परेशान-परेशान ‘वोटर’ नौजवान -2 : एम.एस.एम.ई : लुटिया डूबी कि उबरी?
‘जीएसटी’ लागू होने की घोषणा होते-होते रिजर्व बैंक ने एक दिलचस्प घोषणा की कि नोटबंदी के दौरान बैंकों में वापस आए 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट की गिनती और असली की पहचान करने के बाद टेंडर प्रक्रिया के द्वारा उनका निपटान किया जाएगा। उन्हें नष्ट कर उसकी रद्दी से ईंटें बनाई जाएंगी।एक आरटीआई के जवाब में रिजर्व बैंक ने यह रोजगारमूलक सूचना देकर कई शिक्षित बेरोजगार प्रतिभाओं को उत्प्रेरित किया कि पुराने नोट को देश भर के आरबीआई कार्यालयों में लगे बेकार नोट को नष्ट करने और उनकी ईंट बनाने वाले सिस्टम के जरिये इन्हें फाड़ कर ईंटें बनाने की प्रक्रिया चल रही है। आरबीआई ऐसे प्रसंस्कृत नोट को रिसाइकिल नहीं करता। लेकिन करेंसी सत्यापन मशीन से इनके असली होने की जांच की गई। पुरानी करेंसी की जांच के लिए आरबीआई की विभिन्न शाखाओं में कम से कम 59 मशीनों को लगाया गया है।
कुछ ही दिन बाद यह खबर उड़ी कि रद्दी नोट से बनी ईटों का इस्तेमाल आग सुलगाने के लिए किया जा रहा है! क्योंकि 2017 में लागू की गई ‘जीएसटी’ का असर सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) सेक्टर में दिखने लगा। और आरबीआई को ना चाहते हुए यह मानना पड़ा कि नवंबर 2016 में केंद्र सरकार द्वारा की गई नोटबंदी के चलते सबसे ज्यादा बेहाल सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) सेक्टर हुआ। और नोटबंदी के बाद लागू की गयी जीएसटी पूरे सेक्टर पर कोढ़ में खाज साबित हुई।
लगे हाथ आरबीआई की मिनी स्ट्रीट मेमो रिपोर्ट आयी कि सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) को दिए जाने वाले कर्ज में गिरावट आई। हालांकि एमएसएमई क्षेत्र को बैंकों और एनबीएफसी द्वारा दिये गये कर्ज सहित सूक्ष्म ऋण में हाल की तिमाहियों में तेजी आई। लघु उद्योगों को वितरित कर्ज2017 के निचले स्तर से सुधर कर 2015 मध्य के बढ़े स्तर पर पहुंचा।
फिर तो जीएसटी के असर के नाम पर ये ख़बरें मीडिया में स्थान पाने लगीं कि हीरे व सोने-चांदी से आभूषण तैयार करने वाले ज्वैलरी सेक्टर में कर्मचारियों को वेतन देने के लाले पड़ गए। जीएसटी के लागू होने से व्यापार काफी मंदा हो गया, क्योंकि इस सेक्टर में बिना बिल के ही कारोबार होता है। जीएसटी के चलते अनुपालन लागत और अन्य परिचालन लागत में वृद्धि हुई क्योंकि 60 प्रतिशत से अधिक छोटे उद्योग कर दायरे में आये। हालांकि, इनमें से 60 प्रतिशत नई कर प्रणाली में समायोजित होने के लिये तैयार नहीं थे।
सिडबी ने अपने अध्ययन में पाया कि नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद अधिकतर एमएसएमई के कर्ज में गिरावट आई, लेकिन मार्च 2018 से इसमें सुधार दिखाई दे रहा है। इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन के अनुमान के मुताबिक, एमएसएमई में अधिक से अधिक पूंजी की संभावित मांग करीब 370 अरब डॉलर है जबकि वर्तमान में 139 अरब डॉलर की आपूर्ति की जा रही है। दोनों के बीच 230 अरब डॉलर का अंतर है, जो कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 11 प्रतिशत है। ऋण वृद्धि में महत्वपूर्ण गिरावट नवंबर 2016 से फरवरी 2017 तक की अवधि में आयी। इससे लगता है कि इसकी वजह नोटबंदी रही। हालांकि, कर्ज में फरवरी 2017 के बाद सुधार देखा गया और जनवरी-मई 2018 में यह औसतन 8.5 प्रतिशत पर पहुंच गया।
अब उक्त सूचनात्मक तथ्यों को क्या माना जाए? नेगेटिव आंकड़ों के पोजिटिव ट्रेंड या पोजीटिव डेवलपमेंट के निगेटिव असर? हमारे देश की युवा प्रतिभा इस तरह के सवालों को समझने की परेशानी से गुजर ही रही थी कि नवम्बर में कृषि मंत्रालय में एक हादसा हुआ – नोटबंदी का कृषि पर असर से जुडी एक रिपोर्ट एक सप्ताह के अंदर उलट से पलट हो गयी! यह देख-सुन कर नौजवानों की पाँव पर खडी परेशानी भी शीर्षासन करने लगी!