बेशर्म शिक्षा व्यवस्था की बदरंग तस्वीर, ना चारदीवारी, ना पीने के लिए पानी की व्यवस्था

City Post Live - Desk

बेशर्म शिक्षा व्यवस्था की बदरंग तस्वीर, ना चारदीवारी, ना पीने के लिए पानी की व्यवस्था

सिटी पोस्ट लाइव, एक्सक्लूसिव : सहरसा जिला मुख्यालय के रिहायशी इलाके पूरब बाजार स्थित राजकीय कन्या उच्च विद्यालय अपनी बदहाली पर खून के आंसू रो रहा है। 740 बच्चियाँ अभी इस स्कूल में नामांकित हैं। इनकी पढ़ाई के लिए चदरे वाले दो कमरे हैं जो अगल-बगल की गंदगियों के बीच अपनी बदनसीबी की कहानी बयाँ कर रहा है। बरसात के मौसम में चदरे की छत से पानी टपकते हैं।खिड़की के सारे पल्ले टूटे पड़े हैं और बाहर की गंदगी से नाक फाड़ू बदबू आती रहती है। सबसे अहम और खास मुश्किल यह है कि यह पूरी तरह से वयस्क होती बच्चियों का स्कूल है। 1994 से यह स्कूल संचालित हो रहा है लेकिन इस स्कूल के लिए एक भी शौचालय नहीं है।अब आप खुद समझिये की इतने लंबे समय यानि दिनभर के लिए स्कूल आ रही बच्चियाँ किसतरह से अपने अनकहे दर्द को छुपाती हैं ।बेशर्मी और बेदर्दी की सारे हदें यहां गिरी हुई हैं। बच्चियों की सुरक्षा के लिए चाहरदीवारी तक नहीं है। हमने इस बाबत स्कूल की बच्चियों और प्रधानाध्यापक से बात करी। सभी ने तमाम बुनियादी सुविधाओं की कमी और अपनी पीड़ा को हमसे साझा किया। हद तो यह भी है कि इस विद्यालय में प्रचुर मात्रा में शिक्षक और शिक्षिकाएं हैं जो रोजाना स्कूल आकर अपनी उपस्थित भर, दर कराकर वेतन पा रहे हैं।ये भी सच है कि जब स्कूल में कमरे ही नहीं, तो इन शिक्षकों का इस्तेमाल कैसे और कहाँ होगा। अलग से खेल शिक्षक और संगीत शिक्षक भी इस स्कूल में तैनात हैं। हमारी समझ से राज्य और देश का खासकर बच्चियों का यह सबसे अभागा स्कूल होगा, जो अपने बदरंग सच से पूरे सिस्टम को ना केवल मुंह चिढ़ा रहा है बल्कि उसे सिद्दत से कटघरे में भी खड़े कर रहा है।

प्रधानाध्यापक सुभाषित झा कहते हैं कि वे 2006 से इस स्कूल में पदस्थापित हैं और इस स्कूल की कमियों को लेकर जिला प्रशासन, जिला शिक्षा विभाग से लेकर राज्य स्तर तक पत्राचार करते-करते अब ऊब चुके हैं। पत्राचार पर कोई कारवाई की सरगोशी तक अभीतक नहीं हुई है। हम अपनी इस खबर के माध्यम से मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री की कुम्भकर्णी नींद को तोड़ना चाहते हैं और इस स्कूल की तकदीर को बदलना चाहते हैं। आगे यह देखना बेहद लाजिमी होगा कि हमारे प्रयास का क्या और कैसा फलाफल मिलता है? आखिर में हम ताल ठोंककर कहते हैं कि इस स्कूल ने सरकार के एसी कमरे में बैठकर जमीनी हकीकत को नहीं देखने की आदत की मुकम्मिल तकसीद कर दी है।

सहरसा से पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की स्पेशल रिपोर्ट

Share This Article