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सर्वे में सनसनीखेज खुलासा, गरीब बच्चों के लिए यातना गृह बन गए हैं स्कूल

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सर्वे में सनसनीखेज खुलासा, गरीब बच्चों के लिए यातना गृह बन गए हैं स्कूल

सिटी पोस्ट लाइव :  भारत के स्कूलों में बच्चों को शारीरिक दंड देना गैर-कानूनी और अपराध है. यानी शिक्षक स्कूलों में  छात्रों की पीटाई नही कर सकते. लेकिन एक स्वयंसेवी संस्था के सर्वे से ये खुलासा हुआ है कि गरीब तबके के बच्चों को स्कूलों में खुल्लेयम शारीरिक दंड दिया जा रहा है.आये दिन स्कूलों में शिक्षकों द्वारा बच्चों की बर्बर पिटाई के मामले सामने आते रहते हैं. एक एनजीओ की स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ है कि देश में निम्न स्तर के परिवेश से आनेवाले 80 प्रतिशत बच्चे स्कूलों में हिंसा का शिकार होते हैं.

एनजीओ द्वारा  गुरुग्राम में रहनेवाले उन लोगों के बीच किये गए सर्वे के अनुसार दूसरे राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश से यहां रोजगार की तलाश में आनेवाले गरीब लोगों के बच्चों के साथ स्कूलों में हिंसक व्यवहार शिक्षक करते हैं.दूसरे राज्यों से आए करीब 521 निम्न वर्गीय परिवारों के बच्चों और 100 अभिभावकों के बीच किये गए सर्वे के अनुसार  स्कूलों में पिटाई खानेवाले बच्चों में से 53 परसेंट बच्चे अपने अभिभावकों को इसके बारे में नही बताते कि स्कूल में उनकी पिटाई होती है.

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले हाशिए पर खड़े बच्चों के अभिभावक की गरीबी, स्कूलों में कम वेतन पर काम कर रहे टीचर, दूसरे राज्यों से आए प्रवासियों को लेकर बनी एक मानसिकता इन बच्चों की पीटाई का कारण बनती है. वही इसके साथ ही स्कूलों में बिना हिंसा के अनुशासन बनाए रखने को लेकर ट्रेनिंग की कमी भी प्रत्यक्ष रूप से बच्चों की पिटाई का कारण बनती है.सर्वे के दौरान यह बात सामने आई है कि 80 परसेंट में से 43 परसेंट बच्चों की स्कूलों में नियमित रूप से पिटाई होती है. बच्चों की माने तो टीचर उन्हें हफ्ते में कम से कम 1 से 3 दिन जरूर पीटते हैं. वहीं कुछ स्कूलों में तो रोजाना पिटने वाले बच्चों की संख्या 88 पर्सेंट तक पहुंच गई है. रिपोर्ट की माने तो बच्चों की पिटाई स्कूलों के अलावे घर पर भी होती है. 75 परसेंट बच्चों ने यह बताया हे कि उनकी घर पर पिटाई होती है. वहीं 71 प्रतिशत अभिभावको भी मानते हैं कि वे अपने बच्चे की पिटाई करते हैं.

जून 1992 में भारत ने यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑफ राइट्स ऑफ चाइल्ड 1989 को अपना लिया था. इसमें स्कूलों में शारीरिक दंड को गैरकानूनी बनाया गया था. भारत के राइट टू एजुकेशन एक्ट—2009 के तहत स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा गया है. लेकिन भारत में अब भी स्कूलों में बच्चों की पिटाई आम बात है. स्वयंसेवी संस्थाओं का मानना है कि बच्चों को पिटने से उनके व्यवहार और व्यक्तित्व पर बहुत प्रतिकूल पभाव पड़ता है.  स्कूल में पिटाई के कारण उनके मन में स्कूल को लेकर भय पैदा हो जाता है. इस भय की वजह से वो स्कूल जाना छोड़ देते हैं. जो बच्चे मार खाते हुए स्कूल जाते हैं, वो स्वभाव से ही हिंसक हो जाते हैं.

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