सिटी पोस्ट लाइव : पटना के इंदिरा गाँधी आयुर्विज्ञान केंद्र हॉस्पिटल पर किसी कंपनी विशेष के पक्ष में टेंडर मैनेज करने के लिए सिक्यूरिटी के टेंडर में बड़ा हेरफेर किये जाने का आरोप लगा है. आरोप है कि अस्पताल प्रबंधन ने एक बड़ी मल्टीनॅशनल कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए कानून को ताक पर रख टेंडर में ऐसी शर्तें डाल दिया, जिससे राज्य स्तर की सभी निजी सुरक्षा कम्पनियाँ टेंडर के लिए अयोग्य हो गईं. IGIMS हॉस्पिटल के सिक्यूरिटी का ठेके के टेंडर को लेकर आरोप ये लगा है कि टेंडर को मैनेज कर एक बड़ी कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए अस्पताल प्रबंधन ने अपने सुरक्षा के सालाना बजट को ढाई करोड़ रुपये से बढाकर दस करोड़ रुपये कर दिया.सवाल ये उठ रहा है कि आखिर इस अस्पताल को अपने सुरक्षा बजट पर ढाई करोड़ रुपये की जगह दस करोड़ रुपये खर्च करने का क्या औचित्य है ?.
गौरतलब है कि हॉस्पिटल और इसके रेसिडेंशियल इलाकों की सुरक्षा का जिम्मा निजी सिक्योरिटी एजेंसियों को दिया जाता है.इसके लिए टेंडर की प्रक्रिया है. अबतक हॉस्पिटल के इस काम के लिए जो टेंडर निकालता था, उसके अनुसार टेंडर भरने वाली सिक्योरिटी कंपनी को तीन लाख रुपए बतौर ईएमडी के रूप में जमा करने का प्रावधान था. लेकिन इसबार इस कॉन्ट्रैक्ट को किसी विशेष कम्पनी को देने के लिए अस्पताल प्रबंधन ने टेंडर ऐसा बदलाव किया कि सभी स्थानीय कम्पनियाँ अयोग्य साबित हो गईं. अस्पताल प्रबंधन ने बतौर ईएमडी के रूप में जमा की जानेवाली राशि को तीन लाख से बढाकर 55 लाख कर दी. और टेंडर में भाग लेने के लिए पचपन करोड़ रुपये का टर्न ओवर की शर्त डाल सभी स्थानीय सुरक्षा कंपनियों को टेंडर की प्रक्रिया में भाग लेने से रोक दिया.
सबसे खास बात ये है कि अस्पताल प्रबंधन को संस्थान की सुरक्षा पर केवल ढ़ाई करोड़ रुपए ही खर्च किए जाने थे. लेकिन अब नयी कंपनी को आस्पताल प्रबंधन दस करोड़ रुपये का भुगतान करेगा. आरोप लग रहा है कि किसी कंपनी विशेष को फायदा पहुँचाने के लिए ढाई करोड़ के सुरक्षा बजट को बढाकर सीधे दस करोड़ रुपया कर दिया गया.. सिक्योरिटी सर्विस प्रोवाइड करने वाली कंपनी के लिए पहले वार्षिक टर्न ओवर 10 करोड़ रुपए तय था जिसे बढाकर 55 करोड़ रुपए कर दिया गया. जाहिर है टेंडर में इतना बड़ा फेरबदल को मनचाही कंपनी को फायदा पहुँचाने के लिए किया गया .
सूत्रों के अनुसार यह टेंडर अब देश की जानीमानी सुरक्षा कंपनी SIS कंपनी को मिल गया है. सेंट्रल एसोसिएशन ऑफ़ प्राइवेट सिक्योरिटी इंडस्ट्री का आरोप है कि छोटी सिक्योरिटी कंपनियों के रहने से आर्थिक घोटाला करने में IGIMS मैनेजमेंट को सहूलियत नहीं मिल पा रही थी .इसलिए SIS जैसी कंपनी को लाने के लिए टेंडर में इतना बड़ा बदलाव किया गया. अब सवाल ये उठता है कि जिस अस्पताल में मरीजों को देने के लिए दवाइयां मुश्किल से मिलती हैं, उसकी सुरक्षा पर ढाई करोड़ रुपये की जगह दस करोड़ रुपये खर्च करने का क्या मतलब है?
सेंट्रल एसोसिएशन ऑफ़ प्राइवेट सिक्योरिटी इंडस्ट्री ने इस मामले की शिकायत स्वास्थ्य मंत्री से लेकर प्रधान सचिव तक से किया है. लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है. अब एसोसिएशन ने बिहार के चीफ सेक्रेटरी से पूरे मामले की जांच कराने की अपील की है.SIS तो एक बड़ी कंपनी है उसे टेंडर डालने और काम लेने का पूरा अधिकार है लेकिन अस्पताल प्रबंधन ने टेंडर में इस तरह का बदलाव क्यों कर दिया जिसके के कारण अधिकाँश सुरक्षा एजेंसियां इस टेंडर के लिए योग्य हो गईं ?
डिस्क्लेमर : यह रिपोर्ट पूरी तरह से सेंट्रल एसोसिएशन ऑफ़ प्राइवेट सिक्योरिटी इंडस्ट्री के आरोपों पर आधारित है. सिटी पोस्ट लाइव ने अपने स्तर से इसकी पड़ताल पूरी नहीं की है. सिटी पोस्ट लाइव इस मामले की पड़ताल कर और SIS का पक्ष जल्द ही आपके सामने लाएगा . तमाम कोशिश वावजूद SIS की प्रतिक्रिया अभीतक नहीं मिल पाई है. SIS की प्रतिक्रिया जैसे ही आयेगी, उसे हम अपने पाठकों के लिए जल्द प्रस्तुत करेगें .