महाभियोग प्रस्ताव पर कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह के भी साइन नहीं हैं. इसके अलावा कांग्रेस के जिन 51 सदस्यों ने इस प्रस्ताव पर साइन किए हैं उनमें से 6 पहले ही रिटायर हो चुके हैं. सपा की सांसद जया बच्चन, रेवती रमण और बेनी प्रसाद वर्मा ने भी इस प्रस्ताव हस्ताक्षर नहीं किया है.गौरतलब है कि एसटी /एसी एक्ट के प्रावधानों में बदलाव को लेकर देश भर में बड़ा बवाल हो चूका है .दलितों के द्वारा आहूत भारत बंद की अभूतपूर्व सफलता से सभी राजनीतिक दलों के होश उड़े हुए हैं .सभी दल दलितों को अपने पक्ष में करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ अनाप-शनाप ब्यान दे रही हैं और इसमे सत्ताधारी दल के नेता और मंत्री भी पीछे नहीं हैं.
महाभियोग की प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल होती है. भारत में आज तक किसी जज को महाभियोग लाकर हटाया नहीं गया है. क्योंकि ये प्रकिया इतनी जटिल है कि कभी कार्यवाही पूरी ही नहीं हो सकी.महाभियोग प्रस्ताव की प्रकिया को बेहद जटिल माना जाता है. लोकसभा में इस प्रस्ताव को लाने के लिए 100 सांसदों के हस्ताक्षर चाहिए. वहीं, राज्यसभा में इसे लाने के लिए 50 सांसदों के हस्ताक्षर चाहिए होते हैं. अगर ये सदन में पेश होता है तो सदन के अध्यक्ष इसपर फैसला लेंगे. वो चाहें तो इसे स्वीकार कर लें या इसे खारिज भी कर सकते हैं.अगर अध्यक्ष महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं तो तीन सदस्यों की एक कमेटी आरोपों की जांच करेगी. इस कमेटी में सुप्रीम कोर्ट के एक जज, हाई कोर्ट के एक चीफ जस्टिस और कोई एक अन्य व्यक्ति को शामिल किया जाता है.
अगर जांच कमेटी को आरोप सही लगते हैं तो ही महाभियोग प्रस्ताव पर संसद में बहस होगी. इसके बाद संसद के दोनों सदनों में इस प्रस्ताव का दो तिहाई बहुमत से पारित होना जरूरी है. अगर दोनों सदन में ये प्रस्ताव पारित हो जाता है तो इसे मंज़ूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा. बता दें, किसी भी जज को हटाने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति के पास है.