कोसी में अपराधियों की चल रही समानांतर सरकार, मजबूर पुलिस-प्रशासन के छूट रहे पसीने
सिटी पोस्ट लाइव, समाचार विश्लेषण : यूं तो कोसी प्रमंडल के तीनों जिले सहरसा, मधेपुरा और सुपौल पूरी तरह से अपराधियों की गिरफ्त में हैं लेकिन कोसी प्रमंडलीय मुख्यालय सहरसा जिला खासकर अपराधियों के निशाने पर है। बीते एक पखवाड़े के भीतर सहरसा जिले में 6 हत्याएं हुई हैं। लूट, राहजनी, छिनतई और चोरी की घटनाएं तो रोजमर्रा की बात बनकर रह गयी है। बीते तीन महीने के आंकड़े पर गौर करें, तो करीब 50 हजार लीटर अंग्रेजी शराब जिले के विभिन्य हिस्सों से बरामद किए गए हैं।दो दर्जन से ज्यादा छोटे शराब कारोबारियों की गिरफ्तारी भी हुई है। इस जिले में भू माफिया और हथियार तस्कर की सक्रियता भी काफी व्यापक पैमाने पर है।
नाबालिग बच्चों के हाथ में सेवन-सिक्स, नाईन एम.एम, थर्टी, बरेटा, देशी कट्टा जैसे खतरनाक हथियार रहते हैं। अपराध की प्रवृति अब शान और बड़ी पहचान का जरिया समझा जाने लगा है। वर्चस्व और ताकत का इजहार किशोर वय के बच्चे गुटबंदी के साथ कर रहे हैं। सम्पन्न और पढ़े-लिखे परिवार के बच्चे बेपटरी हो रहे हैं। पुलिस अधिकारियों के पास बड़े शराब माफिया, भू माफिया और हथियार के बड़े तस्कर अपनी पहचान छुपाकर प्रभावशाली बनकर बैठ रहते हैं। पुलिस की कार्र वाई और तौर-तरीके पर इनकी सीधी नजर रहती है। अब आप खुद सोचिए कि अपराध के जनक अगर अधिकारियों की सोहबत में रहेंगे, तो फिर किस दम से अपराध पर नकेल कसा जा सकेगा।
सहरसा जिला मुख्यालय में पुलिस की पेट्रोलिंग बिना किसी रणनीति की होती है। रही कोसी कछार और दियारे की बात, तो वहां पर पुलिस भय से गश्ती करती ही नहीं है। सहरसा एसपी राकेश कुमार ने अपराध पर नकेल कसने और लगाम लगाने के लिए क्विक फोर्स और पैंथर टीम का गठन किया है। पैंथर की नई टीम बाईक से गश्ती करती है। आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि इस नई पैंथर टीम को सहरसा जिला मुख्यालय के किसी चौक और मुहल्ले तक के नाम की जानकारी नहीं है। कौन सी जगह अपराधियों के लिए मुफीद है, इसकी भी कोई जानकारी नहीं है। सेंसेटिव इलाके कौन-कौन से हैं, इसकी जानकारी भी किसी को नहीं है। यहाँ पर बड़े और मझौले अधिकारियों का दायित्व बनता था कि नई पैंथर टीम के सदस्यों को पहले सारी जानकारियों से लैस किया जाता, फिर उन्हें ड्यूटी बजाने के लिए मैदान में उतारा जाता।
सहरसा कोसी प्रमंडल का मुख्यालय है ।यहाँ कोसी रेंज के डीआईजी बैठते हैं और आयुक्त बैठते हैं ।अभी कोसी रेंज के डीआईजी सुरेश प्रसाद चौधरी हैं ।जब सहरसा में कोई बड़ी घटना घटती है,तो हर बड़ा अधिकारी अपने से छोटे अधिकारियों को गाली देते हैं,या फिर किसी अन्य तरीके से अपना गुस्सा निकालते हैं ।सहरसा में अधिकारियों के बीच तारतम्य का अभाव है ।कर्तव्य पर वसूली तंत्र हावी है ।पुलिस के अधिकारी सेवा की जगह सिर्फ नौकरी कर रहे हैं और मेवा खा रहे हैं ।किसी अधिकारी को,किसी अधिकारी पर भरोसा और विश्वास ही नहीं है ।
इसी सप्ताह दो भू माफियाओं कैलू यादव और शम्भू पासवान की हत्या हुई है। लेकिन पुलिस भू माफियाओं को चिन्हित कर उनपर कार्रवाई करने से परहेज करती है। चूंकि पुलिस अधिकारियों को भू माफिया बतौर नजराना मोटी रकम देते हैं। ऐसे में कोई कार्रवाई की परिकल्पना भी मजाक है। हथियार तस्करों की तरफ सहरसा पुलिस का कोई ध्यान ही नहीं है। सहरसा में हथियार मुंगेर, बिहारशरीफ और कानपुर से लाये जाते हैं। पुलिस का खुफियातंत्र और सूचनातंत्र बेहद कमजोर है। पुलिस पर आमलोगों को कोई भरोसा नहीं है,इसलिए अगर उनके पास कोई जानकारी होती भी है,तो वे पुलिस अधिकारी से उस जानकारी को साझा नहीं करते हैं। भू माफिया, शराब माफिया और हथियार तस्करों की वजह से सहरसा में अपराध सर चढ़कर बोल रहा है।
अपराधियों की बल्ले-बल्ले है। बेचारी पुलिस बस कांड अंकित कर मोटी आपराधिक फाइलों को ढ़ोने में हांफ रही है। कांडों के उद्द्भेदन की जगह कांडों का किसी तरह से निष्पादन हो जाये और चार्जसीट कोर्ट में जमा हो जाये, बस यही कोशिश एक नम्बर पर है। आम जनता बेहाल और पूरी तरह से असुरक्षित है। हम तो ताल-ठोंककर कहते हैं कि सहरसा जिले के लोग सहरसा पुलिस के दम से नहीं बल्कि अपराधियों की रहमो-करम पर टिके हैं। राज्य मुख्यालय में बैठे बड़े पुलिस अधिकारियों को सहरसा पर भी नजरें ईनायत करने की जरूरत है।
बरामद शराब को लेकर सरकार को एक सलाह
पुलिस और उत्पाद विभाग द्वारा बरामद शराब को जेसीबी के द्वारा नष्ट कर दिया जाता है। नष्ट किये जा रही शराब की कीमत करोड़ों में है। हम सरकार से यह कहना चाहते हैं कि देश के दूसरे राज्यों में शराबबंदी नहीं है। क्या सरकार ऐसा कोई नियम नहीं बना सकती है जिससे बरामद शराब को नष्ट करने की जगह उसे दूसरे राज्यों के हाथों बेच दिया जाय। इससे बिहार सरकार को भरपूर राजस्व की प्राप्ति भी होगी। हम बस इतना चाहते हैं कि बिहार सरकार के खजाने में भरपूर धन रहे। शराब नष्ट कर के अपार धन नष्ट हो रहे हैं। जब एक ही देश में कई कानून हैं, तो सरकार को हमारे मशवरे पर जरूर ध्यान देना चाहिए।
पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप से सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह का समाचार विश्लेषण