21 नवंबर से शुरू हो रहा सोनपुर मेला, सैलानियों के लिए होगी कॉटेज की व्यवस्था
सिटी पोस्ट लाइव : एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला सोनपुर मेला सज धजकर तैयार है. 21 नवंबर से यह मेला शुरू होने जा रहा है. यह मेला 25 दिसंबर तक चलेगा. मेला में इस बार 25 नवंबर को विशेष राजकीय कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे. कला संस्कृति विभाग की तरफ से आयोजित होने वाले इसे मेला से जुड़ी सभी तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं.यह मेला हर साल सोनपुर में लगता है. हाजीपुर शहर से 3 किलोमीटर सोनपुर में यह मेला हर साल कार्तिक पूर्णिमा (नवंबर-दिसंबर) में लगता है. यह मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है. यह मेला भले ही पशु मेला के नाम से विख्यात है. लेकिन इस मेले की खासियत यह है कि यहां सूई से लेकर हाथी तक की खरीदारी आप कर सकते हैं.
समय के साथ इस मेले के स्वरूप में बहुत बदलाव आया है. अब यहाँ पहले जैसे पशु बिक्री के लिए तो नहीं आते लेकिन फिर भी हर साल इसका आयोजन होता है.5-6 किलोमीटर के वृहद क्षेत्रफल में फैला यह मेला हरिहरक्षेत्र मेला और छत्तर मेला मेला के नाम से भी जाना जाता है. हर साल कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के साथ यह मेला शुरू हो जाता है और एक महीने तक चलता है. यहां मेले से जुड़े तमाम आयोजन होते हैं. इस मेले में कभी अफगान, इरान, इराक जैसे देशों के लोग पशुओं की खरीदारी करने आया करते थे. कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने भी इसी मेले से बैल, घोड़े, हाथी और हथियारों की खरीदारी की थी.
1857 की लड़ाई के लिए बाबू वीर कुंवर सिंह ने भी यहीं से अरबी घोड़े, हाथी और हथियारों का संग्रह किया था. अब भी यह मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है. देश-विदेश के लोग अब भी इसके आकर्षण से बच नहीं पाते हैं और यहां खिंचे चले आते हैं.पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु के दो भक्त जय और विजय शापित होकर हाथी (गज) और मगरमच्छ (ग्राह) के रूप में धरती पर उत्पन्न हुए थे. एक दिन कोनहारा के तट पर जब गज पानी पीने आया था तो ग्राह ने उसे पकड़ लिया था. फिर गज ग्राह से छुटकारा पाने के लिए कई सालों तक लड़ता रहा. तब गज ने बड़े ही मार्मिक भाव से अपने हरि यानी विष्णु को याद किया.तब कार्तिक पूर्णिमा के दिन विष्णु भगवान ने उपस्थित होकर सुदर्शन चक्र चलाकर उसे ग्राह से मुक्त किया और गज की जान बचाई. इस मौके पर सारे देवताओं ने यहां उपस्थित होकर जयजयकार की थी. लेकिन आज तक यह साफ नहीं हो पाया कि गज और ग्राह में कौन विजयी हुआ और कौन हारा.
इस स्थान के बारे में कई धर्मशास्त्रों में चर्चा की गई है. हिंदू धर्म के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां स्नान करने से सौ गोदान का फल प्राप्त होता है. कहा तो यह भी जाता है कि कभी भगवान राम भी यहां पधारे थे और बाबा हरिहरनाथ की पूजा-अर्चना की थी.इसी तरह सिख ग्रंथों में यह जिक्र है कि गुरु नानक यहां आए थे. बौद्ध धर्म के अनुसार अंतिम समय में भगवान बुद्ध इसी रास्ते कुशीनगर गए थे. जहां उनका महापरिनिर्वाण हुआ था. ऐसे और भी न जाने कितने इतिहास यह अपने आप में समेटे हुए है.
सोनपुर की इस धरती पर हरिहरनाथ मंदिर दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है जहां हरि (विष्णु) और हर (शिव) की एकीकृत मूर्ति है. इसके मंदिर के बारे में कहा जाता है कि कभी ब्रह्मा ने इसकी स्थापना की थी. इसके साथ ही संगम किनारे स्थित दक्षिणेश्वर काली की मूर्ति में शुंग काल का स्तंभ है. कुछ मूर्तियां तो गुप्त और पाल काल की भी हैं.
विभाग के स्तर पर मेला की तैयारियों को लेकर अंतिम दौर की बैठकें की जा रही हैं. विभागीय सचिव रवि परमार ने बताया कि इस बार मेला के मूल स्वरूप को बनाये रखने पर खासतौर से जोर दिया जायेगा. तमाम आधुनिक और विभिन्न आयामों के रंगों को समाहित करने के साथ ही पशु मेला को खासतौर से तवज्जो दिया जायेगा.जिले के डीएम के अनुसार पशु मेला में अधिक से अधिक संख्या में पशुओं के रहने समेत तमाम इंतजाम किये गए हैं. देशी और विदेशी सैलानियों के ठहरने के लिए बनाये जाने वाले कॉटेज में भी सभी सुविधाओं का इंतजाम रहेगा. यहां आने वाले तमाम लोगों की सुविधा का खासतौर से ध्यान रखा जायेगा. साथ ही यहां होने वाले तमाम आयोजनों के लिए भी इंतजाम दुरुस्त किये गये हैं.