सवर्णों को आरक्षण हकीकत या मोदी सरकार का एक और जुमला, जानिये हकीकत

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सवर्णों को आरक्षण हकीकत या मोदी सरकार का एक और जुमला, जानिये हकीकत

सिटी पोस्ट लाइव : मोदी सरकार ने SC/ST एक्ट को लेकर नाराज चल रहे सवर्ण समाज के वोटर को मनाने के लिए आरक्षण का मास्टर स्ट्रोक खेला है. मोदी सरकार ने सवर्णों को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा कर दी है.इस प्रस्ताव को  कैबिनेट की मंजूरी भी दे दी है. एक ओर जहां सत्ता पक्ष केन्द्र के इस फैसले को बड़ा कदम और सबका साथ सबका विकास के मोदी के नारे के साथ जोड़ रही है, वहीं विपक्ष इसे केवल एक जुमला बता रहा है.

अब सवाल ये उठता है कि आखिर विपक्ष इसे एक जुमला करार क्यों दे रहा है. क्या उसे यह डर सता रहा है कि BJP से नाराज चल रहा सवर्ण समाज एकबार फिर से BJP के साथ खड़ा हो जाएगा. लेकिन सबसे बड़ा सवाल- क्या आर्थिक आधार पर गरीब सवर्णो को आरक्षण देना संभव है. ये सवाल इसलिए भी ज्यादा जरुरी हो जाता है क्योंकि इससे पहले भी ऐसी एक कोशिश नरसिम्हा राव की सरकार कर चुकी है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया था. दरअसल संविधान में आरक्षण का अधिकतम सिमा  50 प्रतिशत का है. इसे लेकर कोर्ट पहले भी कई राज्यों में आरक्षण की मांगों को पलट चूका है. 2014 में कांग्रेस की जाटों को आरक्षण देने की कोशिश का भी यहीं हाल हुआ था. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि बीजेपी सवर्णों को आरक्षण कैसे देगी?

केंद्र और राज्यों में पहले ही अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फीसदी और अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए 22.5 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था है. ऐसे में अगर सरकार सवर्णो को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कह रही है तो उसे सबसे पहले आरक्षण की सीलिंग के दायरे को आगे बढ़ाना होगा. बीजेपी का कहना है कि सरकार आरक्षण के दायरे को 49.5 प्रतिशत से बढाकर 59.5 प्रतिशत कर देगी. सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार सवर्णों को आरक्षण देने के लिए आज  मंगलवार को संसद के शीत कालीन सत्र में संविधान संशोधन बिल पेश कर सकती है. संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में बदलाव करने के लिए यह  बिल पेश हो सकता है.दोनों अनुच्छेद में बदलाव कर सरकार इसमें आर्थिक आधार को भी एक मापदंड बनाएंगी, जिससे सवर्णो को आर्थि​क आधार पर आरक्षण देने का रास्ता साफ हो जाएगा.

संविधान के चैप्टर थ्री में अनुच्छेद 15 का जिक्र है. इसके अनुसार केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान, या इनमें से किसी के भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. इसके अनुसार अंशतः या पूर्णतः राज्य के कोष से संचालित सार्वजनिक मनोरंजन स्थलों या सार्वजनिक रिसोर्ट में निशुल्क प्रवेश के संबंध में यह अधिकार राज्य के साथ-साथ निजी व्यक्तियों के खिलाफ भी प्रवर्तनीय है.हालांकि, राज्य को महिलाओं और बच्चों या अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति सहित सामाजिक और ‘शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों’ के नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान बनाने से राज्य को रोका नहीं गया है.

अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोजगार के संबंध में अवसर की समानता की गारंटी देता है और राज्य को किसी के भी खिलाफ केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान या इनमें से किसी एक के आधार पर भेदभाव करने से रोकता है. इस अनुछेद में पांच क्लॉज हैं. इसी अनुछेद में राज्य द्वारा किसी वर्ग को आरक्षण देने की छूट दी गई है. वहीं हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की ओर से प्रमोशन में आरक्षण के फैसले को भी इसी अनुछेद के अंतर्गत संशोधन के बाद लागू किया गया था.सरकार इसी अनुछेद में आर्थिक आधार को संशोधन के रुप में जोड़ेगी.

अगर संविधान संशोधन कर सरकार सवर्णों को आरक्षण देने का रास्ता साफ़ कर भी देती है तो सबसे बड़ा सवाल – इस आरक्षण का लाभ किन सावनों को मिल पायेगा.सरकार के द्वारा तय मानक के अनुसार जिसकी  सालाना आय 8 लाख से कम होगी, जिसके पास 2- 5 एकड़ से कम खेती की जमीन होगी, जिसके पास 1000 स्क्वायर फीट से कम का घर होगा , जिसके पास मुनिसिपलिटी एरिया में 109 यार्ड से छोटा अधिसूचित जमीन होगी और जिसके पास  209 गज से कम की निगम की गैर-अधिसूचित जमीन होगी और जो अभी तक किसी भी तरह के आरक्षण के अंतर्गत नहीं आते हों, उन्हें ही इस आरक्षण का लाभ मिल पायेगा.

लेकिन सच्चाई ये भी है कि सरकार अगर इस मामले पर संशोधित बिल को दोनों सदनो में पास करा भी लेती है तो भी इसे सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है.  सरकार अगर इसे कानून बनाकर संविधान के 9वीं अनुसूची में डाल देती है तो भी यह कानून न्यायिक समीक्षा के दायरे में होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में 9वीं अनुसूची के कानून को भी समीक्षा के दायरे में रखने को कहा था. यानि अगर कानून, संविधान के आधार भूत ढांचे के खिलाफ हो तो सुप्रीम कोर्ट उस कानून को रदद् भी कर सकता है.

सरकार के इस फैसले के बाद जहां एक ओर गरीब सवर्णों को फायदा होगा  वहीं गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों के लिए कंपटीशन और बढ़ जाएगा. सरकारी शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में अब अवसर और भी कम हो जायेगें.जाहिर है इस आरक्षण से सवर्णों की चुनौती और भी बढ़ जायेगी.

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