अटल जितने थे पक्ष के उतने विपक्ष के, सबके प्रिय बने रहने की कला के महारथी
सिटी पोस्ट लाइव : इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा जाए तो भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसे नेता थे जो न सिर्फ पक्ष के बल्कि विपक्ष के लिए भी उतने ही खास थे. क्योंकि अटल बिहारी एकलौते ऐसे नेता थे जो विपक्ष में रहते हुए भी सत्ताधारी सरकार के लिए मुसीबत नहीं सहूलियत पैदा करते थे. एक बार जब जेनेवा में मानवाधिकार सम्मलेन में भारत को कश्मीर मुद्दे पर पडोसी देश पाकिस्तान ने घेरने का फैसला किया तो, उस वक्त के प्रधानमंत्री नरसिंह राव विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को वहां भेजा, इस बात से पडोसी देश हैरान रह गए कि कोई विपक्ष का नेता क्यों भारत सरकार से पूछे गए सवालों का जबाव देगा.
यही नहीं कई ऐसे किस्से हैं जिसने अटल को भाजपा और आरएसएस का नेता नहीं देश का नेता बनाया. एक बार जब ममता बनर्जी अटल बिहारी वाजपेयी से रूठ गयीं तो उन्हें मनाने के लिए अटल बिहारी खुद बंगाल चले गए. ममता के घर पहुँच कर उनकी माता जी का आशीर्वाद लिया और ममता से पूछा अब भी कोई गिला सिकवा है? जाहिर है 2004 में भारत के पीएम पद से हटने के बाद 14 साल बीत चुके हैं लेकिन शायद इन सालों में कभी ऐसा हुआ हो जब विपक्षी दलों ने अटल की कटु आलोचना की हो. भारतीय राजनीति का अजातशत्रु कहलाने का गौरव अगर किसी को हासिल है तो वो अटल बिहारी वाजपेयी को ही हैं.
आखिर ऐसा क्यों है कि जिन इंदिरा गांधी को अटल बिहारी ने कभी दुर्गा का अवतार नहीं कहा लेकिन लोग मान बैठे कि उन्होंने ऐसा कहा होगा. इसका कारण जरूर उनका व्यक्तित्व था. जनसंघ जैसी हिंदुत्ववाद को समर्थन देने वाली राजनीतिक पार्टी का नेता आखिर इंदिरा को दुर्गा कैसे कह सकता है? लेकिन ये खबर उड़ी…सिर्फ उड़ी नहीं दशकों तक भारतीय राजनीति में इस विश्वास के साथ टहलती रही कि ऐसा तो जरूर हुआ होगा. इसका कारण ये भी था कि लोगों के बीच एक तरह का भरोसा था कि अटल ऐसा भी कर सकते हैं.
ये महज एक उदाहरण है. अपनी पूरी राजनीति के दौरान स्थापित धारणाओं को तोड़ने वाले वाजपेयी समाज में कभी इस बात के लिए किनारे नहीं हुए. नेहरू युग से राजनीति की शुरुआत करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्षी नेता के तौर सोनिया गांधी को भी देखा. करीब 5 दशक के राजनीतिक जीवन में न जाने कितने उतार-चढ़ाव देखने वाले वाजपेयी सबके प्रिय बने रहने की कला के महारथी थे.
अटल बिहारी का पदार्पण भारतीय संसद में 1957 के आम चुनाव में हुआ था. अपनी बेहतरीन भाषणशैली के लिए विख्यात अटल बिहारी को बेहद कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में कभी नहीं जाना गया. लेकिन उनकी भाषण शैली इतनी दमदार थी कि वो उसके दम पर वो विरोधी लोगों के मुंह से भी वाह निकलवा सकने में माहिर थे. इतना ही नहीं आज के समय में लोकसभा हो या राज्यसभा, जब भी कोई पक्ष का या विपक्ष का नेता बोलना शुरू करता है तो, शोर-शराबे के कारण सदन स्थगित कर देना पड़ता है.
लेकिन जब अटल बिहारी वाजपेयी विपक्ष में रहते हुए, भी सत्ता के नीतियों पर सवाल खड़े करते थे तब भी तालियां बजती थी. ऐसी छवि के धनि स्टेट्समैन कहलाने वाले वाजपेयी हमारे बीच नहीं रहें, लेकिन उनके आदर्श उनकी नीतियों ने एक इतिहास बनाया है. जिसपर आज के नेता राजनीति कर रहे हैं.