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पूर्व कुलपति सहित दो विद्वानों के निधन से संस्कृत जगत में शोक

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#citypostlive दरभंगा : किसी को नहीं पता था कि साल 2018 जाते-जाते सभी को खासकर संस्कृतानुरागियों को एक साथ इतना बड़ा शोक दे जाएगा, जो शायद कभी नहीं भर पाएगा। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कर्मियों के चहेता व हरदिल अजीज प्राच्य विषयों के प्रकाण्ड विद्वान पूर्व कुलपति डॉ. रामकरण शर्मा एवम सिंडिकेट सदस्य प्रधानाचार्य डॉ. ब्रह्मानन्द चतुवेर्दी अब इस दुनिया मे नहीं रहे। 18 दिसम्बर की रात दोनों विद्वानों के सदा के लिए चले जाने से सभी मर्माहत के साथ किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। इनके निधन से संस्कृत शिक्षा को वाकई अपूर्णीय क्षति हुई है। डॉ. शर्मा का ईलाज के दौरान दिल्ली के एक निजी अस्पताल में तो डॉ चतुवेर्दी का दानापुर के निकट वाहन की ठोकर से निधन हो गयी। उक्त जानकारी देते हुए देते हुए जनसम्पर्क पदाधिकारी निशिकांत प्रसाद सिंह ने बताया कि संस्कृत विश्वविद्यालय के इतिहास में डॉ. शर्मा ही ऐसे भाषाविद विद्वान थे जो लगातार 1974 से 80 तक यानी छह वर्षों तक कुलपति रहे। आज जिस विश्वविद्यालय पञ्चाङ्ग के सहारे हम सभी मांगलिक कार्यों का निर्वहन करते हैं उस ऐतिहासिक पञ्चाङ्ग के प्रवर्तक भी डॉ. शर्मा ही थे। उनको कई भाषाओं पर जबरदस्त पकड़ थी और दर्जनों पुस्तकें उन्होंने लिखी थी। इसी तरह संस्कृत विश्वविद्यालय के आधुनिक ध्रुवतारा रहे डॉ. चतुर्वेदी अपनी वाकपटुता को लेकर काफी चर्चित थे। व्याकरण के विद्वान डॉ चतुवेर्दी संस्कृत विश्वविद्यालय के सेठ रामनिरंजन दास मुरारका संस्कृत कालेज, पटना सिटी के प्रधानाचार्य थे और यहीं के देवी मंदिर के अध्यक्ष भी। कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा, प्रतिकुलपति प्रो. चन्द्रेश्वर प्रसाद सिंह, प्रो. श्रीपति त्रिपाठी, प्रो. शिवाकांत झा, प्रो. सुरेश्वर झा, डॉ. शैलेन्द्र मोहन झा, नरोत्तम मिश्रा, देवकी लाल कर्ण समेत सभी कर्मियों ने दिवंगत आत्माओं के प्रति सादर श्रद्धांजलि अर्पित की है।

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