झारखंडः मोदी लहर से आधा दर्जन कद्दावर नेताओं की राजनीतिक पारी खतरे में
झारखंडः मोदी लहर से आधा दर्जन कद्दावर नेताओं की राजनीतिक पारी खतरे में
सिटी पोस्ट लाइव, हजारीबाग: 2019 के लोकसभा चुनाव परिणाम में मोदी लहर के करिश्मे के बाद राज्य के कई कद्दावर नेताओं को घुटने के बल ला दिया है। ऐसे नेताओं को चुनाव पूर्व लग रहा था कि वे राज्य की राजनीतिक दिशा और दशा मोड़ने में सक्षम होंगे लेकिन मोदी लहर ने ऐसे सभी नेताओं के मंसूबों पर पूरी तरह से पानी फेर दिया है। रांची लोकसभा सीट की चर्चा करें तो कांग्रेस के सुबोधकांत सहाय एवं रामटहल चौधरी को बड़ा राजनीतिक खिलाड़ी आंका जा रहा था। कहा जा रहा था कि भले ही रामटहल चौधरी भाजपा से अलग होकर रांची सीट से चुनाव नहीं जीत पाएंगे लेकिन जातिगत पकड़ के कारण इतने वोट ले आएंगे कि भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ की जीत मुश्किल होगी। मोदी लहर ने सारे जातिगत समीकरणों को ध्वस्त कर दिया और रामटहल चौधरी को इस लायक भी नहीं छोड़ा कि वे पार्टी के निर्णय पर सवालिया निशान खड़ा कर सकें। रांची सीट से भाजपा प्रत्याशी संजय सेठ की करीब पौने तीन लाख वोटों से जीत हुई और रामटहल चौधरी को महज 29597 वोट मिले। जाहिर है कि मोदी लहर ने रामटहल चौधरी की राजनीतिक पारी को करीब-करीब समाप्त कर दिया।इतना ही नहीं, पिछले दो चुनावों से कांग्रेस प्रत्याशी रहे सुबोधकांत सहाय की हार ने उनके राजनीतिक भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
हजारीबाग सीट की चर्चा करें तो भाकपा के राज्य सचिव एवं पार्टी प्रत्याशी भुवनेश्वर प्रसाद मेहता की राजनीतिक पारी भी करीब-करीब समाप्ति पर है। 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद मेहता ने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की थी लेकिन वे राजनीति में सक्रिय रहे। 2019 के चुनाव के पूर्व उन्होंने काफी सक्रियता दिखाई और महागठबंधन का प्रत्याशी बनने के लिए पूरा जोर लगा दिया लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी। प्रचंड मोदी लहर में मेहता को महज 32 हजार मत प्राप्त हुए। ऐसे में उनके राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। झामुमो के गढ़ दुमका से आठ बार सांसद रहे झामुमो के शिबू सोरेन को 2019 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुनील सोरेन के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा है। भले ही गुरुजी की छवि आज भी आदिवासी तबके में अच्छी मानी जाती है लेकिन मोदी लहर में चुनावी हार और उम्र के इस पड़ाव में उनके राजनैतिक भविष्य पर भी संशय के बादल मंडरा रहे हैं। कोडरमा से झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के लिए 2019 का चुनाव राजनीतिक संजीवनी से कम नहीं था, लेकिन भाजपा प्रत्याशी अन्नपूर्णा देवी के हाथों साढ़े चार लाख से अधिक मतों से करारी हार, उनकी राजनीति साख को भी धुंधला करने के लिए काफी है। पिछले दो चुनावों से मरांडी राजनीतिक मुकाम के लिए संघर्ष करते नजर आए लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी। इस चुनाव के पूर्व समझा जा रहा था कि राज्य में कांग्रेस, झामुमो, झाविमो व राजद का गठबंधन भाजपा नेताओं के मनोबल को तोड़ने का काम करेगा। गठबंधन महज पांच महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा को निर्णायक शिकस्त देकर सत्ता से बेदखल करने का मंसूबा तैयार चुका था। लेकिन दांव उल्टा पड़ गया और गठबंधन के इन कद्दावर नेताओं के सामने अस्तित्व बचाने का संकट आ खड़ा हुआ है।