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“नीम-हाकिम खतरे”, बने राजनीतिक दलों की जान, उठने लगी है उन्हें मान्यता देने की मांग

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“नीम-हाकिम खतरे”, अब बने राजनीतिक दलों की जान, उठने लगी है उन्हें मान्यता देने की मांग 

सिटी पोस्ट लाइव :एनएचएफ (NHF) की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर 10,189 लोगों के लिए एक सरकारी एलोपैथिक डॉक्टर है. हर 2,046 लोगों के लिए एक सरकारी अस्पताल का बिस्तर और हर 90,343 लोगों के लिए एक सरकारी अस्पताल है. ऐसे में देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से  नीम—हकिम के भरोसे है. देशभर के दूर—दराज के इलाको में आम लोगो के लिए जिनके पास चिकित्सा सुविधाएं नहीं पहुंच सकती, उनके लिए ये नीम-हकीम ही भगवान हैं.बिहार के ग्रामीण ईलाकों में जहाँ डॉक्टर-अस्पताल नदारत हैं, वहां  आज भी लोगों के एकमात्र सहारा ये नीम-हकीम ही है. लोग उन्हें डॉक्टर की तरह ही धरती के भगवन के रूप में देखते हैं.ग्रामीण ईलाकों में जनता के बीच इनकी पैठ और जनसँख्या को देखते हुए राजनीतिक दलों का ध्यान भी अब इनकी तरफ गया है.

यानि कलतक जो नीम-हकीम सरकार के निशाने पर रहते थे.उनके धंधे को गैर-कानूनी माना जाता था. लेकिन अब बिहार में ये नीम—हकीम राजनीतिक दलों के लिए काफी अहम् नजर आने लगे हैं. उनको लेकर राजनीति शुरू हो गई है. पक्ष और विपक्ष दोनों ही चिकित्सक के इस कानूनीरूप से इस अमान्य वर्ग को मान्यता दिलाने की बात करने लगा है. नीम—हकीम सरकार से एक  मापदंड तय कर उनके मेडिकल प्रैक्टिस को  मान्यता देने की मांग कर चुके हैं.

कानून की नजर में भले यह वर्ग दोषी हो लेकिन गावं देहात में इन्हीं के सहारे लोगों की जान बचती है. लोगों के बीच इनको लेकर बेहद सहानुभूति है. और इसी सहानुभूति का फायदा उठाने के लिए इनके लिए एक एक मानदंड तय करने और उनके प्रैक्टिस को अधिकारिक मंजूरी देने की मांग अब सभी राजनीतिक दल करने लगे हैं. जनता दल (यूनाइटेड) के महासचिव आरसीपी सिंह ने  पटना में हुए जेडीयू चिकित्सक सम्मेलन में कहा था कि वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नीम-हकीमों की मानदंड और प्रैक्टिस को औपचारिक मान्यता के मांग को देखने का आग्रह करेंगे.

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और कृषि मंत्री प्रेम कुमार भी  ग्रामीण इलाको में काम आनेवाले चिकित्सकों को मान्यता देने को उचित ठहरा रहे हैं. उनका कहना है  कि इन चिकित्सको कि संख्या बहुत बड़ी है और वे उन इलाको में चिकित्सा सुविधाओं को देते हैं जहां अभी तक आधुनिक चिकित्सा सुविधाएं नहीं पहंची हैं. प्रेम कुमार का कहना है कि ये लोग सामाजिक हित में काम करते हैं. सरकार को एक बड़े समाजिक हित को ध्यान में रखते हुए उन्हें मान्यता देना होगा.

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