सबसे बड़ा खुलासा : मनरेगा योजना में मची है भारी लूट, वसूली का विडियो सिटी पोस्ट के पास

City Post Live - Desk

सिटी पोस्ट लाइव : नीतीश कुमार बिहार में पिछले तेरह साल से सत्ता पर काबिज हैं. लेकिन आजतक उनके दामन पर कोई दाग नहीं लगा है. इतना हनक के साथ 13 साल तक राज करनेवाले मुख्यमंत्री का दामन का पाक साफ़ होना एक बहुत  बड़ी बात है. इतना ही नहीं, उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक विशेष अभियान भी चलाया है . अबतक एक दर्जन से बड़े नौकरशाह भ्रष्टाचार कानून की भेंट चढ़ चुके हैं. कईयों की सम्पति जप्त हो चुकी है . लेकिन इतना सब कुछ होने के वावजूद भी भ्रष्टाचार पर लगाम क्यों नहीं लग पा रहा है ये बड़ा सवाल है ? क्यों एक ईमानदार मुख्यमंत्री के नौकरशाही भ्रष्टाचार करने से बाज नहीं आ रही है. सिटी पोस्ट के हाथ एक तस्वीर लगी है, जिसमे मुजफ्फरपुर जिले कटरा प्रखंड के धनौर पंचायत का पंचायत रोजगार सेवक मृतुन्जय कुमार  मनरेगा योजना में किये जाने वाले घपले घोटाले के एवज में  मनरेगा के संवेदक और उप-मुखिया से खुल्लेयाम वसूली करता दिख रहा है . यह वसूली वह अपने लिए नहीं बल्कि ऊपर के अधिकारियों के लिए कर रहा है. आखिर उप- मुखिया और मनरेगा योजना का संवेदक इस रोजगार सेवक को किस बात के लिए रिश्वत दे रहे हैं ? ये जानने के लिए आपको इस तस्वीर को ध्यान से देखना होगा . इस तस्वीर को ध्यान से देखेगें तो खेल समझ में आ जाएगा.

दरअसल, मनरेगा योजना के तहत गरीब मजदूरों को को 100 दिन का काम देना है. ये काम उन्हें नहीं देकर मुखिया और संवेदक मजदूरों को 500 से 1000 देकर उनके जॉब कार्ड के आधार पर 100 दिन की  फर्जी हाजिरी बनाकर 100 दिन की मजदूरी  सरकारी खजाने से निकाल लेते हैं.ऐसे ही हर महीने हजारों मजदूरों को  वगैर काम किये उन्हें जॉब कार्ड के बदले पांच सौ से एक हजार  रुपये देकर उनके एक महीने की मजदूरी फर्जी हाजिरी बनाकर  निकाल लिया जता है. मजदूरों को लगता है कि उन्हें तो बिना काम किये ही पांच सौ या फिर हजार रुपये मिल गए  ,खुशी खुशी अपना जॉब कार्ड मुखिया और संवेदक को  महीने भर की फर्जी हाजिरी बनाने के लिए दे देते हैं.

कितना बड़ा यह घोटाला है, ये समझने के लिए आपको मनरेगा का  गणित समझना होगा. एक मजदूर को साल में 100 दिन का काम मिलता है . एक दिन की मजदूरी 168 रुपये है.यानी 100 दिन की मजदूरी 16, 800 रुपये. लेकिन मजदूर को जॉब कार्ड के बदले दिया जाता है 500 से 1000 रुपये. यानी एक जॉब कार्ड पर संवेदक की कमाई हो जाती है लगभग 15800 रुपये. इसी कमाई को मिल बाँट कर खाते हैं अधिकारी, मुखिया और संवेदक. हर जिला  में हर साल लाखों मजदूरों के जॉब कार्ड पर ये फर्जी निकासी हो रही है.सूत्रों के अनुसार काम दिखाने के लिए संवेदक मजदूरों का काम जेसीवी मशीन से करवा लेते हैं. 50 मजदूर का काम एक जेसीवी मशीन कर देती है .यानी जेसीवी का भाडा देना पड़ता है 2500 से 3000 और 50 मजदूरों के  मजदूरी के नाम पर निकल जाता है 8000 रुपये से  ज्यादा .

ये गड़बड़झाला और घपला-घोटाला पूरे  प्रदेश में बड़े पैमाने पर चल रहा है. मजदूरों को 100 दिन काम देने की गारंटी वाले इस योजना के नाम पर सैकड़ों करोड़ का वारा-न्यारा हो रहा है. गरीब अनजान हैं, या इसी बात से संतुष्ट हैं कि उन्हें बिना काम किये केवल जॉब कार्ड के बदले मिल जा रहा है 500 से 1000 रुपये. आज की यह तस्वीर इस घोटाले के खेल को उजागर करने के लिए काफी है. अब देखना ये है कि सरकार कार्रवाई क्या करती है?  जांच के नाम पर लीपापोती होती है, हमेशा की तरह , या फिर कड़ी कार्रवाई कर ऐसा करनेवालों को सबक सिखाया जाता है.

 

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