जब एक मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को हरा दिया,सदन में अचानक मारी एंट्री, गिर गयी सरकार
सिटी पोस्ट लाइवः थोड़ा जायका बदलिए और खबरों से थोड़ा अलग उस राजनीतिक मिजाज को जानिए जिससे खबरें जन्म लेती हैं। थोड़ा फ्लैशबैक में चलिए और एक बड़ी राजनीतिक घटना से सियासत को समझने की कोशिश कीजिए। हम आपको राजनीति का वो मिजाज समझाने की कोशिश कर रहे हैं जिसे या तो आपने नहीं देखा है या फिर घटनाएं आपके जेहन में धुंधली हो चुकी है। सियासत रोज अपने तेवर बदलती है, अपनी अदा बदलती है, राजनीति राम को लाती है, हनुमान को लाती है, डीएनए, ‘नीच’, सड़क छाप, चोर तो बदलते वक्त के साथ सियासत की शब्दावली भी बदलती है, मौसम चुनाव का है इसलिए जाहिर है आने वाले दिनों में आप कई दूसरे राजनीतिक मिजाज से रूबरू होंगे, सियासत की कई अदाओं से आपका सामना होगा इसलिए चलिए कुछ पुरानी घटनाओं से आपको रूबरू कराते हैं मकसद यह समझाना है कि राजनीति की हार-जीत में पहले और अब कितना अंतर होता था। आज कोई हार जाता है इसलिए कि कोई किसी को हरा देता है तब कोई हार जाता था क्योंकि तब कोई हारने के लिए तैयार होता था, राजनीति के मूल्यों और संस्कारों में उसकी आस्था उसे उसकी हार स्वीकार करने की हिम्मत देते थे। अजीब नहीं कहेंगे आप उस घटना को जब कोई मुख्यमंत्री किसी प्रधानमंत्री को हरा दे। राजनीति की इस खेल भावना को सलाम करना पड़ेगा जब की सीएम किसी पीएम को हरा दे, किसी सरकार का गणित बिगाड़ दे और कोई प्रधानमंत्री इस हार को सहर्ष स्वीकार कर ले। कितना सुखद लगता है न आपको यह सुनना कि तब की राजनीति क्या थी।
आपके इंतजार को और लंबा नहीं खिंचूंगा चलिए फ्लैशबैक में चलते हैं। साल 1999 और 17 अप्रैल की तारीख संसद का सत्र चल रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को सदन में अपना बहुमत हासिल करना है वोटिंग हुई और वोटिंग के एक घंटे के बाद लोकसभा अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी एलान करते हैं। अटल बिहार वाजपेयी एक वोट से हार गये। वाजपेयी प्रधानमंत्री नहीं रहते हैं उनके समर्थन में 269 वोट पड़े और उनके खिलाफ 270 वोट। एक वोट से बीजेपी की सरकार चली जाती है अटल बिहारी वाजपेयी का प्रधानमंत्री का पद चला जाता है लेकिन इससे आगे की कहानी और दिलचस्प है। दरअसल उस वक्त सरकार और सियासत का गणित बिगाड़ दिया था एक किरदार ने जो अचानक उड़ीसा से लोकसभा में एंट्री करता है, वोट डालता है और वोट के बाद बीजेपी का गणित बिगड़ जाता है। इस किरदार का नाम है गिरिधर गमांग जिन्हें कांग्रेस ने कुछ वक्त पहले हीं उड़ीसा का मुख्यमंत्री बनाकर भेजा था। वे लोकसभा के सदस्य थे लेकिन वे उड़ीसा के मुख्यमंत्री भी थे। किसी को यह अंदाजा नहीं था कि वे अचानक वोट डालने चले आएंगे और और उनके एक वोट से वाजपेयी सरकार गिर जाएगी। खुद वाजपेयी सरकार को भी ऐसा अंदेशा नहीं था। हांलाकि वोटिंग के बाद जब वाजपेयी सरकार चली गयी तो तब बीजेपी में वाजपेयी के बेहद करीबी और नंबर दो की हैसियत रखने वाले लाल कृष्ण आडवाणी ने गिरिधर गमांग के वोट को जनादेश का उलंघन कहा था।
तब राजनीति में दलों के संस्कार और दिलों का दायरा कितना बड़ा होता था इसका अंदाजा इस बात से लगाईए कि बीजेपी के कुछ नेताओं ने अटल बिहारी वाजपेयी को यह राय दी कि आप लोकसभा अध्यक्ष द्वारा गिरिधर गमांग के वोटिंग अधिकार देने के फैसले को चुनौती दें तब वाजपेयी ने इनकार कर दिया था जरा सोचिए आज जहां सरकार बनाने और गिराने के लिए क्या कुछ नहीं होता तब अटल बिहारी वाजपेयी ने एक फैसले को चुनौती देना भी सही नहीं समझा था और अपनी हार को सहर्ष स्वीकार किया था। हांलाकि वोटिंग से पहले संसदीय कार्यमंत्री कुमारमंगलम और अटल बिहारी वाजपेयी के कई दूसरे सहयोगियों ने लोकसभा अध्यक्ष जीएमसी बालयोगी से कहा था कि गिरिधर गमांग को वोटिंग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि वे उड़ीसा के मुख्यमंत्री हैं और 60 दिन से सदन से गैरहाजिर हैं फिर भी वोटिंग हुई और इस तरह एक मुख्यमंत्री ने एक प्रधानमंत्री को हरा दिया। हराने वाले का नाम उड़ीसा के मुख्यमंत्री गिरिधर गमांग और हारने वाले का नाम भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी। तो ऐसे हीं दिलचस्प किस्सों से भरा हुआ है देश का राजनीतिक इतिहास। सियासत का वर्तमान दुःख पहुंचाए या निराशा भर दे, तो कभी कभी अतीत में भी टहला कीजिए ऐसे दिलचस्प किस्से थोड़ा सुकुन देंगे और यह भरोसा भी भरेंगे कि जब पहले इतना बढ़िया था तो अब भी बहुत खराब नहीं हुआ होगा।