नीतीश सरकार कानून व्यवस्था को दुरुस्त करने के साथ राज्य को विकास की पटरी पर वापस लाने के लिए देश में जानी जाते है.सत्ता में आने के बाद सबसे पहले उन्होंने कानून-व्यवस्था को दुरुस्त किया.दूसरा बड़ा काम उन्होंने विकास कार्यों को गति देकर बिहार को फिर से पटरी पर लाने का किया ..जहाँ काम होगा वहां, भ्रष्टाचार की शिकायतें भी आयेगीं .ऐसा ही बिहार में भी हुआ . पांच साल कानून-व्यवस्था-विकास के फ्रंट पर काम करते करते नीतीश कुमार का ध्यान भी स्वाभाविकरूप इस भ्रष्टाचार की तरफ गया.ठीक चुनाव के पहले उन्होंने अपने कानून-व्यवस्था और विकास के अजेंडे को बदलते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग-ए-एलान कर दिया .उन्होंने एलान किया-“अब भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाई जाएगी”.भ्रष्टाचार के खिलाफ जैसे जैसे कारवाई शुरू हुई भ्रष्टाचार का और बड़ा चेहरा सामने आता गया. पिछले एक दशक से भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे अभियान में 1700 से अधिक लोकसेवकों घूसखोरी करते रंगे हाथों पकडे गए.उन्हें जेल हुई .करीब डेढ़ दर्जन बड़े नौकरशाहों की करीब 20 करोड़ से भी अधिक की काली कमाई को सरकार ने जब्त कर लिया .
पिछले साल भागलपुर में बहुचर्चित सृजन घोटाला सामने आया जिसमे कई अधिकारी फंसे फिर वर्ष 2018 में सबसे पहले विशेष निगरानी इकाई ने सारण के पूर्व जिलाधिकारी दीपक आनंद के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का केस दर्ज कर उनके ठिकानों पर छापेमारी की. दीपक आनंद की काली कमाई की अभी जांच चल ही रही थी कि एसवीयू ने भारतीय पुलिस सेवा के वर्ष 2007 बैच के अधिकारी व मुजफ्फरपुर के पूर्व एसएसपी विवेक कुमार की काली कमाई का पर्दाफाश कर दिया. फिलहाल दोनों ही आइएएस व आइपीएस अधिकारी निलंबित चल रहे हैं.इससे पहले वर्ष 2016 में बिहार कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित प्रतियोगिता परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक मामले में राज्य के वरिष्ठ अधिकारी व आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष सुधीर कुमार को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.
वर्ष 2016 के नवंबर में निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने वर्ष 2013 बैच के आइएएस व मोहनियां के तत्कालीन एसडीओ डॉ. जितेंद्र गुप्ता को एक ट्रक ड्राइवर से 80 हजार की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया.हालांकि बाद में जितेंद्र गुप्ता को सभी आरोपों से हाइकोर्ट ने बरी कर दिया.
भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति का सबसे अधिक प्रभाव राज्य की नौकरशाही पर पड़ा है. अनुसूचित जाति व जनजाति कल्याण विभाग के तत्कालीन सचिव एसएम राजू अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के छात्र-छात्राओं की छात्रवृत्ति में भ्रष्टाचार के मामले में फंसे. राजू समेत विभाग के कई अधिकारी इस मामले में अभियुक्त बने. पिछले दिनों सीबीआइ की टीम ने औरंगाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी कंवल तनुज के कई ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की. कंवल तनुज पर आरोप है कि उन्होंने नबीनगर बिजली परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण में भ्रष्टाचार किया है.
भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू किये गए इस अभियान की चपेट में राजस्तरीय सेवाओं के कई बड़े अधिकारी भी आये.उनमे से ज्यादातर की काली कमाई या तो जब्त की जा चुकी है या फिर जब्ती के कगार पर हैं. लघु जल संसाधन विभाग के पूर्व मुख्य अभियंता अवधेश कुमार सिंह, राज्य के पूर्व औषधि नियंत्रक वाइके जायसवाल, राजभाषा विभाग के पूर्व निदेशक डीएन चौधरी भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे हुए हैं. निचले स्तर के करीब तीन दर्जन लोकसेवकों की काली कमाई की जांच भी अब अपने अंतिम चरण में है और जल्द ही इनकी काली संपत्ति जब्त करने की कानूनी प्रक्रिया पूरी होने वाली है.
लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई छेड़ने के वावजूद देश दुनिया की नजर में बिहार आज भी भ्रष्टाचार के मामले में अव्वल ही है.दुनिया के तीन सबसे बड़े विश्वविद्यालयों यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के स्कॉलर गुओ जू, मैरिएन बंट्रेंड और रॉबिन बर्गीज के “भारत की नौकरशाही भ्रष्टाचार” पर किए गए शोध के अनुसार बिहार भ्रष्टाचार के मामले में अभी भी बहुत आगे है.लेकिन इस शोध की एक बात बिहार पर फिट नहीं बैठती कि कि अपने गृहराज्य में पोस्टिंग पाने वाले नौकरशाह अन्य प्रदेशों में अपनी सेवाएं देने वाले नौकरशाह के मुकाबले अधिक भ्रष्ट होते हैं.बिहार में भ्रष्टाचार के आरोप में पकडे गए ज्यादातर अधिकारी दूसरे प्रदेशों के हैं. अबतक भ्रष्टाचार के दोषी पाए गए एक दर्जन बड़े अधिकारियों में से 7 अधिकारी दूसरे प्रदेशों से ताल्लुक रखते हैं.बिहार में जहाँ सबसे पहले भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक जंग की शुरुवात हुई है ,भ्रष्टाचार का चेहरा छोटा होने की बजाय और बड़ा होता दिख रहा है जो स्वाभाविक है.
अपने देश में हमेशा भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े से कड़े कानून बनाने की मांग होती रहती है.हर साल नए नए कानून बनते भी रहते हैं लेकिन वांछित नतीजा नहीं निकलता.इसकी एक ठोस वजह है.जबतक भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए बनाए गए कानून को लागू करने की जिम्मेवारी ईमानदार हाथों में नहीं दी जायेगी तबतक इस कानून का इस्तेमाल भ्रष्टाचारियों को कम अपने विरोधियों को निबटाने में ज्यादा किया जाता रहेगा.एक भ्रष्ट नौकरशाह के हाथ में भ्रष्टाचार निरोधी कानून को अमलीजामा पहनाने का काम दे दी जाए तो सबसे पहले वह उन अधिकारियों को निबटाने की कोशिश करेगा ,जी ईमानदार हैं .यह एक बेईमान अधिकारी के लिए जरुरी भी है क्योंकि वगैर ईमानदारों को निशाना बनाए वह अपने को सबसे ज्यादा ईमानदार साबित नहीं कर पायेगा.इसलिए सावधान ! जाँचिये, ठीक से परखिये ,भ्रष्टाचार निरोधी कानून का कहीं ईमानदार अधिकारियों को डराने के लिए तो नहीं हो रहा है ? अगर ऐसा हुआ तो सब गुड़ गोबर हो जाएगा.ईमानदार खुलकर काम करने की बजाय दुबक जायेगें और बेईमान सीना ताने और मजबूती के साथ खड़े नजर आयेगें.
श्रीकांत प्रत्यूष .