकर ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ भूमिगत आंदोलन का सफलता पूर्वक निर्वाह किया था। उन्होंने आपका अनुकरण करने की कोशिश की थी। जेपी सिर्फ मुस्कुराए। शायद वह मेरा झूठ पकड़ चुके थे।’
लालू ने किताब में अपनी महत्वकांक्षाओं के बारे में भी बड़ी साफगोई से लिखा है। लालू केन्द्र में मंत्री बनना चाहते थे और इसके लिए वे लगातार प्रयास कर रहे थे। 1989 में जब वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने तो लालू दूसरी बार छपरा से चुनकर सांसद बने थे। सांसद बनने के बाद उनके अंदर केन्द्र में मंत्री बनने की महत्वकांक्षा पनपने लगी और इस महत्वकांक्षा को लालू ने स्वीकार किया है और अपनी किताब में लिखा है कि-‘नीतीश कुमार जो बाढ़ से जीतकर सांसद बने थे और मैंने मंत्री बनने का प्रयास किया। हम अपनी ओर ध्यान खींचने की उम्मीद में प्रधानमंत्री कार्यालय के आसपास अपना सबसे अच्छा कुर्ता पायजामा पहनकर घूमा करते थे। हांलाकि केन्द्रीय मंत्री बनने की यह शुरूआती महत्वकांक्षा जल्द हीं खत्म हो गयी। मेरा दिल बिहार में था और मैंने अपने करियर को अपने गृह राज्य में समर्पित करने का संकल्प लिया, जिसने मुझे इतना कुछ दिया था।’
कुल मिलाकर लालू ने अपनी किताब में ऐसी कई राजनीतिक घटनाओं के बारे में लिखा है जिसके बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते। लालू और उनसे जुड़ी घटनाओं को जानना बेहद रोचक है इसलिए यह किताब पढ़ने की जिज्ञासा पैदा करती है। किताब में लिखी गयी बातें लालू के हवाले से लिखी गयी है इसलिए सत्यता की पुष्टि हम नहीं करते लेकिन राजनीति और लालू में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को यह किताब बोर नहीं करती क्योंकि पन्ने-दर पन्ने यह किताब फ्लैशबैक में ले जाकर सियासत के कई दिलचस्प सीन दिखाती है।