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सियासत की लड़ाई आक्रामक हो तो नेता नहीं किताब भी लड़ते हैं, इन दो किताबों का महायुद्ध समझिए

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सियासत की लड़ाई आक्रामक हो तो नेता नहीं किताब भी लड़ते हैं, इन दो किताबों का महायुद्ध समझिए

सिटी पोस्ट लाइवः सियासत की लड़ाई अब बेहद तल्खी के साथ लड़ी जाती है। राजनीति में चलने वाली लड़ाईयां कई बार इतनी आक्रामक होती है कि नेता हीं नहीं बल्कि नेताओं से जुड़े कई चीजों के बीच भी तकरार ठन जाती है। मसलन किताब। नेताओं के जीवन पर आधारित किताबों पर अक्सर देश की सियासत में गर्माहट पैदा होती रही है और नये विवाद जन्म लेते रहे हैं। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर कांग्रेस की सरकार में विदेश मंत्री रहे नटवर सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सलाहकार रहे संजय बारू की किताब ने देश की सियासत में यदा-कदा भूचाल लाया है।

बिहार में लालू की ‘लालू’ चालीसा खूब प्रसिद्ध रही है, एक वक्त में जब लालू का आमलोगों में क्रेज चरम पर था तब यह किताब बहुत चाव से पढ़ी और सुनी जाती थी। अब लालू यादव की एक किताब आ रही है, ‘गोपालगंज टू रायसीनाः माई पाॅलिटिकल जर्नी’। देश के जाने-माने पत्रकार नलिन वर्मा इस किताब के सह लेखक हैं। इस किताब का लोकापर्ण बहुत जल्द होना है, लोकापर्ण की टाइमिंग पर भी सवाल उठ रहे हैं, दूसरी तरफ इस किताब के कुछ अंश बाहर आ जाने से भी बवाल है।

लालू ने किताब में खुलासा किया है कि नीतीश कुमार महागठबंधन छोड़ने के बाद जब बीजेपी के साथ हो लिए इसके छः महीने के बाद हीं वे दुबारा महागठबंधन में एंट्री चाहते थे। प्रशांत किशोर ने इसके लिए लालू से कई मुलाकात की थी लेकिन लालू को नीतीश कुमार पर भरोसा नहीं था इसलिए यह दोस्ती दुबारा नहीं हो सकी। लालू के खुलासे पर नीतीश कुमार अब तक खामोश हीं रहे हैं लेकिन प्रशांत किशोर ने मोर्चा संभाल रखा है। प्रशांत किशोर ने लालू की बातों को बेबुनियाद बताया है और एक दूसरा खुलासा कर दिया है।

उन्होंने यह स्वीकार किया कि हां लालू यादव से मुलाकात होती थी लेकिन क्या बात होती थी अगर मैं यह खुलासा कर दूं तो लालू शर्मा जाएंगे। बहरहाल यह किताब लोकापर्ण के पहले हीं चर्चा में आ गयी है जैसा की राजनीति और राजनेताओं से जुड़े हर किताब के साथ होता है लेकिन इस किताब की लड़ाई बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी द्वारा लिखित ‘लालू लीला’ से है क्योंकि सुशील मोदी का एक ट्वीट सामने आया है। बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने आरोप लगाये हैं कि यह किताब लालू को चर्चा में रखने की कोशिश भर है।

उन्होंने ट्वीट किया-‘लालू प्रसाद के बारे में लालू चालीसा सहित कई किताबें लिखी गई। चालीसा लिखने वाले को उनकी पार्टी ने राज्यसभा का सदस्य बनाया था। उन पर ताजा किताब के शीर्षक से लगता है कि इसमें होटवार जेल पहुंचने की कहानी नहीं होगी। यह प्रकाशन चुनाव के समय अप्रासंगिक होते लालू प्रसाद को चर्चा में रखने की कलाबाजी का हिस्सा हो सकता है। उनके गरीब विरोधी चरित्र को समझने के लिए लोग मेरी किताब लालू लीला खूब पढ़ रहे हैं।’

जाहिर है सुशील मोदी ने साफ कर दिया है कि अगर किताब के जरिए लालू यादव को हीरो दिखाने की कोशिश हुई तो वे अपनी किताब ‘लालू लीला’ के जरिए लालू को विलेन साबित करने की कोशिश करते रहेंगे। फिलहाल हम तय नहीं कर सकते कि लालू सियासत के विलेन हैं या हीरो इसलिए आप इन दो किताबों के महायुद्ध का मजा लीजिएगा क्योंकि एक तरफ लालू की किताब में उनसे जुड़े कई अनछुए पहलु होंगे, किताब में कई ऐसी बातें हो सकती जिससे लालू को लेकर जो आमलोगों में नकारात्मक धारणा है उसे गलत बताया गया हो, दूसरी तरफ सुशील मोदी की ‘लालू लीला’ होगी।

इस किताब में लालू के कथित भ्रष्टाचार से जुड़े कई खुलासे किये गये हैं। कमाल की बात यह है कि अब जब लालू की लिखी किताब लोगों के बीच बस आने हीं वाली है तो दूसरी तरफ इस वजह से सुशील मोदी की किताब की प्रासंगिता और बढ़ जाएगी क्योंकि यह दो किताबों का महायुद्ध है।

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