महागठबंधन में महा-उपेक्षा के शिकार वामदल, कन्हैया कु. की सीट पर भी संकट

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महागठबंधन में महा-उपेक्षा के शिकार वामदल, कन्हैया कु. की सीट पर भी संकट

सिटी पोस्ट लाइव : 1990 के दशक का एक वक्त वह भी था जब बिहार में वामपंथी दलों की मौजूदगी सड़क से लेकर सदन थी. उस दौर में बिहार विधानसभा में वामपंथी दलों के 30 से अधिक विधायक हुआ करते थे.1990  में CPI के 23,CPM के  06 और आईपीएफ के 7 विधायक थे.1995   में  CPI के 26,CPM के 06 और आईपीएफ के   06 विधायक थे. वर्ष 2000 में CPI के  02 ,CPM के  02  और आइपीएफ के  05 विधायक रह गए. यानी धीरे धीरे CPI CPM की राजनीतिक ताकत आइपीएफ से भी कम हो गई.2015 के चुनाव के बाद CPI-CPM विधायक विहीन हो गई और आइपीएफ यानी माले भी तीन विधायकों तक सिमट गई.

बामदलों के कमजोर होने का नतीजा ये है 2019 के लोक सभा चुनाव को लेकर बिहार में महागठबंधन के बीच बैठकों के दौर जारी है. सीटों की हिस्सेदारी को लेकर जहां हर दल अपना दबाव बना रहे हैं, वहीं वामदलों को कोई तरजीह नहीं दे रहा. ऐसा लगता है महागठबंधन बिना वामदल के चुनाव में जाने की तैयारी कर रहा है.बेगूसराय से चुनाव की तैयारी में जोरशोर से जुटे कन्हैया कुमार का ये कहना कि उन्होंने बेगूसराय सीट के कोई दावेदारी पेश नहीं की है, जाहिर करता है कि अभीतक महागठबंधन के साथ बामदलों का गठबंधन नहीं हो पाया है.जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार दिन-रात बेगूसराय में मेहनत भी कर रहे हैं लेकिन उनके इस बयान से साफ है कि महागठबंधन के बाकी दल भी कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी को लेकर एकमत नहीं हैं.

1990 के दशक का एक वक्त वह भी था जब बिहार में वामपंथी दलों की मौजूदगी सड़क से लेकर सदन थी. उस दौर में बिहार विधानसभा में वामपंथी दलों के 30 से अधिक विधायक हुआ करते थे. लेकिन साल दर साल उनका जनाधार गिरता चला गया.आज वो महागठबंधन में 6 सीटों की मांग कर रहे हैं लेकिन अभीतक एक अपने साझा उम्मीदवार कन्हैया कुमार के लिए बेगूसराय की एक सीट भी फाइनल नहीं करा पाए हैं.दरअसल,महागठबंधन में सहयोगी दलों की संख्या अधिक हो गई है और हर दल की अपनी महत्वाकांक्षा है. आरजेडी, कांग्रेस, हम, आरएलएसपी, वीआइपी के साथ लेफ्ट की तीन पार्टियां शामिल हैं. जाहिर है सीटों की अधिक हिस्सेदारी की चाहत हर दल की है. ऐसे में बिहार में जनाधार खो चुके वाम दलों को महागठबंधन में अहमियत नहीं मिल रही है.

कांग्रेस और आरजेडी के बीच भी अभीतक सीटों के बंटवारे पर सहमति नहीं बन पाई है. आरजेडी और बाकी दलों के बीच 20-20 का फॉर्मूला भी ध्वस्त हो चुका है. कांग्रेस अकेले 15 सीटों की मांग पर अड़ी है. आरजेडी अपनी हिस्सेदारी छोड़ना नहीं चाह रही. आरएलएसपी, हम और वीआइपी की भी अपनी-अपनी दावेदारी है. ऐसे मे वामदलों को कितनी तरजीह महागठबंधन में मिल पायेगी, अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है.

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