पाक्सो कोर्ट की भूल, मीडिया का ब्लंडर और CM के खिलाफ प्लांट हो गई झूठी खबर

City Post Live

पाक्सो कोर्ट की भूल, मीडिया का ब्लंडर और CM के खिलाफ प्लांट हो गई झूठी खबर

सिटी पोस्ट लाइव : चुनावी माहौल में सारी राजनीतिक मर्यादा तार तार हो गई है. नेता एक दुसरे के खिलाफ अनाप शनाप आरोप तो लगाते ही रहते हैं .लेकिन अब अफवाह फैलाने का सबसे बड़ा औजार मीडिया ही बन गया है. आज सभी खबरियां चैनलों से लेकर वेब पोर्टल पर एक बड़ी खबर चलने लगी. खबर थी कि मुजफ्फरपुर बालिका गृह काण्ड मामले में पाक्सो कोर्ट द्वारा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव समेत मुजफ्फरपुर के तत्कालीन डीएम के खिलाफ जांच का आदेश सीबीआई को दे दिया गया है. इस खबर से देश भर में हडकंप मच गया. लेकिन सच्चाई से इस खबर का दूर दूर तक कोई नाता नहीं था. यह खबर पूरी तरह से गलत, भ्रामक और प्लांटेड थी. दरअसल,मुजफ्फरपुर  पोक्सो कोर्ट के न्यायधीश छुट्टी पर हैं. उनकी जगह प्रभार में जो जज हैं, उन्हें किसी अभियुक्त के आवेदन पर इस तरह का फैसला लेने का या फिर उसे सीबीआई को फॉरवर्ड करने का कोई अधिकार ही नहीं है.

सबसे ख़ास बात ये है कि मुख्यमंत्री समेत दो बड़े अधिकारियों के खिलाफ जांच की मांग करनेवाला खुद एक आरोपी है. एक आरोपी के मांग पर किसी के खिलाफ जांच का आदेश कोई कोर्ट कैसे दे सकता है? सिटी पोस्ट लाइव ने अपनी पड़ताल में इस खबर को महज अफवाह तो पाया ही साथ ही उसे ये जानकारी भी मिली कि  मुजफ्फरपुर विशेष पोक्सो कोर्ट ने   एक अभियुक्त के   आवेदन को  सीबीआई को फॉरवर्ड कर दिया जबकि मान्य प्रक्रिया के तहत  एक प्रभारी जज को एक आरोपी के आवेदन को सीबीआई को फॉरवर्ड करने का अधिकार ही  नहीं था. एक अभियुक्त के आवेदन को पोक्सो कोर्ट के प्रभारी जज ने  किस आधार पर और किस अधिकार के तहत  सीबीआई को कैसे फॉरवर्ड कर दिया ,इसको लेकर भी न्यायिक जगत में चर्चा चल रही है.

दरअसल, बालिका गृह कांड में गिरफ्तार डॉक्टर अश्विनी ने अपने वकील के जरिए अर्जी दी है. इसमें मांग की गई है कि बालिका गृह के संचालन में सीएम नीतीश कुमार, समाज कल्याण प्रधान सचिव अतुल प्रसाद और तत्कालीन डीएम धर्मेंद्र सिंह की भूमिका की जांच की जाए. पॉक्सो कोर्ट ने इसे  सीबीआई को फॉरवर्ड कर दिया. लेकिन कानून के जानकारों के अनुसार पोक्सो कोर्ट के प्रभारी जज को एक अभियुक्त के आवेदन को सीबीआई को फॉरवर्ड करने का अधिकार भी नहीं है. जज ने एक भूल की और मीडिया ने एक बड़ी लापरवाही बरती जिसकी वजह से  मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे एक सख्श का मान हनन हो गया.खबर को गलत तरीके से उछाल  दिया गया.किसके बयान के आधार पर यह झूठी खबर बड़ी खबर बनकर छा गई, जांच की जा रही है. लेकिन इससे एक बात तो साफ़ हो गई है कि ब्रेकिंग न्यूज़ देने के चक्कर में मीडिया वगैर जांच पड़ताल के मुख्यमंत्री के खिलाफ भी अनाप शनाप खबरें छप  सकती हैं..गौरतलब है कि कोर्ट के आदेश को गलत तरह से छापना भी कोर्ट का अवमानना है.

गौरतलब है  कि पिछले वर्ष मुजफ्फरपुर शेल्टर होम में बच्चियों के यौन शोषण की बात सामने आई थी. इसके बाद   28 मई, 2018 को एफआईआर दर्ज कराई गई.  फिर 31 मई को 46 नाबालिग लड़कियां मुक्त करवाई गईं और संचालक ब्रजेश ठाकुर समेत 20 लोग गिरफ्तार किए गए थे.मामले की जांच कर रही है सीबीआई और नीतीश सरकार पर बीते हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर संवाल उठाते हुए ये केस पटना से दिल्ली के साकेत पॉक्सो कोर्ट ट्रांसफर कर दिया है. जहां अगले हफ्ते से सुनवाई शुरू होगी.

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